पेड़ों के लिए जान देने की कई कहानियां और भी हैं
एक कहानी वर्ष 1604 में रामसरी गांव में कर्मा और गोरा नाम की दो बिश्नोई महिलाओं की है. उनके बारे में कहा जाता है कि इन दोनों ने खेजड़ी पेड़ों को कटने से बचाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था। ऐसी ही एक कहानी वर्ष 1643 के समय की है, जब बुचोजी नाम के एक बिश्नोई ग्रामीण ने होलिका दहन के लिए खेजड़ी पेड़ों को काटे जाने का विरोध करते हुए जान दे दी थी।
रेगिस्तान का कल्पतरु है खेजड़ी वृक्ष, हरियाली का रक्षक
खेजड़ी पेड़ के बारे में माना जाता है कि यह मुश्किल मौसम में भी उपजता है और इसकी वजह से रेगिस्तान में हरियाली के रहने में मदद मिलती है। बिश्नोई गांव खेजड़ी वृक्षों में घिरे होते हैं और इनकी वजह से रेगिस्तान नखलिस्तान बन जाता है। खेजड़ी पर लगने वाले फल को सांगरी कहते हैं जिसकी सब्जी बनाई जाती है। इसकी पत्तियां बकरियां खाती हैं।
काला हिरण को बचाने में भी आगे है बिश्नोई समाज
बिश्नोई गांवों में खेजड़ी के पेड़ों के साथ हिरण भी नजर आते हैं। बिश्नोई समुदाय हिरणों को भी खेजड़ी की ही तरह पवित्र मानता है। बिश्नोई समाज के लोगों में ऐसी मान्यता है कि वो अगले जन्म में हिरण का रूप लेंगे। बिश्नोई समाज में यह भी माना जाता है कि गुरु जंभेश्वर ने अपने अनुयायियों से कहा था कि वह काले हिरण को उन्हीं का स्वरूप मान कर पूजा करें। यही वजह है कि काले हिरण का शिकार करने के मामले में फंसे अभिनेता सलमान खान लॉरेंस बिश्नोई के निशाने पर हैं। दरअसल, 1998 में फिल्म 'हम साथ-साथ हैं' की शूटिंग के दौरान काले हिरण का शिकार करने का मुद्दा सामने आया था। जिसमें सलमान खान, तब्बू सहित और कई नाम सामने आए थे।