मौत के 1 साल बाद मुशर्रफ की सजा-ए-मौत पर मुहर मुल्क से गद्दारी मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Updated on 11-01-2024 12:45 PM

पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को मौत के करीब एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने सजा-ए-मौत सुनाई है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस काजी फैज ईसा की अगुआई वाली चार जजों की बेंच ने यह फैसला 2007 के देशद्रोह मामले में सुनाया।

बेंच ने कहा- 2019 में स्पेशल कोर्ट ने मुशर्रफ को इमरजेंसी लगाने का दोषी करार देते हुए सजा-ए-मौत का फैसला सुनाया था। जनवरी 2020 में लाहौर हाईकोर्ट ने स्पेशल कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए इसे संविधान के खिलाफ बताया था।

इसके खिलाफ कई अपील दायर हुईं। मुशर्रफ की मौत हो गई, लेकिन केस चलता रहा। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुना दिया है।

नवाज की पार्टी ने दायर किया था केस

पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) ने सबसे पहले 2007 में मुशर्रफ के खिलाफ चुनी हुई सरकार को गिराने और इमरजेंसी लगाने के मामले में केस दायर किया था। इस पर स्पेशल कोर्ट ने मुशर्रफ को दोषी ठहराया और सजा-ए-मौत का ऐलान किया। 13 जनवरी 2020 को लाहौर हाईकोर्ट ने कहा- स्पेशल कोर्ट का फैसला गैरकानूनी और संविधान के खिलाफ है। इस फैसले को रद्द किया जाता है।

इसके बाद PML-N और पाकिस्तान बार काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट में लाहौर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर की। इस पर दो नवंबर 2023 में सुनवाई पूरी हुई और फैसला सुरक्षित रख लिया गया। बुधवार 10 जनवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया।

मुशर्रफ के वकील सलमान सफदर ने कहा- पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ के परिवार का कोई सदस्य अदालत में आने को तैयार नहीं है। मुशर्रफ की 5 फरवरी 2023 को मौत हो चुकी है। हालांकि, जब वो जिंदा थे, तब अदालतों ने उनका पक्ष नहीं सुना था।

मुशर्रफ पर आरोप और पक्ष में दलीलें

तमाम पिटीशन्स 17 दिसंबर 2019 को पूर्व तानाशाह को सुनाई गई सजा-ए-मौत के खिलाफ दायर की गईं थीं। पाकिस्तान की दो अदालतों ने मुल्क से गद्दारी के आरोप में मुशर्रफ को यह सजा सुनाई थी। उन पर लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को गिराने के आरोप थे।

मुशर्रफ की तरफ से उनके वकील सलमान सफदर दलीलें पेश कीं। सलमान ने कहा- मेरे मरहूम (दिवंगत) मुवक्किल को जिस तरह से सजा सुनाई गई थी, वो पाकिस्तान के संविधान और कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर 1898 का उल्लंघन है। वो अब इस दुनिया में नहीं हैं और उनके परिवार ने भी मेरे सवालों के कोई जवाब नहीं दिए हैं और न वो गवाह के तौर पर पेश होना चाहते।

इसके पहले भी मुशर्रफ की तरफ से उनके वकील ने कुछ याचिकाएं दायर की थीं। इनमें मुशर्रफ की सजा निलंबित करने की मांग की गई थी। इनमें ये भी कहा गया था कि पूर्व राष्ट्रपति फोर स्टार जनरल थे और इसके बावजूद उन्हें इंसाफ नहीं मिला।

पिटीशन्स में मुशर्रफ के मिलिट्री कॅरियर का जिक्र करते हुए कहा गया था- पूर्व राष्ट्रपति को सजा हकीकत में संवैधानिक अपराध है, और इसके लिए गैर संवैधानिक तरीका अपनाया गया।

दुबई में हुआ था निधन
5 फरवरी 2023 को परवेज मुशर्रफ का निधन दुबई के हॉस्पिटल में हुआ था। वो लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे। दुबई में इस पूर्व तानाशाह की बेशकीमती प्रॉपर्टीज हैं। जून 2022 में उनके परिवार ने सोशल मीडिया पर कहा था कि वे अमाइलॉइडोसिस नाम की बीमारी से जूझ रहे हैं। इसकी वजह से उनके सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया।

अमाइलॉइडोसिस में इंसान के शरीर में अमाइलॉइड नाम का असामान्य प्रोटीन बनने लगता है। यह दिल, किडनी, लिवर, नर्वस सिस्टम, दिमाग आदि अंगों में जमा होने लगता है, जिस वजह से इन अंगों के टिश्यूज ठीक से काम नहीं कर पाते।

1965 में भारत से लड़े थे युद्ध, कारगिल की साजिश रची

3 नवंबर 2007 की इमरजेंसी और फिर मार्शल लॉ की घोषणा के मामले में 2013 में मुशर्रफ पर देशद्रोह का केस चला। इसके बाद नवाज शरीफ की सरकार ने अप्रैल 2013 में उनकी अंतरराष्ट्रीय यात्राओं पर बैन लगा दिया था। हालांकि परवेज मुशर्रफ ने 18 मार्च 2016 की सुबह पाकिस्तान छोड़ दिया था। देश छोड़ने की वजह खराब सेहत बताई थी।

कॉलेज की पढ़ाई खत्म करने के बाद 21 साल की उम्र में मुशर्रफ ने बतौर जूनियर अफसर पाकिस्तानी आर्मी जॉइन कर ली। उन्होंने 1965 में भारत के खिलाफ जंग लड़ी। खास बात ये है कि पाकिस्तान ये जंग हार गया। इसके बावजूद पाकिस्तान सरकार ने मुशर्रफ को मेडल दिया।

1971 के युद्ध में भी मुशर्रफ की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसे देखते हुए सरकार ने उन्हें कई बार प्रमोट किया। 1998 में परवेज मुशर्रफ जनरल बने। उन्होंने भारत के खिलाफ कारगिल की साजिश रची। जंग भी हारे और दुनिया में पाकिस्तान को बदनाम भी करा दिया। अपनी जीवनी 'इन द लाइन ऑफ फायर-ए मेमोअर' में जनरल मुशर्रफ ने लिखा कि उन्होंने कारगिल पर कब्जा करने की कसम खाई थी, लेकिन नवाज शरीफ की वजह से वो ऐसा नहीं कर पाए।

वाजपेयी से मिलने के लिए रास्ते में काफिला रुकवाया था

2005 में भारत यात्रा पर आए मुशर्रफ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिलना चाहते थे, लेकिन तब की मनमोहन सिंह सरकार टालमटोल कर रही थी, लेकिन मुशर्रफ ने वाजपेयी से मिलने की ठान ली थी। यह मुलाकात 18 अप्रैल 2005 को हुई।

मुशर्रफ ने पाकिस्तान वापसी के लिए पालम हवाई अड्डे जाते समय अपना काफिला 6 कृष्ण मेनन मार्ग पर रुकवा दिया था। वे अटल बिहारी वाजपेयी से मिले और कहा, 'सर, अगर आप प्रधानमंत्री होते तो आज दोनों देशों के बीच के रिश्ते कुछ और होते।'


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