नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाल के समय में देश में वैवाहिक विवादों से संबंधित मुकदमों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है और अब वैवाहिक संस्था के प्रति नाखुशी और कटुता ज्यादा नजर आ रही है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि इसका नतीजा यह हो रहा है कि पति और उसके रिश्तेदारों के साथ अपना हिसाब चुकता करने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जैसे प्रावधानों का इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। धारा 498-ए ससुराल में पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा स्त्री के उत्पीड़न से संबंधित अपराध के बारे में है।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर धारा 498-ए के 'दुरुपयोग' पर चिंता व्यक्त की है। पीठ ने बिहार में एक महिला द्वारा उसके ससुराल वालों के खिलाफ कथित तौर पर क्रूरता के लिए दर्ज प्राथमिकी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उनके खिलाफ स्पष्ट आरोपों के अभाव में मुकदमा चलाने की अनुमति देने से कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट के नवंबर 2019 के उस आदेश के खिलाफ अपील पर फैसला सुनाया, जिसमें पति और उसके कुछ रिश्तेदारों द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया गया था। याचिका में उन्होंने कथित अपराधों के लिए अप्रैल 2019 में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आईपीसी की धारा 498-ए को शामिल करने का उद्देश्य किसी महिला के खिलाफ उसके पति और उसके ससुराल वालों द्वारा की गई क्रूरता को रोकना था, जिससे मामले में तेजी से हस्तक्षेप किया जा सके। पीठ ने अपने 15 पृष्ठ के फैसले में कहा, 'हालांकि, यह भी उतना ही सच है कि हाल के समय में देश में वैवाहिक मुकदमों में भी काफी वृद्धि हुई है और अब वैवाहिक संस्था के प्रति नाखुशी और कटुता ज्यादा नजर आ रही है।
' सुप्रीम कोर्ट, जो मामला दर्ज कराने वाली महिला के ससुराल वालों द्वारा दायर अपील पर विचार कर रही थी, ने कहा कि प्राथमिकी की सामग्री के अध्ययन से पता चलता है कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ सामान्य आरोप लगाए गए थे। पीठ ने कहा, ''शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि 'सभी आरोपियों ने उसे मानसिक रूप से परेशान किया और उसे गर्भ गिराने की धमकी दी।' इसके अलावा, यहां अपीलकर्ताओं में से किसी के खिलाफ कोई विशिष्ट आरोप नहीं लगाया गया है।