नई दिल्ली । कोरोना से लड़ाई में एक और देसी हथियार तैयार हो गया है। भारत में बनी कोवोवैक्स वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दे दी। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने इसको लेकर खुशी जताई है।
उन्होंने कहाकि कोवोवैक्स बेहद सुरक्षा और गुणवत्ता दोनों मामले में बेहतर है। गौरतलब है कि कोवोवैक्स भारत की तीसरी वैक्सीन है, जिसे डब्लूएचओ ने मंजूरी दी है। इससे पहले कोविशील्ड और कोवैक्सीन का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा रहा है।
इससे पहले डब्लूएचओ ने कोवोवैक्स को मंजूरी दिए जाने पर एक बयान जारी किया। इसमें कहा गया है कि कोवोवैक्स डब्लूएचओ के सभी प्रक्रिया पर खरी उतरी है। इसकी क्वॉलिटी, सुरक्षा रिस्क मैनेजमेंट प्लान आदि रिव्यू डाटा में सटीक पाए गए हैं। वहीं ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा मैन्युफैक्चरिंग साइट की विजिट भी संतोषजनक रही।
डब्लूएचओ द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि इमरजेंसी इस्तेमाल की लिस्टिंग से जुड़े तकनीकी सलाहकार ग्रुप ने यह पाया है कि कोवोवैक्स वैक्सीन कोरोना खिलाफ लड़ाई में डब्लूएचओ के सभी मानकों पर खरी उतरी है। इस हफ्ते की शुरुआत में पूनावाला ने कहा था कि अगले छह महीने में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कोवोवैक्स के रूप में बच्चों के लिए वैक्सीन लांच करने वाली है।
उन्होंने कहा था कि कोवोवैक्स का ट्रायल चल रहा है। यह तीन साल तक के बच्चों के ऊपर भी पूरी तरह से असरदार है। पूनावाला के मुताबिक ट्रायल के दौरान इसके जो आंकड़े सामने आए वह बेहद शानदार थे। उन्होंने यह भी कहा था कि इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त आंकड़े हैं कि कोवोवैक्स कोरोना की बच्चों से हिफाजत करने के लिए मुफीद है। गौरतलब है कि कोवीशील्ड और अन्य कोरोना वैक्सीन 18 साल से ऊपर के एजग्रुप के लिए हैं। इसके साथ ही इसके वैश्विक इस्तेमाल के लिए भी मंजूरी दे दी गई है। इस घोषणा पर पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ने खुशी जताई है।
उन्होंने टि्वटर पर लिखा कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में हमने एक और मील का पत्थर स्थापित किया। कोवोवैक्स को अब इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए डब्लूएचओ से मंजूरी मिल चुकी है। सहयोग के लिए आप सभी का शुक्रिया। डब्लूएचओ के मुताबिक कोवोवैक्स को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने नोवावैक्स के लाइसेंस के तहत तैयार किया है जो कोवैक्स का हिस्सा है। इसमें यह भी कहा गया है कि इस वैक्सीन के आने के बाद निम्न आय वाले देशों में अधिक से अधिक लोगों को वैक्सीन लगाने के अभियान को मदद मिलेगी।