नई दिल्ली । कर्नाटक में स्नातक स्तर पर हिन्दी की जगह कन्नड़ भाषा को अनिवार्य किए जाने पर विवाद पैदा हो गया है। राज्य सरकार के इस फैसले पर प्रदेश हाईकोर्ट ने गंभीर आपत्ति जताई है। साथ ही केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या नई शिक्षा नीति के तहत कोई राज्य अपनी भाषा को अनिवार्य कर सकता है।
केंद्र सरकार इस मामले का अध्ययन कर रही है और जल्द ही अदालत में अपना जवाब दाखिल करेगी। बहरहाल, कोर्ट के हस्तक्षेप से फिलहाल उन सैकड़ों हिन्दी शिक्षकों ने राहत की सांस ली है, जिनकी नौकरी हिन्दी नहीं पढ़ाए जाने की वजह से खतरे में पड़ गई थी। कर्नाटक के कॉलेजों में पहले हिन्दी भी पढ़ाई जाती थी। दूसरे प्रदेशों से यहां आकर बसे लोगों के बच्चे बड़े पैमाने पर हिन्दी पढ़ते थे।
मगर, हाल में कर्नाटक के शिक्षा विभाग ने हिन्दी की जगह कन्नड़ को अनिवार्य कर दिया। इस फैसले पर छात्रों और अभिभावकों ने तो नाराजगी प्रकट की ही थी, हिन्दी शिक्षकों के समक्ष भी मुश्किल पैदा होने लगी थी। कुछ संगठनों ने इस मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय का रुख किया है। उनका तर्क है कि नई शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षा में किसी स्थानीय भाषा को नहीं थोपा जा सकता है।
राज्य सरकार के इस फैसले पर उच्च न्यायालय ने फिलहाल रोक लगा दी है। साथ ही केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से भी पूछा है कि नई शिक्षा नीति के तहत भाषा को लेकर क्या प्रावधान है। केंद्र सरकार के सूत्रों के अनुसार इस मामले में जल्द उच्च न्यायालय में जवाब दाखिल किया जाएगा।
बता दें कि नई शिक्षा नीति में हिन्दी को बढ़ावा देने की बात कही गई है। जबकि, प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में प्रदान करने पर भी जोर दिया गया है।