भोपाल : इंटरनेशनल जिंक एसोसिएशन (आईजैडए) ने भोपाल में इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा पर एक जानकारीवर्धक सत्र का आयोजन किया, जिसमें इन्फ्रास्ट्रक्चर को ज़ंग से होने वाले नुकसान के बारे में बताया गया। कॉर्कोन इंस्टीट्यूट ऑफ कोरोज़न के मुताबिक विश्व में हर साल ज़ंग से 2.5 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होता है, यानी ज़ंग के कारण विश्व की जीडीपी को लगभग 3 से 4 प्रतिशत और भारत की जीडीपी को लगभग 4 प्रतिशत नुकसान होता है। इसलिए इन्फ्रास्ट्रक्चर को ज़ंग से बचाना बहुत आवश्यक है। भारत में जिंक के विशाल भंडार हैं। इसका उपयोग मुख्यतः आर्किटेक्चर के क्षेत्र में होता है। निर्माण सामग्री के रूप में जिंक कई हरित लाभ प्रदान करता है, इसलिए यह सस्टेनेबल निर्माण परियोजनाओं के लिए बहुत उपयोगी है। जिंक का सबसे बड़ा गुण यह है कि यह टिकाऊ होने के साथ ज़ंगरोधी भी है।
जिंक और इसके ग्राहकों के लिए समर्पित एकमात्र औद्योगिक संगठन, आईजैडए ने इस बारे में जागरूकता बढ़ाने और जिंक के गैल्विनीकरण के लाभों के बारे में बताने के लिए ‘‘इन्फ्रास्ट्रक्चर को ज़ंग से कैसे बचाएं” विषय पर एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया। जिंक पर ज़ंग नहीं लगती। यह प्रमाणित हो चुका है कि इससे इन्फ्रास्ट्रक्चर ज़्यादा टिकाऊ रहता है और उसकी उम्र बढ़ती है, जिससे इसके रखरखाव का खर्च कम आता है।
इस कॉन्फ्रेंस का नेतृत्व करते हुए डॉ. राहुल शर्मा, डायरेक्टर (भारत) - इंटरनेशनल जिंक एसोसिएशन; और प्रोफेसर आनंद एस खन्ना, प्रोफेसर, आईआईटी बॉम्बे (सेवानिवृत्त) ने ज़ंग से इन्फ्रास्ट्रक्चर और जन सुरक्षा को होने वाले जोखिम के बारे में बताया। उन्होंने ज़ंग को रोकने की जरूरत पर बल दिया ताकि इसकी वजह से आर्थिक और पर्यावरण को होने वाले नुकसान कम करके इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाया जा सके।
डॉ. राहुल शर्मा, डायरेक्टर (भारत), इंटरनेशनल जिंक एसोसिएशन ने कहा, ‘‘इन्फ्रास्ट्रक्चर किसी भी देश की वृद्धि एवं विकास की नींव होता है। दुनिया की सबसे बड़ी जिंक कंपनी, हिंदुस्तान जिंक के सहयोग से हम ज़ंग से सुरक्षा के लिए जिंक के उपयोग की जागरुकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस प्लेटफॉर्म द्वारा हमारा उद्देश्य गैल्विनीकरण जैसी टिकाऊ और प्रमाणित ज़ंगरोधी विधियों को बढ़ावा देना है। रेलवे ट्रैक का गैल्विनीकरण इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। रेलवो बोर्ड ने खासकर ज़ंग के जोखिम वाले क्षेत्रों में पटरियों पर जिंक की परत चढ़ाने को अपनी मंजूरी दे दी है। रेलवे ट्रैक्स पर उच्च गुणवत्ता का जिंक थर्मल स्प्रे करने से दुर्घटनाएं रुक सकती हैं, और तेज गति वाली ट्रेनों की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करते हुए उनके पटरी से उतरने का जोखिम कम हो सकता है।’’
प्रोफेसर आनंद एस खन्ना, प्रोफेसर, आईआईटी बॉम्बे (सेवानिवृत्त) ने कहा, ‘‘जिंक की मदद से ज़ंगरोधी विधियाँ इन्फ्रास्ट्रक्चर की आयु बढ़ाने के लिए बहुत आवश्यक हैं। जिंक की परत का उपयोग करके हम बार-बार मरम्मत के कारण पड़ने वाले आर्थिक भार को काफी कम कर सकते हैं, और महत्वपूर्ण संरचनाओं की सुरक्षा व स्थायित्व सुनिश्चित कर सकते हैं।’’
मध्य प्रदेश में ज्यादा नमी और बारिश के कारण आरसीसी संरचनाओं और पुलों को ज़ंग का खतरा रहता है, जिसके कारण रखरखाव की लागत बहुत ज्यादा आती है। यदि आरसीसी संरचनाओं में जिंक की परत चढ़ी सरियों का उपयोग किया जाए, तो उन्हें कम से कम 100 साल तक किसी मरम्मत की जरूरत नहीं पड़ेगी। भोपाल एक सुंदर शहर है, जो सिटी ऑफ लेक्स कहलाता है। निर्माण के लिए इस तरह की सामग्री का उपयोग करके इसकी सुंदरता को सदैव बनाए रखा जा सकता है।
