नई दिल्ली । केंद्र सरकार दिल्ली हाईकोर्ट को संभवत बता सकती है कि वह मैरिटल रेप के विरोध में दिए अपने पूर्व के हलफनामे को वापस लेना चाहती है या नहीं। केंद्र ने अपने पूर्व के हलफनामे में कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे 'विवाह नाम की संस्था' खतरे में पड़ सकती है और इसे पतियों के उत्पीड़न के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
जस्टिस राजीव शकधर एवं जस्टिस सी. हरिशंकर की बेंच ने गत 28 जनवरी को केंद्र सरकार का प्रतिनिधि कर रहे वकील से कहा था कि वह इस बात पर केंद्र से निर्देश लेकर आएं कि क्या सरकार इस मामले में 2017 में दिए गए अपने हलफनामे को वापस लेना चाहती है? मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग को लेकर दायर कई याचिकाओं की सुनवाई कर रही बेंच सोमवार को याचिकाकर्ताओं की जवाबी दलीलें सुनेगी। याचिकाकर्ताओं - गैर सरकारी संगठनों आरटीआई फाउंडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन्स एसोसिएशन- की ओर से पेश वकील करुणा नंदी ने इस बारे में स्पष्टीकरण देने का अनुरोध किया था कि क्या उन्हें केंद्र सरकार द्वारा पेश हलफनामे पर जवाबी दलीलें देनी है या केंद्र उसे वापस ले रहा है।
इसका बहुत महत्व है, क्योंकि केंद्र ने अगस्त 2017 में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (घरेलू हिंसा) के दुरुपयोग का पहले ही जिक्र किया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई थी कि ज्यादातर पश्चिमी देशों में मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया गया है, इस पर केंद्र ने कहा था कि इसका यह मतलब नहीं होता कि भारत को भी आंख मूंदकर उसका अनुसरण करना चाहिए।