जम्मू-कश्मीर के जम्मू रीजन में जैश और लश्कर के आतंकी नेटवर्क एक बार फिर से एक्टिव नजर आ रहे हैं। पाकिस्तान फंडेड जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे इन लोकल नेटवर्क को सेना ने दो दशक पहले डिएक्टिवेट कर दिया था।
जानकारों का मानना है कि गलवान हिंसा के बाद सेना को लद्दाख शिफ्ट करने के बाद आतंकियों को पैर जमाने का मौका मिला है। साथ ही सेना को नए आतंकियों में पाक आर्मी के जवानों के शामिल होने के सबूत भी मिले हैं।
370 हटने के बाद जम्मू में आतंकी घटनाएं बढ़ीं
जम्मू कश्मीर के पूर्व डीजीपी एसपी वैद्य ने बताया कि आर्टिकल 370 हटने के बाद से ही पाकिस्तान आर्मी और ISI ने जम्मू को टारगेट करना शुरू कर दिया है। उन्होंने दो साल में इस नेटवर्क को सक्रिय किया। इन्हीं की मदद से आतंकियों ने 2020 में पुंछ और राजौरी में सेना पर बड़े हमले किए। फिर ऊधमपुर, रियासी, डोडा और कठुआ को निशाने पर लिया।
वहीं सेना से रिटायर्ड जनरल दीपेंद्र सिंह हुड्डा बताते हैं कि 2020 तक जम्मू रीजन में काफी सुरक्षा बल तैनात था। लेकिन गलवान एपिसोड के बाद चीन गतिरोध का जवाब देने के लिए यहां से सेना को हटाकर लद्दाख शिफ्ट कर दिया गया। इस शिफ्टिंग का फायदा उठाते हुए आतंकियों ने अपने नेटवर्क को कश्मीर से जम्मू की तरफ शिफ्ट किया। यहां इनका पुराना लोकल नेटवर्क पहले से मौजूद था जिसे एक्टिव करना था।
जम्मू के 9 जिलों में लोकल नेटवर्क की एक्टिविटी तेज
20 साल पहले जब इन नेटवर्क पर शिकंजा कसा गया था तब ये आंतकियों का समान पहुंचाने का काम करते थे। अब ये संगठन उन्हें खाने-पीने की चीजों से लेकर हथियार, गोला बारूद तक पहुंचा रहे हैं।
दरअसल,पिछले दिनों 25 संदिग्धों को पकड़ा गया था। उनसे पूछताछ की गई तो उन्होंने नेटवर्क के एक्टिव होने की बात कबूली थी। जम्मू के 10 में से 9 जिलों राजौरी, पुंछ, रियासी, ऊधमपुर, कठुआ, डोडा, किश्तवाड़, जम्मू और रामबन में नेटवर्क की एक्टिविटी तेज बताई जा रही है।
फंड के साथ जवानों को भी भेज रही पाकिस्तानी सेना
जम्मू में कश्मीर के मुकाबले पॉपुलेशन डेंसिटी कम है। पहाड़ी इलाकों के चलते रोड कनेक्टिवटी भी सीमित है। इसलिए आतंकियों तक पहुंचने में समय लग रहा है।
वहीं सेना के सूत्रों की माने तो रियासी में हुए आतंकी हमले के बाद जिन लोगों को पकड़ा गया था। उनके पास से जो हथियार और सैटेलाइट फोन मिले थे।
जो इस बात का सबूत हैं कि नए आतंकियों में पाक सेना के पूर्व या मौजूदा सैनिक भी शामिल हैं। हमलों का पैटर्न भी पाक आर्मी के ट्रूपर डिवीजन जैसा है।
इंटेलिजेंस के स्थानीय लोगों से नहीं मिल रही मदद
रिपोर्ट्स के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के दुर्गम पहाड़ी इलाकों में आतंकी छोटे-छोटे कैंप में ट्रेनिंग कर रहे हैं। इनके पास आधुनिक हथियारों के साथ मॉर्डन कम्युनिकेशन डिवाइसेस भी हैं। इनके सैटेलाइट फोन भी पूरी तरह एंड टू एंड इनक्रिप्टेड है। इससे इनपुट लीक होने का खतरा कम होता है।
वहीं स्थानीय लोगों और अन्य लोगों से मिलने वाली खुफिया जानकारी लगभग समाप्त हो गई है। जिससे इंटेलिजेंस को आतंकियों तक पहुंचने में सफलता नहीं मिल रही है।
डोडा में 15 जुलाई को मुठभेड़ में 5 जवान शहीद हुए थे
डोडा में ही 15 जुलाई को आतंकियों से मुठभेड़ में सेना के एक कैप्टन और पुलिसकर्मी समेत 5 जवान शहीद हो गए थे। 16 जुलाई को डोडा के डेसा फोरेस्ट बेल्ट के कलां भाटा में रात 10:45 बजे और पंचान भाटा इलाके में रात 2 बजे फिर फायरिंग हुई थी।
इन्हीं घटनाओं के बाद सर्च ऑपरेशन चलाने के लिए सेना ने जद्दन बाटा गांव के सरकारी स्कूल में अस्थायी सुरक्षा शिविर बनाया था। डोडा जिले को 2005 में आतंकवाद मुक्त घोषित कर दिया गया था। 12 जून के बाद से लगातार हो रहे हमलों में 5 जवान शहीद हुए, 9 सुरक्षाकर्मी घायल हुए। जबकि तीन आतंकवादी मारे गए।