दिल्ली के कोर्ट रूम जल्दी ही हाइब्रिड कोर्ट रूम बनने जा रहे हैं। इन अदालतों को AI आधारित स्पीच टू टेक्स्ट तकनीक से लैस किया जा रहा है।
जो अदालत की कार्रवाई के समय जजों का की बातों को सुनकर उन्हें टेक्स्ट में कन्वर्ट करेगा। ये पायलट प्रोजेक्ट शुक्रवार (20 जुलाई) से शुरू हो गया है।
नई तकनीक से समय की बचत होगी साथ कोर्ट स्टाफ, स्टेनोग्राफर की प्रोडक्टिविटी बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
तीस हजारी कोर्ट से शुरू हुआ पायलट प्रोजेक्ट
दिल्ली हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन ने शुक्रवार को तीस हजारी कोर्ट में इस AI तकनीक को शुरुआत की।
इस मौके पर उन्होंने कहा ये तकनीक लीगल सिस्टम को आसान बनाने में मदद करेगी। साथ ही न्याय मिलने में होने वाली देरी को कम किया जा सकेगा।
सबूतों और कोर्ट प्रोसीडिंग्स को रिकॉर्ड करने के लिए लाई गई स्पीच टू टेक्स्ट तकनीक ऑटोमैटिक स्पीच रिकॉग्निशन और लार्ज लैंग्वेज मॉडल जैसे मॉर्डन टूल्स से लैस है। जो बोले गए शब्दों को कम्प्यूटराइज्ड टेक्स्ट में कन्वर्ट कर सकता है।
नया मॉडल पेपरलेस कोर्ट की तरफ बढ़ने की शुरुआत- जस्टिस मनमोहन
जस्टिस मनमोहन ने कहा कि AI तकनीक का प्रयोग पेपरलेस कोर्ट की तरफ बढ़ने की शुरुआत है। साथ ही उन्होंने AI तकनीक पर काम कर रही जस्टिस राजीव शकधर की अध्यक्षता वाली आईटी कमेटी की भी तारीफ की।
जस्टिस मनमोहन ने कहा टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अक्सर कानून का उल्लंघन करने और अपराध करने के लिए किया जाता है। इससे निपटने का एकमात्र तरीका है तकनीकों का सही काम के लिए इस्तेमाल करना। उन्होंने आगे कहा कि सभी जज बड़ी संख्या में स्टेनोग्राफर की मांग कर रहे हैं AI से समस्या का समाधान काफी हद तक हो जाएगा।
डिजिटल कोर्ट एप भी किया गया लॉन्च
दिल्ली के सभी 691 जिला कोर्ट में हाइब्रिड कोर्ट सुविधाएं विकसित करने के प्रयास चल रहे हैं। इसके लिए करीब 387 करोड़ रुपए का बजट तैयार किया गया है। 14 पायलट प्रोजेक्ट पाइप लाइन में हैं।
जस्टिस मनमोहन ने डिजीटल कोर्ट एप भी लॉन्च किया। इस एप्लीकेशन के माध्यम से न्यायिक अधिकारियों की ऑनलाइन फाइल किए गए मामलों तक पहुंच आसान बनाएगी। यह एक डेस्कटॉप एप्लीकेशन है। इससे कोर्ट प्रोसीडिंग्स और डॉक्यूमेंट्स की सॉफ्ट कॉपी आसानी से प्राप्त की जा सकेगी।