ओडिशा स्थित पुरी जगन्नाथ मंदिर में 22 जून को होने जा रहे अनोखे उत्सव देवस्नान पूर्णिमा की तैयारी हो चुकी है। कहते हैं कि इसी दिन महाप्रभु जगन्नाथ जन्मे थे। इसीलिए महाप्रभु, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा श्रीमंदिर में भक्तों के सामने स्नान करते हैं। यह साल में एक बार ही होता है।
ऐसा प्रचलन में है कि देवस्नान के बाद भगवान जगन्नाथ को बुखार आ जाता है, इसलिए वो अगले 15 दिन किसी को दर्शन नहीं देते हैं। इस दौरान उनके अनन्य भक्त रहे आलारनाथ भगवान दर्शन देते हैं। रथ यात्रा से दो दिन पहले गर्भगृह भक्तों के लिए खुल जाता है। इस बार भी भगवान के स्नान के लिए सोने के कुएं से पानी लाया जाएगा।
शुक्रवार सुबह सुना गोसाईं (कुएं की निगरानी करने वाले) देवेंद्र नारायण ब्रह्मचारी की मौजूदगी में कुआं खुलेगा। उन्होंने बताया कि यह 4-5 फीट चौड़ा वर्गाकार कुआं है। इसमें नीचे की तरफ दीवारों पर पांड्य राजा इंद्रद्युम्न ने सोने की ईंटें लगवाईं थीं।
सीमेंट-लोहे से बना इसका ढक्कन करीब डेढ़ से दो टन वजनी है, जिसे 12 से 15 सेवक मिलकर हटाते हैं। जब भी कुआं खोलते हैं, इसमें स्वर्ण ईंटें नजर आ जाती हैं। ढक्कन में एक छेद है, जिससे श्रद्धालु सोने की वस्तुएं इसमें डाल देते हैं।
आंतरिक रत्न भंडार का कोई ऑडिट नहीं हुआ
कुएं में कितना सोना है, आज तक किसी ने नहीं जांचा। कहते हैं कि ये मंदिर के आंतरिक रत्न भंडार से जुड़ा है, जो 1978 से बंद है। तब से आंतरिक रत्न भंडार का कोई ऑडिट नहीं हुआ है। सुबह कुएं में उतरे बिना रस्सियों की मदद से साफ-सफाई करेंगे। फिर पीतल के 108 घड़ों में इसका पानी भरेंगे।
घड़ों में 13 सुगंधित वस्तुएं डालकर नारियल से ढंक देंगे। देवस्नान पूर्णिमा को गड़ा बडू सेवक (ये इसी काम के लिए मंदिर में नियुक्त हैं) ही घड़ों को स्नान मंडप लाएंगे और भगवान को स्नान कराएंगे। मंदिर के पूजा विधान के वरिष्ठ सेवक डॉ. शरत कुमार मोहंती के मुताबिक यह कुआं जगन्नाथ मंदिर प्रांगण में ही देवी शीतला और उनके वाहन सिंह की मूर्ति के ठीक बीच में बना है।
सालभर आईना रखकर प्रभु की छवि को स्नान कराने की परंपरा
मंदिर के पूजा विधान के वरिष्ठ सेवक डॉ. शरत कुमार मोहंती बताते हैं कि सालभर भगवान को गर्भगृह में ही स्नान कराते हैं, लेकिन प्रक्रिया अलग है। इसमें मूर्ति के सामने बड़े आईने रखते हैं, फिर आईनों पर दिख रही भगवान की छवि पर धीरे-धीरे जल डाला जाता है। लेकिन, देवस्नान पूर्णिमा के लिए मंदिर प्रांगण में मंच तैयार होता है।
तीन बड़ी चौकियों पर भगवानों को विराजित करते हैं। भगवान पर कई तरह के सूती वस्त्र लपेटते हैं, ताकि उनकी काष्ठ काया पानी से बची रहे। फिर महाप्रभु को 35, बलभद्र जी को 33, सुभद्राजी को 22 मटकी जल से नहलाते हैं। शेष 18 मटकी सुदर्शन जी पर चढ़ाई जाती हैं।