नई दिल्ली । बसपा सुप्रीमो मायावती ने सपा मुखिया अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल सिंह यादव को उनके घर में घेरने के लिए नया दांव खेला है। इन दोनों सामान्य सीटों पर दलित उम्मीदवार को उतार कर यह संदेश दिया है कि उनका सबसे अधिक भरोसा आज भी इसी जाति पर है। मायावती का यह दांव कितना कारगर साबित होता है यह तो 10 मार्च को मतगणना के बाद ही पता चलेगा, लेकिन करहल और जसवंत नगर यह दोनों सीटें सपा की परंपरागत रही हैं। बसपा और सपा की दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है।
इसके बाद भी वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने सपा से गठबंधन किया। यह बात अलग है कि लोकसभा चुनाव के बाद ही यह गठबंधन टूट गया। मायावती इस बार यूपी में अपने दम पर विधानसभा का चुनाव लड़ रही हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव करहल और शिवपाल जसवंतनगर से चुनाव लड़ रहे हैं। अखिलेश जिस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं वह सपा की परंपरागत सीट मानी जाती है। इस सीट पर सपा का सालों से कब्जा है। वहीं जसवंत नगर से किसी समय मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़ा करते थे।
उन्होंने बाद में यह सीट शिवपाल के लिए खाली कर दी। शिवपाल वर्ष 2017 के चुनाव में यहां से पांचवीं बार विधायक चुने गए। बसपा ने पहली बार जसवंत नगर विधानसभा सीट पर दलित उम्मीदवार उतारा है। अखिलेश पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वर्ष 2009 में वह कन्नौज लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे। बसपा ने इस चुनाव में अखिलेश के खिलाफ डा. महेश चंद्र वर्मा को टिकट दिया था।
वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव कन्नौज सीट से लड़ी और बसपा ने उनके खिलाफ ब्राह्मण उम्मीदवार उतारा। अखिलेश वर्ष 2019 का चुनाव आजमगढ़ संसदीय सीट से लड़े। इस चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन था। मायावती ने इस विधानसभा चुनाव में इन दोनों सीटों पर दलित उम्मीदवार उतार कर इन्हें इनके ही घर में घेरने की कोशिश की है।