नई दिल्ली: आम चुनाव के नतीजों के बाद देश की राजनीति तेजी से बदली है। अनुमानों के इतर लोकसभा चुनाव में BJP लगातार तीसरी बार अकेले दम बहुमत पाने के लक्ष्य से दूर रही और एक बार फिर सही अर्थों में गठबंधन की सरकार का दौर शुरू हुआ। तब से केंद्र सरकार के भीतर एक के बाद कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए, जिससे गठबंधन सरकार की मजबूरी की बात सामने आई। उदाहरण के लिए, लैटरल एंट्री पर यूटर्न को ले लीजिए, या फिर वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में भेजे जाने की बात या पेंशन का मामला। इसी तरह से बजट में बिहार और आंध्र प्रदेश का खास ख्याल रखा गया। इन सब घटनाओं पर विपक्ष का यही कहना था कि यह BJP को बहुमत से कम, 240 लोकसभा सीटें मिलने का असर है। वहीं, BJP इसे रणनीति और सबको साथ लेकर चलने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति बता रही है। जानकारों के अनुसार, गठबंधन सरकार की स्वाभाविक मजबूरी होती है, लेकिन अभी तुरंत किसी राय को अंतिम मान लेना जल्दबाजी है।
नरम पड़ने के मूड में नहीं विपक्ष
आम चुनाव परिणाम से उत्साहित विपक्ष, केंद्र सरकार और BJP पर दबाव बनाने का एक भी मौका नहीं छोड़ना चाहता। संसद से लेकर इसके बाहर तक, कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों में नई ऊर्जा दिखी। NEET का मुद्दा हो या जाति जनगणना, विपक्ष कहीं न कहीं सरकार पर दबाव बनाने में सफल रहा। इसमें बहुत हद तक उसे परोक्ष रूप से BJP के सहयोगी दलों का भी साथ मिल गया। मसलन वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को JPC में भेजने की मांग NDA के घटक दल TDP ने की। इसी तरह से, लैटरल एंट्री को लेकर विरोध के सुर नीतीश कुमार की पार्टी JDU और चिराग पासवान की ओर से उठे।
विपक्ष से जुड़े एक नेता का कहना है कि पिछले कुछ बरसों में पहली बार BJP दबाव में दिख रही है। ऐसे में अगर अब उन्होंने दबाव कम किया तो BJP फिर वापसी कर सकती है। जाहिर है, विपक्ष हमलावर बना रहेगा। हालांकि उसे पता है कि नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली केंद्र सरकार और BJP काउंटर अटैक करेगी। ऐसे में महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव बेहद अहम हो जाते हैं। विपक्ष जानता है कि अगर इन राज्यों में परिणाम उसके पक्ष में आए तो BJP पर दबाव बनाना और आसान हो जाएगा। लेकिन, अगर BJP का प्रदर्शन बेहतर रहा, तो फिर विपक्ष के लिए आगे की राह बहुत मुश्किल भरी हो जाएगी। यही वजह है कि विपक्ष इन चुनावों पर बहुत ध्यान दे रहा है।
BJP को हराने के लिए समझौता
BJP को विपक्ष कोई मौका नहीं देना चाहता। यही कारण है कि कांग्रेस के एक सीनियर नेता ने बताया कि कांग्रेस इन चुनावी राज्यों में सहयोगी दलों से समझौता करने के लिए अपने हितों को दरकिनार करने को भी तैयार है। जम्मू-कश्मीर में पार्टी ने यही किया। नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुकाबले पार्टी कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इसी तरह से लोकसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र में बेहतर प्रदर्शन के बावजूद कांग्रेस गठबंधन सहयोगियों के साथ सीट शेयरिंग में लचीला रुख दिखा रही है। इन मामलों पर जब पार्टी के भीतर से सवाल उठे, तो शीर्ष नेतृत्व ने यही तर्क दिया कि इन राज्यों में अगर विपक्ष को जीत मिलती है तो आने वाले समय में कांग्रेस को भी बहुत फायदा होगा और BJP का तेजी से पतन होगा।
‘न कोई दबाव, न कोई बदलाव’
BJP इस सियासी चर्चा को अधिक तूल नहीं देना चाहती। पार्टी का दावा है कि किसी मुद्दे पर न तो मोदी सरकार का स्टैंड बदला है और न ही काम करने के तरीके में बदलाव आया है। पार्टी नेताओं के मुताबिक, पहले भी मोदी सरकार सहमति जुटाने की कोशिश करती थी। वे मिसाल देते हैं कि किस तरह किसान बिल को पूर्ण बहुमत की सरकार में वापस लिया गया और CAA पर भी सहमति बनाने की कोशिश हुई, जबकि BJP अकेले दम 300 सीटों के पार थी। जब भी जरूरत हुई, सरकार ने तमाम पक्षों को सुनकर हमेशा बदलाव का रुख दिखाया। BJP नेता 2015 में जमीन अधिग्रहण बिल को वापस लेने और GST में कई संशोधन करने जैसे फैसले भी दिखाते हैं।
BJP इस तर्क को भी खारिज करती रही है कि वह सहयोगियों के दबाव में है। पार्टी नेता पहले की मिसाल देते हैं, जब सहयोगियों की बातों को सरकार में तवज्जो दी गई। लेकिन, इन तर्कों और दावों के बीच आम धारणा यह जरूर बनी है कि 4 जून को आए चुनाव परिणाम का असर केंद्र सरकार पर दिखा है और कहीं न कहीं उसका इकबाल कमजोर हुआ है। यह धारणा आगे जाकर और मजबूत होगी या कमजोर, इसका फैसला बहुत कुछ विधानसभा चुनाव के परिणाम करेंगे। तब तक यह सियासी बहस जारी रहेगी और सरकार के हर फैसले को उसी चश्मे से देखा जाएगा।