साथ ही सत्र में यह भी कहा गया कि एक योजनाबद्ध विकास और ज़ंग के प्रति विस्तृत जागरुकता द्वारा शहर का इन्फ्रास्ट्रक्चर सस्टेनेबल बनाया जा सकता है। 70 और 80 के दशक में भोपाल शहर में विकसित किए गए क्षेत्र अरेरा कॉलोनी, चार इमली आदि हैं, जो बहुत अच्छी योजना के साथ बनाए गए हैं। लेकिन नए विकसित हुए क्षेत्रों, जैसे कोलार रोड को और ज्यादा योजनाबद्ध होने की जरूरत है। हालाँकि सरकार द्वारा स्मार्ट सिटीज़ पर जोर दिए जाने के बाद हाल ही में निर्मित कुछ परियोजनाओं, जैसे रानी कमलापति रेलवे स्टेशन, राजा भोज एयरपोर्ट आदि ने शहर को गौरवान्वित किया है। इन संरचनाओं के निर्माण में गैल्विनीकृत स्टील का उपयोग किया गया है, इसलिए ये बिना किसी रखरखाव के सालों तक ऐसे ही बनी रहेंगी।
इस विषय में आर्किटेक्ट, मनोज शर्मा ने कहा, ‘‘हमारे देश में जिंक का उपयोग पारंपरिक रूप से पतरों का गैल्विनीकरण करने के लिए होता आया है, लेकिन अब इसका महत्व बढ़ गया है, खासकर गैल्वैल्यूम शीट्स में, जिनका उपयोग परियोजनाओं में विस्तृत रूप से हो रहा हैं। भोपाल में रानी कमलापति रेलवे स्टेशन प्रोजेक्ट में पैसेंजर एयर कॉनकोर्स और प्लेटफॉर्म्स पर सस्पेंडेड कैनोपी के रूप में आर्च शेप में विस्तृत रूप से गैल्विनीकृत जिंक का उपयोग किया गया है। जिंक असाधारण टिकाऊपन, आजीवन वॉरंटी, और डिज़ाईन की स्वतंत्रता के साथ सस्टेनेबल आर्किटेक्चर डिज़ाइन के लिए उत्तम है। यह एक बेहतरीन अग्निरोधी धातु है, जो संरचनाओं की सुंदरता एवं मजबूती बढ़ाती है, इसलिए आधुनिक आर्किटेक्चर परियोजनाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
हाल में ही ज़ंग के बारे में कम जानकारी की वजह से कई ठेकेदार सीमेंट की कॉन्क्रीट बनाने के लिए बोरवेल के पानी का उपयोग कर रहे हैं, जिसमें भारी धातुएं होती हैं। भारी धातुएं आरसीसी संरचनाओं में स्टील की सरियों पर ज़ंग लगा देती हैं, जिससे उन संरचनाओं की उम्र कम हो जाती है, और जन जीवन को खतरा उत्पन्न होता है।
इस सेमिनार में राज्य पीडब्ल्यूडी, सीपीडब्ल्यूडी, एमपीआरआरडीए, आरईएस, भारतीय रेलवे, डब्ल्यूआरडी, भोपाल नगर निगम, स्मार्ट सिटी, एमपी हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों, मुख्य कॉर्पोरेट्स, बिल्डर्स, सीनियर आर्किटेक्ट और स्ट्रक्चरल इंजीनियरों ने हिस्सा लिया, और ज़ंग के बारे में महत्वपूर्ण चर्चा की।
भारत में ज़ंग को कम करने के लिए आईजैडए द्वारा किए गए प्रयासः * दुनिया के अधिकांश हिस्सों में रेल की पटरियों को मैकेनिकल टूट-फूट के कारण बदला जाता है, पर भारत में वो ज़ंग के कारण समय से पहले खराब हो जाती हैं। इसका खर्च बहुत ज्यादा होता है, जिसे रोका जा सकता है, और आईजैडए पुरानी पटरियों की जगह जिंक थर्मल स्प्रे वाली पटरियाँ लगाने के लिए रेलवे मंत्रालय के साथ काम कर रहा है, ताकि ज़ंग को रोका जा सके। *थर्मल स्प्रे के अलावा भारत में विशाल स्तर पर रेल स्टेशन नवीनीकरण कार्यक्रम चलाया जा रहा है, और आईजैडए मंत्रालय की मदद से उन्हें स्टील साईन, खंभों और सहायक संरचनाओं का जीवन बढ़ाने और सुरक्षित बनाने के लिए गैल्विनीकरण के महत्व के बारे में उन्हें शिक्षित कर रहा है। * आईजैडए ने नॉन-रेलवे परियोजनाओं, जिनमें पैदल और वाहल पुल, साईन सपोर्ट, सुरक्षा बैरियर और फेंसिंग एवं ड्रेनेज कंट्रोल के लिए स्टील कल्वर्ट शामिल हैं, के लिए एक शिक्षा व पहुँच कार्यक्रम शुरू किया है। * आईजैडए निरंतर एजेंसियों के लिए टेक्नोलॉजी पर सेमिनार का आयोजन कर रहा है, और निर्माण उद्योग के कार्यक्रमों में प्रेज़ेंटेशन एवं जानकारी का प्रसार कर रहा है, और गैल्वेनाईज़्ड रिबार फोकस ग्रुप लॉन्च कर रहा है।