नई दिल्ली । भारत ने पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान में करीब तीन अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक खर्च कर उसके पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यहां तक कि तालिबान ने भी भारत के इस योगदान को स्वीकार किया है। काबुल पर तालिबानी कब्जे के बाद चाहे जी20 शिखर सम्मेलन हो, ब्रिक्स हो या फिर द्विपक्षीय चर्चा, अफगानिस्तान के मुद्दे को लेकर भारत प्रमुखता से बोल रहा है। भारत द्वारा आयोजित अफगानिस्तान पर अपनी तरह की पहली क्षेत्रीय वार्ता में भाग लेने के लिए रूस, ईरान और सभी पांच मध्य एशियाई देशों के सात सुरक्षा अधिकारी मंगलवार को दिल्ली पहुंचेंगे।
पांच मध्य एशियाई देशों (ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, और तुर्कमेनिस्तान) के के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के अलावा रूस और ईरान भी अफगानिस्तान पर दिल्ली में आयोजित बैठक में भाग लेगा। बैठक की अध्यक्षता भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल करेंगे। इससे पहले ईरान ने इसी तरह के प्रारूप में संवादों की मेजबानी की थी। यह 2018 और 2019 में ईरान द्वारा शुरू किए गए प्रारूप की निरंतरता है, हालांकि, इस बार संवाद में सात देशों की सबसे अधिक भागीदारी होगी।
भारत ने पाकिस्तान और चीन को आमंत्रित किया था। हालांकि, दोनों देशों ने इससे किनारा कर लिया है। चीन ने शेड्यूलिंग मुद्दों का हवाला दिया और बताया कि वह बहुपक्षीय और द्विपक्षीय स्तरों पर अफगानिस्तान पर भारत के साथ बातचीत के लिए तैयार है। चीन ने ईरान द्वारा आयोजित पिछली बैठकों और हाल ही में ब्रिक्स बैठक में भी भाग लिया। भारतीय अधिकारियों को लगता है कि पाकिस्तान कभी भी समाधान का हिस्सा नहीं बनना चाहता था।
वास्तव में, पाकिस्तान तो अफगानिस्तान की मौजूदा हालात के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है। वह वर्षों से तालिबान के क्षेत्रीय नेताओं को समर्थन प्रदान करता रहा है। कुख्यात जासूसी एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस और हक्कानी की मिलिभगत किसी से छिपी नहीं है।