भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने जस्टिस यशवंत वर्मा कैश रिकवरी केस की जांच रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी। इस केस के जांच तीन जजों वाली कमेटी कर रही है। इस रिपोर्ट के साथ जस्टिस वर्मा का जवाब भी भेजा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने ऑफिशियल जानकारी देते हुए बताया कि यह कार्रवाई इन-हाउस प्रोसेस के तहत की गई है। जब किसी जज के खिलाफ एग्जीक्यूटिव एक्शन जरूरी लगता है, तब सुप्रीम कोर्ट सरकार को रिपोर्ट सौंपता है। फिलहाल, इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है।
4 मई को जांच रिपोर्ट CJI को सौंपी गई थी
CJI संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा मामले की जांच करने के लिए 21 मार्च को कमेटी बनाई थी। इसमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे। कमेटी ने 25 मार्च को जांच शुरू की थी। 4 मई को CJI को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
घर के बाहर ₹500 के नोट मिले थे 16 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के बंगले के बाहर भी सफाई के दौरान सफाई कर्मचारियों को 500-500 रुपए के अधजले नोट मिले थे। सफाईकर्मियों ने बताया कि 4-5 दिन पहले भी हमें ऐसे नोट मिले थे। ये नोट सफाई के दौरान सड़क पर पत्तों में पड़े हुए थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ट्रांसफर के विरोध में
23 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा को वापस इलाहाबाद भेजने की बात का इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने विरोध किया था। बार ने जनरल हाउस मीटिंग बुलाई थी, जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की मांग का प्रस्ताव पारित किया गया था।
साथ ही मामले की जांच ED और CBI से कराने की मांग का भी प्रस्ताव पारित किया गया था। प्रस्ताव की कॉपी सुप्रीम कोर्ट CJI को भी भेजी गई थी। 23 मार्च को ही जस्टिस वर्मा से दिल्ली हाईकोर्ट ने कार्यभार वापस ले लिया था।
एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने 27 मार्च को CJI संजीव खन्ना और कॉलेजियम के सदस्यों से मिलकर ट्रांसफर पर पुनर्विचार करने की मांग की थी।
जस्टिस यशवंत वर्मा इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही बतौर जज नियुक्त हुए थे। इसके बाद अक्टूबर 2021 में उनका दिल्ली हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया था। जज बनने से पहले वह इलाहाबाद हाईकोर्ट में राज्य सरकार के चीफ स्टैंडिंग काउंसिल भी रहे हैं।