नई दिल्ली: ब्रिक्स दुनिया की तेजी से उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं यानी ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के शक्तिशाली समूह का संक्षिप्त रूप है। ब्रिक्स का मकसद शांति, सुरक्षा, विकास और सहयोग को बढ़ावा देना है। माना जा रहा है कि अमेरिका की अगुवाई वाले पश्चिमी देशों के संगठन नाटो का सदस्य तुर्की अब BRICS में शामिल होना चाहता है। हालांकि, अभी तक इस बारे में औपचारिक ऐलान भले ही नहीं किया गया हो, मगर रूस ने काफी पहले ही इसके संकेत दिए थे। बीते 2 सितंबर को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने भी कहा था कि तुर्की ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई है। ब्रिक्स की अगली बैठक अक्टूबर, 2024 को रूस में होनी है। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या तुर्की के आने से ब्रिक्स का संतुलन गड़बड़ाएगा? क्या ब्रिक्स में आने से पाकिस्तान इस मंच पर कश्मीर समस्या को तुर्की के जरिए उठा सकता है। आइए-इस खतरे को समझते हैं।साल भर पहले तक भारत के चलते पाकिस्तान हुआ था नाकाम
बीते साल पाकिस्तान भी चीन के समर्थन से ब्रिक्स देशों में शामिल होना चाहता था। हालांकि, इसके बावजूद पाकिस्तान ब्रिक्स में शामिल नहीं हो पाया। दरअसल, मौजूदा सदस्यों से उसे सर्वसम्मति से मंजूरी नहीं मिल पाई थी। इसके लिए ब्रिक्स के संस्थापक देश भारत की मंजूरी अनिवार्य है। भारत की मंशा नहीं है कि ब्रिक्स भी कश्मीर समस्या को लेकर राजनीति का अखाड़ा बन जाए।
चीन ने पाकिस्तान को SCO में तो शामिल करा लिया, मगर ब्रिक्स में नहीं
चीन ने अपने दबदबे से पाकिस्तान को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में शामिल करा लिया था, मगर ब्रिक्स में पाकिस्तान को शामिल नहीं करा पाया था। वहीं रूस ने SCO में मेंबरशिप के लिए भारत की राह आसान कर दी थी। उस वक्त भारत को कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने समर्थन दिया था। वहीं, चीन का प्रभाव ब्रिक्स पर भी है, मगर वह उसे इस संगठन में शामिल नहीं करा पा रहा है। दरअसल, इसके लिए सभी फाउंडर मेंबर्स की सहमति जरूरी होती है। भारत भी इसका फाउंडर मेंबर है।
तुर्की पहला नाटो देश जो ब्रिक्स में शामिल होना चाहता है
नाटो दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1949 में बना था। इसे बनाने वाले अमेरिका, कनाडा समेत पश्चिमी देश थे। इसे इन्होंने सोवियत यूनियन से सुरक्षा के लिए बनाया था। तब दुनिया दो ध्रुवों में बंटी थी। शीतकालीन युग में एक महाशक्ति अमेरिका था और दूसरी सोवियत यूनियन। तुर्की पहला ऐसा नाटो देश है, जो ब्रिक्स में शामिल होना चाहता है। चीन और रूस इस गुट को अपने विरोधी के रूप में देखते हैं।
दुनिया की 24 फीसदी जीडीपी वाला संगठन है ब्रिक्स
ब्रिक्स दुनिया की 5 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का एक संगठन है। जो वैश्विक आबादी का 41%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 24% और वैश्विक कारोबार का 16% प्रतिनिधित्व करते हैं। वर्ष 2009 से ही ब्रिक्स सदस्य देश वार्षिक शिखर बैठकें आयोजित कर रहे हैं। अभी इसके सदस्य देश 10 हैं।
रूस क्यों तुर्की काे ब्रिक्स में शामिल करना चाहता है
