नई दिल्ली ।पिछले मानसून सत्र में देश की सियासत में बवंडर खड़ा करने वाले कथित पेगासस जासूसी मामले की जांच होगी। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार की कमिटी को नकार कर पूर्व जज की निगरानी में स्वतंत्र कमिटी का गठन कर दिया है। मामले पर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने निजता के अधिकार के उल्लंघन के आरोप को अहम मामला माना। सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह मूकदर्शन बनकर नहीं रह सकता है। कोर्ट ने जांच के लिए पूर्व जज के नेतृत्व में तीन साइबर एक्सपर्ट की तकनीकी सपोर्ट के साथ छह सदस्यीय कमिटी बनाई है।कमिटी इसकी जांच करेगी कि क्या मामले में निजता का उल्लंघन हुआ है। कमिटी आठ हफ्ते में अपनी रिपोर्ट देगी।
सुप्रीम कोर्ट की कमिटी पूरी तरह से स्वतंत्र है।बुधवार को मामले में फैसला सुनाकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्याय होना जरूरी है और साथ में न्याय होते दिखना भी जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान निजता के अधिकार का जिक्र कर कहा कि इसकी रक्षा हर कोई चाहता है। तकनीक का इस्तेमाल जनहित में होना चाहिए। तीन सदस्यीय बेंच ने 'निजता' के लिए मशहूर लेखक जॉर्ज ओरवेल का भी जिक्र किया। सुप्रीम कोर्ट की कमिटी में कुल छह सदस्य हैं। इसका नेतृत्व जस्टिस आरवी रविंद्रन करने वाले हैं, कमिटी में पूर्व आईपीएस आलोक जोशी और संदीप ओबेरॉय भी हैं। कमिटी में तीन अन्य एक्सपर्ट भी रखे गए हैं। ये हैं, डॉक्टर नवीन कुमार चौधरी प्रोफेसर नैशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी गांधीनगर, डॉक्टर प्रभाहरण पी प्रोफेसर अम्रिता विश्व विद्यापीठ केरल, डॉक्टर अश्विन अनिल गुमस्ते आईआईटी बॉम्बे शामिल है।
शीर्ष अदालत ने इसके पहले 23 सितंबर को संकेत दिया था कि वह पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि पर पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर जासूसी के आरोपों की जांच के लिए तकनीकी समिति का गठन कर सकती है।सीजेआई एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने मौखिक रूप से वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू. सिंह, जो पेगासस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए थे, से कहा था कि कुछ विशेषज्ञों ने व्यक्तिगत कारणों से जांच में शामिल होने में असमर्थता व्यक्त की है और जल्द ही समिति पर आदेश की उम्मीद है।
सीजेआई ने कहा था कि अदालत इस सप्ताह आदेश पारित करना चाहती थी। हालांकि, आदेश को स्थगित किया गया, क्योंकि कुछ सदस्य, जिन्हें अदालत तकनीकी समिति का हिस्सा बनाना चाहती थी, ने समिति में रहने को लेकर व्यक्तिगत कठिनाइयों को व्यक्त किया है। उन्होंने कहा,इसकारण तकनीकी विशेषज्ञ समिति के गठन में समय लग रहा है।उन्होंने कहा कि अदालत जल्द ही तकनीकी समिति के सदस्यों को अंतिम रूप देगी। केंद्र ने पहले ही जासूसी के आरोपों की जांच के लिए स्वतंत्र सदस्यों से बना एक विशेषज्ञ पैनल गठित करने का प्रस्ताव दिया था।
केंद्र ने कहा था कि यह समिति अपनी रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंप सकती है। कथित जासूसी की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिकाओं के बैच के जवाब में 13 सितंबर को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह अब एक विस्तृत हलफनामा दायर नहीं करना चाहता है, जिसमें यह स्पष्ट किया जाना है कि पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया गया था या नहीं। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया था कि सरकार डोमेन विशेषज्ञों के एक पैनल के समक्ष पेगासस मामले के संबंध में सभी विवरणों का खुलासा करेगी, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी जानकारी को हलफनामे में शामिल नहीं किया गया। मेहता ने जोर देकर कहा था कि इसतरह के आतंकवादी संगठन हैं, जो बेहतर तरीके से नहीं जानते हैं कि आतंकवाद से निपटने के लिए कौन सा सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने कहा, ‘इसके अपने नुकसान हैं।’
केंद्रीय समिति को नकार सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए क्यों बनाई अपनी टीम?
सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मामले की जांच के लिए बुधवार को स्वतंत्र समिति की गठन किया है।सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की समिति को नकार कर अपनी एक्सपर्ट कमिटी गठित कर दी। बेंच ने कहा कि यह न्याय के लिए सही नहीं होगा। कोर्ट ने जिस स्वतंत्र समिति का गठन किया है, उसमें सरकारी तंत्र नहीं है। बुधवार को अदालत ने कहा कि उसने तीन नामी विशेषज्ञों को कमिटी का सदस्य बनाया है। उनकी मदद को साइबर सिक्योरिटी से जुड़े तीन और एक्सपर्ट्स भी उपलब्ध रहने वाले है। अदालत ने कमिटी से सारे आरोपों की विस्तार से जांच करके रिपोर्ट सौंपने को कहा है। सुनवाई की अगली तारीख 8 हफ्ते बाद तय की गई है।
अदालत के अनुसार, किसी सरकारी एजेंसी या निजी संस्था पर निर्भर रहने के बजाय, कोई पूर्वाग्रह न रखने वाले, स्वतंत्र और सक्षम विशेषज्ञों को ढूंढ़ना एक बड़ी चुनौती थी। अदालत ने कहा कि उन्होंने बायोडेटा और स्वतंत्र रूप से जुटाई गई जानकारी के आधार पर कमिटी बनाई है। कोर्ट ने कहा कि कुछ कैंडिडेट्स ने अदालत का प्रस्ताव ठुकराया और कुछ के हितों का टकराव हो रहा था। अदालत ने कहा कि उसने उपलब्ध लोगों में सबसे नामी विशेषज्ञों को कमिटी का हिस्सा बनाया है। कोर्ट ने कहा कि कुछ याचिकाकर्ता पेगासस से सीधे पीड़ित हैं। कोर्ट के अनुसार, हम सूचना युग में रहते हैं और हमें यह समझना होगा कि टेक्नोलॉजी अहम है, मगर निजता के अधिकार की रक्षा करना भी जरूरी है, न सिर्फ पत्रकारों, बल्कि सभी नागरिकों के लिए। अदालत ने कहा कि शुरुआत में याचिकाएं अखबार की रिपोर्ट्स के आधार पर दायर की गई थीं, तब वह संतुष्ट नहीं थी।