नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा कि सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम और महाराष्ट्र सार्वजनिक न्यास अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत धर्मार्थ शिक्षण संस्थानों को राज्य में विद्युत उपभोग शुल्क के भुगतान से छूट प्राप्त नहीं है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि बंबई हाईकोर्ट ने श्री विले पार्ले केलवानी मंडल द्वारा संचालित एवं प्रबंधित चैरिटेबल शिक्षण संस्थानों पर लगे विद्युत शुल्क को हटाने में एक गंभीर त्रुटि की है।
श्री विले पार्ले केलवानी मंडल, सोसाइटी पंजीकरण अधिनयिम,1860 के तहत पंजीकृत सोसाइटी है और महाराष्ट्र सार्वजनिक न्यास अधिनियम, 1950 के तहत पंजीकृत धर्मार्थ न्यास भी है। पीठ ने कहा कि 28 फरवरी 2019 का उच्च न्यायालय का फैसला कानून एवं तथ्यों के अनुरूप नहीं है तथा यह खारिज किए जाने योग्य है।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि यदि धर्मार्थ शिक्षण संसथानों की यह दलील स्वीकार कर ली जाए कि स्कूल/कॉलेज या शिक्षा या प्रशिक्षण देने वाले सभी संस्थानों से प्रावधान के मुताबिक विद्युत शुल्क नहीं लिया जा सकता, तो इस स्थिति में इसका बेतुका परिणाम होगा। न्यायालय ने कहा, ‘उस स्थिति में यहां तक कि लाभ अर्जित करने वाले निजी अस्पताल, नर्सिंग होम, दवाखाना और क्लिनिक भी विद्युत शुल्क से छूट देने की मांग करेंगे।’ पीठ ने कहा कि राज्य सरकार, केंद्र सरकार और स्थानीय निकायों तथा सरकारी हॉस्टल के अलावा किसी को विद्युत शुल्क के भुगतान से छूट नहीं दी गई है।