नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं लेकिन पर्यावरण की सुरक्षा या प्रदूषण से जुड़ा कोई भी मुद्दा राजनीतिक विमर्श में स्थान नहीं पा सका है। अभी राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणा पत्र जारी होने बाकी है। लेकिन जिस प्रकार के मुद्दे चुनाव में हावी है, उससे दूर-दूर तक इस मुद्दे को जगह मिलने की उम्मीद नजर नहीं आती है। एक वर्चुअल सेमिनार में विशेषज्ञों ने यह राय व्यक्त की। क्लाईमेट ट्रेंड्स की तरफ से शुक्रवार को आयोजित कार्यक्रम में वर्ल्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) इंडिया के अजय नागपुरे ने कहा कि कोई मसला तभी राजनीतिक मुद्दा बनता है जब वह आम लोगों का मुद्दा हो। समस्या यही है कि प्रदूषण अभी तक आम लोगों का मुद्दा नहीं बन सका। यह अभी भी पढ़े-लिखे वर्ग का ही मुद्दा है। यदि आम लोगों से उनकी पांच प्रमुख समस्याओं के बारे में पूछेंगे तो प्रदूषण का मुद्दा उसमें शामिल नहीं है। उन्होंने दिल्ली में किए गए एक सर्वे का जिक्र करते हुए बताया कि हमने इस सर्वेक्षण के दौरान लोगों से पूछा था कि पांच ऐसी कौन सी चीजें हैं जिनसे आप नाखुश हैं। यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई कि पर्यावरण उन पांच चीजों में शामिल नहीं था। केंद्र सरकार के नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की स्टीयरिग कमेटी के सदस्य और आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर एसएन त्रिपाठी ने कहा कि हमें यह समझना होगा कि साफ हवा का मुद्दा भारत में बमुश्किल सात-आठ साल से ही उठना शुरू हुआ है। अब इस पर चर्चा हो रही है, इसलिए आगे जरूर यह मुद्दा बनेगा। यूपी में यह सोच बढ़ी है कि इस दिशा में काम होना चाहिए। वेबिनार में क्लाइमेट ट्रेंड्स और यू गॉव द्वारा संयुक्त रूप से किए गए एक सर्वे की रिपोर्ट पेश की गई।