कृषि कानूनों की वापसी के बाद सरकार का अगला दांव संसद में ला सकती है बीज विधेयक

Updated on 23-11-2021 06:37 PM

नई दिल्ली केंद्र सरकार तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा के बाद आगामी संसद के शीतकालानी सत्र में बीज विधेयक 2019 पेश कर सकती है। सरकार का मकसद किसानों को उचित दर पर गुणवत्तापरक प्रमाणिक बीज मुहैया करना है। जिससे वह अधिक से अधिक उपज पैदा कर सके। वर्तमान में कानून के अभाव में किसानों को नकली-घटिया किस्म के बीज मंहगी दर पर बेचे जाते हैं।

इससे किसानों को आर्थिक नुकसान के साथ कम उपज से भी समझौता करना पड़ता है। विधेयक में खराब बीज पर कंपनी पर अधिकतम पांच लाख रुपये का जुर्माना एक साल की कैद का प्रावधान है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के प्रस्तावों को बीज विधेयक 2019 में शामिल कर लिया गया है। विधेयक को जल्द ही कैबिनेट के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।

इसके बाद विधेयक को संसद के शीतकालानी सत्र में पेश किया जा सकता है। आईसीएआर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि विभाग के प्रस्तावों में सरकार फेरबदल कर सकती है। विभाग ने अपने प्रस्तावों में किसानों को गुणवत्तापरक प्रमाणिक बीज उपलब्ध कराने का प्रावधान किया है। बीज कंपनी को पंजीकरण करना होगा और बीज की समस्त किस्मों उनकी गुणवत्ता को प्रमाणिक कराना होगा।

 इसके लिए केंद्र राज्य सरकार की टेस्टिंग एजेंसी फील्ड पर नियुक्त होंगी। सरकार स्वतंत्र एजेंसी को भी नियुक्त कर सकेगी। उन्होंने बताया कि किसान को बेची जाने वाली किस्मों के गुणों के बारे में भी सूचित करना होगा। साथ ही दावा किए गए गुणों के आधार पर बीज अपनी क्षमता नहीं प्रदर्शित कर पाता तो किसान को क्षतिपूर्ति का अधिकार होगा और कृषक उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय से अपनी क्षतिपूर्ति ले सकेगा।

 कंपनी-बीज विक्रेता पर यदि लेबल पर मानक में अलग-अलग सूचनाएं जैसे आनुवांशिक सूचनाएं, मिस ब्रांड बीज की आपूर्ति, नकली बीज बेचना सिद्ध होने पर एक वर्ष का कारावास एवं पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाने का प्रावधान होगा। सरकार के बीज विधेयक को लेकर किसान संगठन बीज कंपनियां विरोध में हैं। यही कारण है कि वर्ष 2000 से 2019 तक इसे संसद से पारित नहीं कराया जा सका है।

बतातें हैं कि कृषि विभाग के वैज्ञानिक बीज कंपनियों के बीच सांठगांठ है। इसलिए सरकार के प्रयास को हर बार झटका लगता है। किसान शक्ति संघ के पुष्पेद्र सिंह का कहना है कि किसान अच्छी फसल होने पर उसके बीज बचाकर रख लेता है। जबकि बाजार में बीज कई गुना मंहगा बिकता है।

इसलिए पारंपरिक तरीका बेहतर है। किसानों की तरफ से आशंका जताई जा रही है कि इससे बीजों की बिक्री पर निजी कंपनियां हावी हो सकती हैं। भारत में वर्ष 1966 में पहला बीज अधिनियम बना था। लगभग 54 वर्ष के काल खंड में विभिन्न नई तकनीकों जैसे बीटी जीन, टर्मिनेटर जीन, बीज नियंत्रण आदेश ने आकार लिया। अत: नए बीज अधिनियम की आवश्यकता महसूस की गई।


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