दिल्ली यूनवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर और विदेश मामलों पर गहरी समझ रखने वाले डॉ. राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि रूस और तुर्की के बीच अच्छे संबंध हैं। ऐसे में रूस तुर्की को ब्रिक्स में शाामिल करने का समर्थन करता रहा है। हालांकि, भारत यह कतई नहीं चाहेगा कि ब्रिक्स में वैसे देश शामिल हों जो उसके हितों के आड़े आते हों।
भारत क्यों तुर्की के शामिल होने का विरोध कर सकता है
डॉ. राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि तुर्की कश्मीर के मामले में पाकिस्तान के समर्थन में बोलता रहा है। खुद तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगान कई बार कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठा चुके हैं। वह भारत के खिलाफ जहर उगलने में माहिर हैं। वह कश्मीर में जनमत संग्रह की मांग भी कर चुके हैं। ऐसे में तुर्की ब्रिक्स में शामिल होता है तो भारत शायद उसका विरोध कर सकता है।
राजीव रंजन कहते हैं कि ब्रिक्स का एजेंडा आर्थिक सहयोग से ज्यादा राजनीतिक है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुंतलन बैठाना इसका मकसद है। दरअसल, ब्रिक्स में शामिल तुर्की चीन और पाकिस्तान का एजेंट बन सकता है और भारत के संवेदनशील मुद्दे कश्मीर को इस मंच से उठा सकता है। इससे भारत की रणनीति कमजोर हो सकती है।
तुर्की के आने से ब्रिक्स का संतुलन भारत के खिलाफ
डॉ. राजीव रंजन गिरि के अनुसा, भारत हर मंच पर आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान को बेनकाब करता रहा है। तुर्की के आने से वह पाकिस्तान के खिलाफ पुरजोर तरीके अपनी बात नहीं रख पाएगा और दूसरा ब्रिक्स का शक्ति संतुलन भी गड़बड़ाएगा। ब्रिक्स में पहले से ही चीन का दबदबा है। तुर्की के आने से चीन को भारत के खिलाफ और भी मजबूती मिल सकती है। भारत के लिए सीमाई मोर्चे पर जितना टेंशन पाकिस्तान देता रहा है, उतना ही टेंशन चीन भी देता रहा है। ऐसे में भारत का पलड़ा कमजोर हो सकता है।
एक ब्रिटिश अर्थशास्त्री ने दिया था ब्रिक्स का आइडिया
ब्रिक्स (BRICS) दुनिया की पांच अग्रणी उभरती अर्थव्यवस्थाओं ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के समूह के लिए एक संक्षिप्त शब्द है।वर्ष 2001 में ब्रिटिश अर्थशास्त्री जिम ओ'नील ने ब्राजील, रूस, भारत और चीन की चार उभरती अर्थव्यवस्थाओं का वर्णन करने के लिये BRIC शब्द गढ़ा था। वर्ष 2006 में BRIC विदेश मंत्रियों की पहली बैठक के दौरान इस समूह को औपचारिक रूप दिया गया था।
दिसंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका को BRIC में शामिल होने के लिए न्यौता दिया गया था, जिसके बाद इस समूह का नाम BRICS पड़ गया। शिखर सम्मेलन के बाद जारी जोहानिसबर्ग घोषणा, 2023 में अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को 1 जनवरी, 2024 से पूर्ण सदस्य बना दिया गया था। वहीं अजरबैजान ने आधिकारिक तौर पर ब्रिक्स में शामिल होने के लिए आवेदन दिया है। ब्रिक्स देश संयुक्त राष्ट्र, आईएमएफ़, वर्ल्ड बैंक जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों में सुधारों और हिस्सेदारी की बात कहते रहे हैं।
2050 तक क्या हो सकता है ब्रिक्स का भविष्य
ब्रिक्स में शामिल देशों के बारे में कुछ जानकारों का मानना है कि साल 2050 तक वे विनिर्माण उद्योग, सेवाओं और कच्चे माल के प्रमुख सप्लायर यानी आपूर्तिकर्ता हो जाएंगे। यही नहीं चीन और भारत विनिर्माण उद्योग और सेवाओं के मामले में पूरी दुनिया के प्रमुख सप्लायर हो जाएंगे। वहीं, रूस और ब्राजील कच्चे माल के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता हो सकते हैं।