नई दिल्ली । विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बिना असहमति के साथ मिल कर काम करने की व्यवस्था बनानी चाही थी। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री ने नीतिगत सुधारों की शुरूआत की, जिसने शीत युद्ध की समाप्ति और नए वैश्विक संतुलन को प्रदर्शित किया। इसके अलावा उन्होंने चीन से साथ आपसी हितों के आधार पर रिश्ता बनाया था। विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि बदलाव की बयार हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सर्वाधिक संभव है और वहां कूटनीतिक सृजनात्मकता बहुत मजबूती से लागू की जा सकती है, जिसकी प्रेरणा वाजपेयी ने दी थी।
उन्होंने कहा, 'हम परिवर्तन की एक जटिल स्थिति पर गौर कर रहे हैं जो साथ-साथ चल रही है। हिंद-प्रशांत बहुध्रुवीय व्यवस्था और पुनर्संतुलन के दौर से गुजर रहा है।' उन्होंने दूसरे अटल बिहारी वाजपेयी मेमोरियल लेक्चर के उदघाटन भाषण में यह कहा। जयशंकर ने कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र शक्ति की प्रतिस्पर्धा और क्षेत्रीय मतभेद के दौर से गुजर रहा है। वाजपेयी के बारे में बात करते हुए जयशंकर ने कहा, 'यदि हम अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रति उनके रुख को देखें, तो यह पता चलता है कि वह वैश्विक चुनौतियों का प्रभावी तरीके से जवाब देने पर केंद्रित था।
' जयशंकर ने कहा कि जहां तक अमेरिका की बात थी, पूर्व प्रधानमंत्री ने नीतिगत सुधारों की शुरूआत की जो शीत युद्ध की समाप्ति और नए वैश्विक संतुलन के रूप में प्रदर्शित हुए। विदेश मंत्री ने कहा, 'चीन के साथ उन्होंने विदेश मंत्री या प्रधानमंत्री के तौर पर बिना असहमति के साथ मिल कर काम करने की एक व्यवस्था बनानी चाही जो बहुत हद तक परस्पर सम्मान और आपसी हित पर आधारित थी।
उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के साथ सीमा पार आतंकवाद को स्पॉन्सर करने के उसके रास्ते से हटाने की जोरदार कोशिश की थी। यह सब उनके इस विश्वास पर टिका था कि भारत को अपने घर में किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार होना चाहिए। इसने परमाणु विकल्प को पेश किया। इसने आर्थिक आधुनिकीकरण भी किया, जिसकी अगुवाई उन्होंने की।