नई दिल्ली । सुकमा और बीजापुर नक्सल के लिहाज से सबसे ज्यादा जोखिम वाले क्षेत्र माने जा रहे हैं। सुरक्षाबल करीब 80 फीसदी इन इलाकों में ही नक्सलियों का निशाना बन रहे हैं। नक्सली सुरक्षाबलों के आगे दम तोड़ते नजर आ रहे हैं। देश में नक्सली हिंसा की घटनाओं में 70 प्रतिशत की कमी आई है। खुफिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अपने कोर गढ़ में लगातार कमजोर हो रहे नक्सली नए त्रिकोण की जद्दोजहद में हैं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पा रही है।
सूत्रों ने कहा कि सुरक्षाबल ज्यादातर कोर इलाकों में अपना प्रभुत्व जमाने में सफल हुए हैं, लेकिन सुरक्षाबल से जुड़े कर्मियों की ऑपरेशन के दौरान सबसे ज्यादा मौत सुकमा और बीजापुर में ही हुई है। अधिकारी ने बताया कि अक्तूबर में छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर के जंगलों में केंद्रीय समिति के एक सदस्य अक्कीराजू हरगोपाल उर्फ रामकृष्ण उर्फ आरके की मौत के बाद नक्सली गुट सदमे में हैं।
सूत्रों ने कहा कि नक्सली इलाकों में लगातार सुरक्षाबलों को सफलता मिल रही है। उधर, केंद्र सरकार ने बुधवार को बताया कि देश में नक्सली हिंसा की घटनाओं में 70 प्रतिशत की कमी आई है। नक्सलियों का विस्तार भी कम हो रहा है। नक्सली घटनाओं में मारे जाने वाले सैन्यकर्मियों और आम नागरिकों की संख्या में भी 80 प्रतिशत की गिरावट आई है। राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि वामपंथी उग्रवादी सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमले करते हैं।
ये आम नागरिकों और सार्वजनिक संपत्ति को भी निशाना बनाते हैं। ऐसी घटनाओं में 70 प्रतिशत की कमी आई है। 2009 में अब तक की सर्वाधिक 2258 घटनाएं हुई थी, जो कम होकर वर्ष 2020 में 665 हो गई है। सरकार के मुताबिक नक्सली हमलों में जान गंवाने वाले आम नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों की संख्या में भी 80 प्रतिशत की कमी आई है। इन घटनाओं में 2010 में अब तक सर्वाधिक 1,005 आम नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों की जान गई थी। यह 2020 में 183 हो गई है। राय ने दावा किया कि नक्सली हिंसा का भौगोलिक विस्तार भी सीमित हो गया है। 2013 में 10 राज्यों के 76 जिलों में उग्रवाद की तुलना में केवल नौ राज्यों 53 जिलों ने वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसा की सूचना दी।