पश्चिम बंगाल की CM ममता बनर्जी के बयान पर बांग्लादेश सरकार ने मंगलवार (23 जुलाई) की देर रात आपत्ति जताई। ममता ने 21 जुलाई को TMC की शहीद दिवस रैली में कहा था कि वे पड़ोसी देश में संकट में फंसे लोगों के लिए अपने राज्य के दरवाजे खुले रखेंगी और उन्हें शरण देंगी। ममता ने अपने इसके लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का हवाला दिया था।
ममता के बयान पर बांग्लादेश के विदेश मंत्री हसन महमूद ने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के प्रति पूरा सम्मान रखते हुए, जिनके साथ हमारे बहुत करीबी संबंध हैं। हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि उनकी टिप्पणियों में भ्रम की काफी गुंजाइश है। इसलिए हमने भारत सरकार को एक नोट दिया है।
बांग्लादेश में नौकरियों में आरक्षण को हिंसक प्रदर्शनों में मरने वाले लोगों की संख्या 180 के पार हो गई है। मंगलवार को अस्पतालों के बाहर हिंसा में मारे गए लोगों के परिजन बिलखते दिखे। हिंसा फैलाने के आरोप में अभी तक 2580 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इसमें से कई विपक्षी दलों से जुड़े हुए नेता हैं।
PM शेख हसीना ने कर्फ्यू लगाने, सेना तैनात करने और देखते ही गोली मारने के आदेश का बचाव किया और कहा कि लोगों की जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाए गए थे। इधर, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने बनर्जी से उनकी टिप्पणी पर रिपोर्ट मांगी है। राजभवन ने कहा कि विदेश मामलों से संबंधित किसी भी मामले को संभालना केंद्र का विशेषाधिकार है।
जानिए क्या पूरा मामला
बांग्लादेश 1971 में आजाद हुआ था। इसी साल वहां पर 80 फीसदी कोटा सिस्टम लागू हुआ। बांग्लादेशी अखबार द डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक इसमें स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को नौकरी में 30%, पिछड़े जिलों के लिए 40%, महिलाओं के लिए 10% आरक्षण दिया गया। सामान्य छात्रों के लिए सिर्फ 20% सीटें रखी गईं।
कुछ विरोध के बाद 1976 में पिछड़े जिलों के लिए आरक्षण को 20% कर दिया गया। सामान्य छात्रों को इसका थोड़ा फायदा मिला। उनके लिए 40% सीटें हो गईं। 1985 में पिछड़े जिलों का आरक्षण और घटा कर 10% कर दिया गया और अल्पसंख्यकों के लिए 5% कोटा जोड़ा गया। इससे सामान्य छात्रों के लिए 45% सीटें हो गईं।
शुरू में स्वतंत्रता सेनानियों के बेटे-बेटियों को ही आरक्षण मिलता था। कुछ सालों के बाद स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को मिलने वाली सीटें खाली रहने लगीं। इसका फायदा सामान्य छात्रों को मिलता था। 2009 में स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को भी आरक्षण मिलने लगा। इससे सामान्य छात्रों की नाराजगी बढ़ गई। साल 2012 में विकलांग छात्रों के लिए भी 1% कोटा जोड़ दिया गया। इससे कुल कोटा 56 फीसदी हो गया।
साल 2018 में 4 महीने तक छात्रों के प्रदर्शन के बाद हसीना सरकार ने कोटा सिस्टम खत्म कर दिया था, लेकिन बीते महीने 5 जून को हाईकोर्ट ने सरकार को फिर से आरक्षण देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि 2018 से पहले जैसे आरक्षण मिलता था, उसे फिर से उसी तरह लागू किया जाए। इसके बाद से ही बांग्लादेश में हिंसा का दौर शुरू हो गया था।
शेख हसीना सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। कोर्ट ने 21 जुलाई 2024 को सरकारी नौकरियों में 56% आरक्षण देने के ढाका हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। आदेश जारी करते हुए आरक्षण को 56% से घटाकर 7% कर दिया। इसमें से स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार वालों को 5% आरक्षण मिलेगा जो पहले 30% था। बाकी 2% में एथनिक माइनॉरिटी, ट्रांसजेंडर और दिव्यांग शामिल होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 93% नौकरियां मेरिट के आधार पर मिलेंगी।
978 भारतीय स्टूडेंट्स अपने घर लौटे
बांग्लादेश से अब तक 978 भारतीय स्टूडेंट्स लौट आए हैं। मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा ने शुक्रवार को बताया कि भारतीय स्टूडेंट्स को डॉकी इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट के जरिए बांग्लादेश से निकाला गया है। उनमें से लगभग 80 मेघालय से हैं और बाकी अन्य राज्यों से हैं। नेपाल, भूटान के कुछ छात्रों और पर्यटकों को भी निकाला गया है।
मेघालय सीएम ने बताया कि बांग्लादेश के ईस्टर्न मेडिकल कॉलेज में 36 छात्र फंसे हुए हैं। हम वहां के अधिकारियों के संपर्क में हैं। कॉलेज और उसके आसपास की स्थिति ठीक है। हालांकि स्टूडेंट्स के माता-पिता वहां के हालात को लेकर चिंतित हैं।
जब तक भारत सरकार पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो जाती कि रास्ता साफ और सुरक्षित हो गया है, तब तक स्थिति पर नजर रखने की जरूरत है। इसके बाद ही स्टूडेंट्स को भारत लाया जाएगा। बांग्लादेश में कुल भारतीय नागरिकों की संख्या लगभग 15,000 होने का अनुमान है, जिसमें लगभग 8,500 स्टूडेंट्स शामिल हैं।