पोर्श केस- पुणे पुलिस नाबालिग की जमानत के खिलाफ:सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाएगी, बॉम्बे हाईकोर्ट 25 जून को रिहा कर चुका

Updated on 01-07-2024 02:04 PM

पोर्श कार हादसे के नाबालिग आरोपी की रिहाई के खिलाफ पुणे पुलिस सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगा सकती है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने 25 जून को नाबालिग को जमानत दे दी थी।

तब कोर्ट ने कहा कि हमें आरोपी के साथ वैसे ही पेश आना होगा, जैसे हम कानून का उल्लंघन करने वाले किसी और बच्चे के साथ पेश आते। फिर चाहे अपराध कितना भी गंभीर क्यों न हो।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद किशोर को सुधार गृह से रिहा कर दिया गया और उसकी हिरासत उसकी मौसी को सौंप दी गई थी।

नाबालिग ने पोर्श कार से बाइक को टक्कर मारी थी, दो लोगों की मौत हुई थी
आरोपी ने 18-19 मई की रात पुणे के कल्याणी नगर इलाके में IT सेक्टर में काम करने वाले बाइक सवार युवक-युवती को टक्कर मारी थी, जिससे दोनों की मौत हो गई थी। घटना के समय आरोपी नशे में था। वह 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पोर्श स्पोर्ट्स कार चला रहा था।

नाबालिग के माता-पिता और दादा फिलहाल घटना से संबंधित दो अलग-अलग मामलों में जेल में हैं। लड़के के पिता और दादा की जमानत याचिका पर पुणे की एक अदालत सोमवार को अपना आदेश सुना सकती है।

हाईकोर्ट ने 3 आधार पर नाबालिग को जमानत दी...

1. हाईकोर्ट ने कहा- आरोपी की उम्र 18 साल से कम, उसे ध्यान में रखना जरूरी
आरोपी लड़के की आंटी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में रिहाई की याचिका लगाई थी। इस याचिका में कहा गया था कि लड़के को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में रखा गया है। उसे तुरंत रिहा किया जाना चाहिए।

जस्टिस भारती डांगरे और मंजुशा देशपांडे ने आरोपी को ऑब्जर्वेशन होम भेजने के जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के आदेश को रद्द कर दिया था। बेंच ने यह भी नोट किया कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड का आदेश अवैध था और बिना जुरिस्डिक्शन के जारी किया गया था। एक्सीडेंट को लेकर रिएक्शन और लोगों के गुस्से के बीच आरोपी नाबालिग की उम्र पर ध्यान नहीं दिया गया। CCL 18 साल से कम उम्र का है, उसकी उम्र को ध्यान में रखना जरूरी है।

2. कोर्ट बोला- नाबालिग आरोपी के साथ बड़े आरोपियों जैसा बर्ताव नहीं कर सकता
कोर्ट ने कहा कि हम कानून और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के उद्देश्य से बंधे हुए हैं और हमें आरोपी के साथ वैसे ही पेश आना होगा, जैसे हम कानून का उल्लंघन करने वाले किसी और बच्चे के साथ पेश आते। फिर चाहे अपराध कितना भी गंभीर क्यों न हो। आरोपी रिहैबिलिटेशन में है, जो कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट मुख्य उद्देश्य है। वह साइकोलॉजिस्ट की सलाह भी ले रहा है और इसे आगे भी जारी रखा जाएगा।

3. कोर्ट ने कहा था- एक्सीडेंट के बाद से आरोपी भी सदमे में है
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि, ये सही है कि इस एक्सीडेंट में दो लोगों की जान गई, लेकिन ये भी सच है कि नाबालिग बच्चा भी सदमे में है। कोर्ट ने पुलिस से भी पूछा था कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने किस नियम के आधार पर अपने बेल ऑर्डर में बदलाव किया था। बेंच ने नोट किया था कि पुलिस ने जुवेनाइल बोर्ड के जमानत के आदेश के खिलाफ किसी ऊपरी अदालत में याचिका दाखिल नहीं की थी।

इसे लेकर कोर्ट ने पूछा कि यह किस तरह की रिमांड है? इस रिमांड के पीछे कौन सी ताकत का इस्तेमाल किया गया है। यह कौन सी प्रक्रिया है जिसमें एक शख्स को बेल मिलने के बाद उसे कस्टडी में भेजने का आदेश दिया जाता है।

नाबालिग को जमानत दे दी गई थी, लेकिन अब उसे ऑब्जर्वेशन होम में रखा गया है। क्या ये बंधक बनाने जैसा नहीं है। हम जानना चाहते हैं कि आपने किस ताकत का प्रयोग करके यह कदम उठाया है। हमें लगता था कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड जिम्मेदारी से काम करेगा।

महाराष्ट्र सरकार ने जुवेनाइल बोर्ड के मेंबर्स को भेजा था नोटिस
16 जून को महाराष्ट्र सरकार ने नाबालिग आरोपी को जमानत देने वाले जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के दो सदस्यों को शो-कॉज नोटिस भेजा था।आरोपी को हादसे के बाद हिरासत में लिया गया था, लेकिन जुवेनाइल बोर्ड ने उसे 15 घंटे बाद ही जमानत दे दी थी। जमानत की शर्तों के तहत उसे सड़क दुर्घटनाओं पर निबंध लिखने, ट्रैफिक पुलिस के साथ कुछ दिन काम करने और 7,500 रुपए के दो बेल बॉन्ड भरने को कहा गया था।

राज्य सरकार ने जुवेनाइल बोर्ड के दो सदस्यों के कामकाज की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया था। कमेटी की रिपोर्ट में सामने आया कि दोनों ही सदस्यों के काम करने के तरीके में गड़बड़ियां मिली हैं। इसके बाद महिला व बाल विकास विभाग के कमिश्नर प्रशांत नरणावरे ने दोनों को कारण बताओं नोटिस जारी किया गया।



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