पश्चिम बंगाल के राज्यपाल पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली राजभवन की महिला स्टाफ ने बुधवार (7 जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है।
विक्टिम ने संविधान के आर्टिकल 361 के तहत राज्यपाल को मिली गिरफ्तारी-जांच और आपराधिक कार्यवाही से छूट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
विक्टिम ने सुप्रीम कोर्ट से यह तय करने का आग्रह किया है कि क्या यौन उत्पीड़न और मोलेस्टेशन के मामलों में राज्यपाल को छूट दी जा सकती है? इसके लिए स्पष्ट गाइडलाइन तय होना चाहिए।
महिला ने याचिका में कहा कि ऐसे मामलों राज्यपालों को छूट मिलने के कारण विक्टिम को तब तक इंतजार करना पड़ता है जब तक गवर्नर का कार्यकाल समाप्त नहीं हो जाता।
ऐसे में केस में देरी होती है। यह समझ से परे है। क्योंकि ऐसा होने के कारण न्याय नहीं मिल पाता है। याचिका में महिला ने गवर्नर के खिलाफ पुलिस जांच कराने के निर्देश देने की भी मांग की है।
दरअसल, बंगाल राज्यपाल पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोप को लेकर ममता सरकार ने पुलिस को जांच सौंपी थी। इसके बाद बोस ने राजभवन में पुलिस की एंट्री पर रोक लगा दी थी।
संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत, किसी राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान आपराधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती है। इसे लेकर ही महिला सुप्रीम कोर्ट पहुंची है।
गवर्नर बोस के खिलाफ यौन उत्पीड़न के दो केस
पहला केस: राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर राजभवन की महिला कर्मी ने 2 मई को यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। उसने मामले को लेकर हरे स्ट्रीट थाने में लिखित शिकायत दी। न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, महिला का आरोप है कि वो 24 मार्च को स्थायी नौकरी का निवेदन लेकर राज्यपाल के पास गई थी। तब राज्यपाल ने बदसलूकी की। इसी मामले की विक्टिम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है।
दूसरा केस: राज्यपाल बोस के खिलाफ सेक्शुअल हैरेसमेंट का एक और केस सामने आया है। उन पर एक ओडिसी क्लासिकल डांसर ने दिल्ली के एक 5 स्टार होटल में यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। शिकायत अक्टूबर 2023 में दर्ज कराई गई थी।न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, बंगाल पुलिस ने पिछले हफ्ते राज्य सरकार को जांच रिपोर्ट सौंपी है। 14 मई को मामला सामने आया है। ओडिसी डांसर ने अपनी शिकायत में बताया है कि वह विदेश यात्रा से जुड़ी दिक्कतों को लेकर राज्यपाल से मदद मांगने गई थी।
आर्टिकल 361 को तीन पॉइंट में समझिए...
- सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक संविधान के आर्टिकल 361 (2) के तहत राज्यपाल के पद पर होने वाले व्यक्ति के खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला नहीं चलाया जा सकता है। इसके अलावा आर्टिकल 361 (3) के तहत राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान उनके खिलाफ गिरफ्तारी या जेल भेजने की कार्रवाई नहीं हो सकती है।
- इतना ही नहीं अनुच्छेद-361 (2) के पहले प्रावधान के तहत राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान कोई नया आपराधिक मामला भी दर्ज नहीं हो सकता है। लेकिन, उनसे जुड़े अन्य लोगों के खिलाफ मामला दर्ज होने के साथ जांच भी हो सकती है।
- ऐसे किसी आरोपों के बाद राज्यपाल के त्यागपत्र या कार्यकाल समाप्त होने के बाद उस मामले में राज्यपाल के खिलाफ नए सिरे से आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है। अनुच्छेद-361 (3) के दूसरे प्रावधानों के तहत राज्यपाल बनने के पहले अगर उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हुआ है तो आगे उनके पद पर रहने तक इस तरह के मामलों पर भी रोक लग जाती है। इस तरह उनके खिलाफ पुराने मामलों में भी चार्जशीट, गिरफ्तारी और जेल का एक्शन नहीं हो सकता है।
गवर्नर को आपराधिक कार्यवाही से छूट क्यों मिली है?
- विराग गुप्ता बताते हैं कि संविधान के आर्टिकल 361 में राष्ट्रपति, राज्यपाल और राज प्रमुख को संवैधानिक मुखिया होने के नाते सिविल और क्रिमिनल मामलों में संवैधानिक सुरक्षा दी गई है। इसके पीछे मुख्य उद्देश्य यह है कि राज्य और देश के संवैधानिक प्रमुख बिना किसी डर के निर्भीक होकर अपने पद की जिम्मेदारी को निभा सकें। उन्हें किसी तरह के कानूनी उत्पीड़न का डर नहीं हो।
- इससे राज्यपाल के पद की गरिमा और स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है। संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत सभी को समानता मिली है। राज्यपाल को दी गई संवैधानिक सुरक्षा को बेहद खास मानते हुए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-361 पर अपनी मोहर लगाई है।
- साल 1952 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने बिमान चन्द्र बोस मामले में राज्यपाल को सिविल मामलों में दी गई संवैधानिक सुरक्षा को सही ठहराया था। अभी हाल में तेलंगाना हाईकोर्ट ने MLC के नामांकन विवाद में अनुच्छेद-361 (1) के तहत राज्यपाल को व्यक्तिगत स्तर पर दी गई संवैधानिक सुरक्षा को सही ठहराया है।
- हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति के अनुमोदन से होती है। जिला अदालतों के मजिस्ट्रेट और जज भी संबंधित राज्य के हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार में कार्य करते हैं। इसलिए राज्यपाल और राष्ट्रपति को सिविल और क्रिमिनल मामलों में पुलिस और अदालतों के सामने पेश होने पर छूट मिली है। यह प्रावधान राज्यपाल और राज्य के साथ संविधान की गरिमा को स्थापित करता है।