ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजाराभत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गलत ठहराया है। AIMPLB की वर्किंग कमेटी ने रविवार को एक बैठक कर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर चर्चा की।
इस बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें कहा गया कि यह फैसला 'शरिया' (इस्लामी कानून) के खिलाफ है। लिहाजा AIMPLB सभी संभावित उपायों का पता लगाएगा जिससे सुप्रीम कोर्ट से इस फैसले को पलटने को कह सके।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपराध प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144) के तहत अपने पति से भरण-पोषण की हकदार है। इसके लिए वह याचिका दायर कर सकती है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने एक मुस्लिम युवक मोहम्मद अब्दुल समद की याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह फैसला हर धर्म की महिलाओं पर लागू होगा। मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता पाने का उतना ही अधिकार है, जितना अन्य धर्म की महिलाओं को।
तलाक घिनौनी चीज, शादी बनाए रखने की हर कोशिश होनी चाहिए
पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने प्रस्ताव में कहा कि बोर्ड ने इस बात पर जोर दिया कि पैगंबर ने कहा था कि जिन चीजों को करने की इजाजत दी गई है, उसमें से तलाक सबसे घृणित चीज है। लिहाजा शादी के रिश्ते को बनाए रखने के लिए सभी वैध उपाय किए जाने चाहिए।
साथ ही इसके बारे में कुरान में जो दिशानिर्देश दिए गए हैं, उनका पालन करना चाहिए। हालांकि, अगर वैवाहिक जीवन बनाए रखना कठिन हो जाता है, तो तलाक को मानवीय समाधान के तौर पर देखा जा सकता है।
तलाकशुदा महिलाओं के लिए मुश्किल खड़ी करेगा यह फैसला
प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि बोर्ड को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन महिलाओं के लिए और ज्यादा समस्याएं पैदा करेगा जो अपने दर्दनाक रिश्तों से सफलतापूर्वक बाहर आ चुकी हैं।
AIMPLB के प्रवक्ता सैयद कासिम रसूल इलियास ने बैठक के बाद बताया कि AIMPLB ने अपने अध्यक्ष खालिद सैफुल्लाह रहमानी को इजाजत दी है कि वे सभी कानूनी, संवैधानिक और लोकतांत्रिक उपाय करके देखें जिससे सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को वापस लेने के लिए कहा जा सके।
तेलंगाना के युवक की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
तेलंगाना की एक निचली अदालत ने अब्दुल नाम के युवक को आदेश दिया था कि उसे तलाकशुदा पत्नी को 20 हजार रुपए महीना गुजारा भत्ता देना होगा। उसने इस आदेश को तेलंगाना हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने गुजारा भत्ता की राशि घटाकर 10 हजार रुपए महीने कर दी।
इसके बाद अब्दुल ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। अब्दुल का कहना था कि उसने मुस्लिम कानून के तहत तलाक लिया है, लिहाजा उस पर गुजारा भत्ता का कानून लागू नहीं होता। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत उसने अपनी पत्नी को जो देना था, उसका भुगतान तलाक के समय कर दिया था।
जस्टिस नागरत्ना बोलीं- भारतीय पुरुष पत्नी के त्याग को पहचानें
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, 'महिलाओं को भरण-पोषण अर्थात गुजारा भत्ता दान का मामला नहीं है, बल्कि विवाहित महिलाओं का मौलिक अधिकार है। यह ऐसा अधिकार है, जो भारत में धर्मनिरपेक्ष है और धार्मिक सीमाओं से परे है। यह ऐसा अधिकार है, जो सभी विवाहित महिलाओं के लिए लैंगिक समानता और वित्तीय सुरक्षा के सिद्धांत को और मजबूत करता है।'
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, 'अब वक्त आ गया है कि भारतीय पुरुष पत्नी के त्याग को पहचानें। बैंक में उनके जॉइंट अकाउंट खोलें। एटीएम तक उनकी पहुंच बढ़ाएं। कुछ पति इस बात से अनजान हैं कि उनकी गृहणी पत्नी भावनात्मक और अन्य तरीकों से उन पर निर्भर है। पति के लिए जरूरी है कि वे पत्नी को नियमित रूप से वित्तीय सहायता उपलब्ध कराएं।'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- तीन तलाक में भी देना होगा भत्ता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हर धर्म की महिला को समान हक देने का कानून हमारे संविधान में है। इससे किसी को अलग नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कानूनी रूप से अवैध तीन तलाक भी दिया गया है तो महिला गुजारे भत्ते की हकदार होगी।'
कोर्ट ने कहा, 'मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकार का संरक्षण) एक्ट 2019 के तहत तीन तलाक के मामले में महिला को यह अधिकार मिला हुआ है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा- क्या याचिकाकर्ता ने इद्दत के दौरान पत्नी को कुछ भुगतान किया था?
इस पर याचिकाकर्ता ने कहा- 15 हजार रुपए का ड्राफ्ट दिया, लेकिन पत्नी ने लेने से मना कर दिया। तलाक के बाद इद्दत वह अवधि है, जब महिला को दूसरी शादी करने या किसी से रिश्ता बनाने की इजाजत नहीं होती।
एक्सपर्ट बोले- शाह बानो केस के बाद से मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने की व्यवस्था
सुप्रीम कोर्ट के वकील महमूद प्राचा ने बताया कि मुस्लिम महिलाओं को अभी भी गुजारा भत्ता मिल रहा है। दरअसल, CrPC की धारा 125 के तहत कई मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता दिया जा चुका है।
यही नहीं, शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह व्यवस्था बनी थी कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को भी पति से गुजारा भत्ता दिया जाएगा। पति भत्ता नहीं दे पाता है तो ऐसी महिलाओं को वक्फ बोर्ड द्वारा भत्ता दिए जाने का प्रावधान है।
जानिए क्या है CrPC की धारा 125
दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 (अब BNSS की धारा 144) में भरण पोषण का प्रावधान है। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति जिसके पास अपना भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त साधन हैं, वह पत्नी, बच्चों और माता-पिता को भरण-पोषण देने से इनकार नहीं कर सकता।
CrPC की धारा 125 में पत्नी की परिभाषा
दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 (अब BNSS की धारा 144) में पत्नी किसी भी उम्र की हो सकती है- नाबालिग या बालिग। पत्नी का अर्थ कानूनी रूप से विवाहित महिला है। विवाह की वैधता व्यक्तिगत कानूनों द्वारा नियंत्रित होगी। यदि कानूनी रूप से वैध विवाह का तथ्य विवादित है, तो आवेदक को विवाह साबित करना होगा। एक-दूसरे को माला पहनाकर की गई शादी को अमान्य करार दिया गया।