नई दिल्ली । कोरोना महामारी के दौरान मार्च 2020 में 76 फीसदी भारतीयों के पास उनके घरों में एक हफ्ते से भी कम अवधि का राशन/खाने पीने की वस्तुएं थी और यह इस बात का परिचायक है कि कोरोना के कारण लगाए गए लॉकडाउन की वजह से हालात कितने बदतर हो गए थे। एक सर्वे में बताया कि देश में पहली बार कोरोना के कारण लगाए गए लॉकडाउन के कारण लोगों में एक प्रकार से अनिश्चितता और असुरक्षा का माहौल था। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत सरकार के सामने उस विशाल आबादी को भोजन और खाद्यान्न प्रदान करने की थी जिनके पास आजीविका के बेहतर साधन नहीं थे।
लॉकडाउन के कारण रोजगार बंद हो गए थे और काम धंधे नहीं होने से लोगों के सामने दो जून की रोटी का संकट पैदा हो गया था क्योंकि पूर्ण लॉकडाउन की वजह से वे कहीं बाहर जाकर काम नहीं कर सकते थे। इससे मजदूर और श्रमिक वर्ग अधिक प्रभावित हुआ था। लेकिन सरकार ने 80 करोड़ लोगों को निशुल्क राशन उपलब्ध कराकर इस संकट को दूर करने की पहल की थी।
सरकार ने नवंबर 2021 में गरीब परिवारों को निशुल्क पांच किलोग्राम खाद्यान्न दिए जाने की अवधि मार्च 2022 तक बढ़ा दी थी और उस समय किए गए सीवोटर के सर्वेक्षण में 67 प्रतिशत भारतीयों ने कहा था कि उनकी वित्तीय स्थिति पहले जैसी ही है या कोरोना की दूसरी लहर के दौरान और खराब हुई है तथा वे भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हैं।
विभिन्न आंकड़ों के मुताबिक सरकार ने देश की इतनी विशाल आबादी को राशन प्रदान करने के लिए 200,000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च की थी ताकि कोई भी भारतीय भूखे पेट नहीं सोए। हालांकि इस दौरान भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के कारण अनेक गरीब परिवारों को उनका हक नहीं मिल सका था लेकिन देश के किसी भी हिस्से से ऐसी कोई पुष्ट रिपोर्ट नहीं आई थी कि भूख के कारण किसी व्यक्ति की मौत हुई है।
भले ही सरकार ने उस दौरान इतनी विशाल आबादी को निशुल्क राशन उपलब्ध करा दिया था लेकिन यह दर्शाता है कि कैसे अभी भी करोड़ों भारतीय गरीबी, भूख और निर्धनता की चपेट में हैं और नए भारत का वादा अभी भी बहुत दूर है।