ओटावा: कनाडा में बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई के चलते घरों का संकट बढ़ा है। इसने देश में तेजी से बढ़ते अप्रवासियों को लेकर भी बहस को तेज कर दिया है। बड़ी संख्या में कनाडाई लोगों को लगता है कि अप्रवासियों की वजह से कई तरह की दिक्कतें खड़ी हो रही हैं। एनवायरोनिक्स इंस्टीट्यूट ने अपनी रिसर्च में पाया है कि कनाडा में अप्रवासन के लिए जनता का समर्थन तेजी से कम हो रहा है।
एशियन पैसिफिक पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, एनवायरोनिक्स इंस्टीट्यूट ने आप्रवासन पर देश के सबसे लंबे समय तक चलने वाले सर्वेक्षण में पाया है दस में से छह यानी 58 प्रतिशत कनाडाई लोग मानते हैं कि उनकी सरकार बहुत ज्यादा आप्रवासियों को एंट्री दे रही है। रिसर्च कहती है कि इस रुझान में 2023 के बाद से 14 अंकों की वृद्धि हुई है।
कनाडा के समाज में बदलाव को दिखाती है रिसर्च
कनाडा के भविष्य को आकार देने वाले मुद्दों पर जनता की राय का सर्वेक्षण करने के लिए 2006 में माइकल एडम्स ने एनवायरोनिक्स इंस्टीट्यूट फॉर सर्वे रिसर्च की स्थापना की थी। संस्थान ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि रिसर्च से कनाडाई खुद को और अपने बदलते समाज को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं।
रिसर्च कहती है, 'पिछले वर्ष में कनाडाई लोगों का बढ़ता अनुपात इस बात से सहमत है कि शरणार्थी होने का दावा करने वाले कई लोग वास्तविक शरणार्थी नहीं हैं और बहुत से आप्रवासी कनाडाई मूल्यों को नहीं अपना रहे हैं।' रिसर्च बीते कुछ वर्षों की स्थिरता की वजह से समाज में बढ़ती चिंताओं में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाती है।
1998 के बाद ज्यादा बढ़े विदेशी
अध्ययन में कहा गया है कि कनाडाई लोगों को लता है कि 1998 के बाद से बहुत अधिक आप्रवासन हुआ है। करीब 25 साल में पहली बार कनाडाई लोगों के स्पष्ट बहुमत का कहना है कि बहुत अधिक आप्रवासन है और यह दृष्टिकोण लगातार दूसरे वर्ष मजबूत हुआ है। यह प्रवृत्ति पूरी आबादी में है लेकिन प्रेयरी प्रांतों में सबसे ज्यादा है। कंजर्वेटिव पार्टी के अधिकांश समर्थक बहुत अधिक आप्रवासन पर चिंता जताते हैं। लिबरल पार्टी के 45 प्रतिशत और एनडीपी समर्थकों में 36 प्रतिशत इसे गंभीर मुद्दा मानते हैं।
आप्रवासन को हतोत्साहित करने के कारणों के संबंध में कनाडाई लोगों को इस बात की चिंता है आवास की कमी और सामर्थ्य को देखते हुए नए लोगों को कैसे समायोजित किया जाएगा। रिसर्च कहती है कि कनाडाई समाज को विदेशियों का स्वागत करने वाला कहा जाता रहा है लेकिन मौजूदा हालात इस रुख को एक हद तक बदल रहे हैं।