नई दिल्ली । जलवायु वार्ता के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया के एक-चौथाई देशों ने ही अभी तक जलवायु खतरों के प्रभावों से निपटने के लिए स्वास्थ्य योजनाएं शुरू की हैं। बाकी देशों में या तो अभी योजनाएं बन रही हैं या फिर धन की कमी या अन्य कारणों से वह शुरू नहीं कर पा रहे हैं। 70 फीसदी देशों ने माना कि स्वास्थ्य कार्यक्रम तैयार नहीं कर पाने की मुख्य वजह आर्थिक संसाधनों की कमी है। ‘डब्ल्यूएचओ हेल्थ एंड क्लाईमेट चेंज ग्लोबल सर्वे रिपोर्ट- 2021’ के अनुसार दुनिया के तीन-चौथाई देशों ने जलवायु खतरों के स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने के लिए अपनी योजनाएं एवं रणनीति तैयार की है, या कर रहे हैं।
लेकिन उन्हें अभी तक एक-चौथाई राष्ट्र ही लागू कर सके हैं। जबकि एक-चौथाई देशों ने भी अभी तक इस दिशा में कोई कदम ही नहीं उठाया है। सर्वेक्षण में 95 देशों ने हिस्सा लिया, जिनमें से 70 फीसदी ने कहा कि आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण वह जलवायु खतरे और स्वास्थ्य कार्यक्रम की शुरुआत नहीं कर पा रहे हैं। जबकि 54 फीसदी ने स्वास्थ्य कार्मिकों की कमी, 52 फीसदी ने कोरोना महामारी को जिम्मेदार माना। 46 फीसदी देशों का यह मानना था कि इस मामले में पर्याप्त अनुसंधान एवं आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। 43 फीसदी का कहना है कि उनके पास इन प्रभावों से निपटने के लिए स्वास्थ्य तकनीकें एवं उपकरणों की कमी है। 39 फीसदी देशों की प्राथमिकता में यह शामिल नहीं है। रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए डब्ल्यूएचओ की निदेशक (पर्यावरण एवं हेल्थ) डॉ. मारिया नाइरा ने कहा कि जलवायु खतरों से निपटने के लिए काप-26 चल रही हैं।
इसलिए सभी देशों को चाहिए कि वे इसके स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रभावों पर भी ध्यान दें तथा इसके लिए आवश्यक रणनीति एवं योजनाएं पेश करें। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव स्पष्ट हैं। वायु प्रदूषण के चलते कुल मौतों में से 80 फीसदी मौतें होती हैं। यदि डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों के अनुसार हवा को शुद्ध बना दिया जाए तो इन मौतों को रोका जा सकता है। इसके अलावा जलवायु प्रभावों के कारण होने वाले विस्थापितों पर स्वास्थ्य के सर्वाधिक प्रभाव पड़ते हैं, जिन्हें नीतियां बनाकर रोका जा सकता है।