राजस्थान में गुरुवार दोपहर अचानक मौसम में बदलाव हुआ। इसका सबसे ज्यादा असर एयर ट्रैफिक पर नजर आया। इसके कारण जयपुर एयरपोर्ट पर जोधपुर, मुंबई और हैदराबाद से आने वाली तीन फ्लाइट अपने निर्धारित समय पर लैंड नहीं कर पाईं।
इस दौरान जोधपुर-जयपुर फ्लाइट में टर्बुलेंस इतना ज्यादा बढ़ गया कि यात्री घबराकर विमान में ही रोने लगे। विमान के क्रू (स्टाफ) ने यात्रियों को शांत करवाया। वहीं, जयपुर से दिल्ली की फ्लाइट अपने निर्धारित समय से 6 घंटे बाद टेक ऑफ हो पाई।
इंडिगो की फ्लाइट 6E-7406 आज सुबह 11:05 बजे जोधपुर से उड़ान भरकर 1 घंटे 15 मिनट बाद दोपहर 12:20 बजे जयपुर पहुंचने वाली थी। लेकिन, खराब मौसम की वजह से विमान ने दोपहर 12:02 बजे जोधपुर से उड़ान भरी। विमान दोपहर 1:42 बजे जयपुर एयरपोर्ट पर लैंड हुआ।
फ्लाइट 6E-7406 करीब 25 मिनट तक जयपुर के आसमान में चक्कर काटती रही। इस दौरान खराब मौसम की वजह से टर्बुलेंस बढ़ गया। इससे विमान में मौजूद 60 से ज्यादा यात्री घबरा गए। कुछ यात्री रोने लगे। विमान में मौजूद क्रू ने समझाइश कर उन्हें ढांढस बंधाया। इसके बाद 10 चक्कर जयपुर के आसमान में काटने के बाद फ्लाइट की जयपुर एयरपोर्ट पर सुरक्षित लैंडिंग हो पाई।
मुंबई-हैदराबाद की फ्लाइट की लैंडिंग में भी हुई देरी
इसी तरह खराब मौसम की वजह से विस्तारा एयरलाइंस की मुंबई से जयपुर फ्लाइट UK-561 और इंडिगो एयरलाइंस की हैदराबाद से जयपुर फ्लाइट 6E-913 भी निर्धारित वक्त पर जयपुर एयरपोर्ट पर लैंड नहीं हो पाई। दोनों फ्लाइट खराब मौसम की वजह से 25 से 30 मिनट तक आसमान में ही चक्कर काटती रहीं। हालांकि जयपुर के आसमान में मौसम साफ होने के बाद दोनों फ्लाइट की लैंडिंग हो पाई।
उड़ान में हुई देरी, यात्रियों ने किया हंगामा
खराब मौसम की वजह से अलायंस एयरलाइंस की फ्लाइट 9I-844 जयपुर एयरपोर्ट से अपने निर्धारित वक्त के 6 घंटे बाद उड़ान भर पाई। दरअसल, अलायंस एयरलाइंस की फ्लाइट को दोपहर 2:10 बजे दिल्ली के लिए उड़ान भरनी थी। उड़ान में हुई देरी के कारण यात्रियों ने एयरपोर्ट पर हंगामा भी कर दिया। इसके बाद एयरलाइंस स्टाफ ने खराब मौसम का हवाला देकर देर शाम फ्लाइट के संचालन का वादा कर मामला शांत करवाया। रात करीब 8 बजे फ्लाइट दिल्ली के लिए टेक ऑफ हुई।
हिलने लगता है विमान
विमान में टर्बुलेंस या हलचल का मतलब होता है- हवा के उस बहाव में बाधा पहुंचना, जो विमान को उड़ने में मदद करती है। ऐसा होने पर विमान हिलने लगता है और अनियमित वर्टिकल मोशन में चला जाता है यानी अपने नियमित रास्ते से हट जाता है। इसी को टर्बुलेंस कहते हैं। कई बार टर्बुलेंस से अचानक ही विमान ऊंचाई से कुछ फीट नीचे आने लगता है।
यही वजह है कि टर्बुलेंस की वजह से विमान में सवार यात्रियों को ऐसा लगता है, जैसे विमान गिरने वाला है। टर्बुलेंस में प्लेन का उड़ना कुछ हद तक वैसा ही है, जैसे- ऊबड़-खाबड़ सड़क पर कार चलाना। कुछ टर्बुलेंस हल्के होते हैं, जबकि कुछ गंभीर होते हैं।
आखिर क्यों होता है टर्बुलेंस?
हवा ही वातावरण को बनाती है और ये हमेशा मोशन में रहती है। प्लेन उड़ने के लिए हवा के इसी मोशन का इस्तेमाल करते हैं। किसी भी प्लेन को स्थिर तौर पर उड़ने के लिए जरूरी है कि इसके विंग के ऊपर और नीचे से बहने वाली हवा नियमित हो।
कई बार मौसम या अन्य कारणों से हवा के बहाव में अनियमितता आ जाती है। इससे एयर पॉकेट्स बन जाते हैं और इसी वजह से टर्बुलेंस होता है।
टर्बुलेंस कई कारणों से होता है और उसी के आधार पर उसको अलग-अलग कैटेगरी- जैसे क्लियर एयर टर्बुलेंस, मैकेनिकल टर्बुलेंस आदि में बांटा गया है।
टर्बुलेंस तीव्रता के लिहाज से तीन तरह के होते हैं
हल्के टर्बुलेंस: इसमें प्लेन 1 मीटर तक ऊपर-नीचे होता है। यात्रियों को पता भी नहीं चलता।
मध्यम टर्बुलेंस: इसमें जहाज 3-6 मीटर तक ऊपर-नीचे होते हैं। इससे ड्रिंक गिर सकता है।
गंभीर टर्बुलेंस: इसमें जहाज 30 मीटर तक ऊपर-नीचे होते हैं। सीट बेल्ट न लगाए रहने पर पैसेंजर उछलकर गिर सकते हैं।
कितने तरह का होता है टर्बुलेंस?
टर्बुलेंस अलग-अलग कारणों से होता है, टर्बुलेंस को 7 तरह की कैटेगरी में बांटा गया है:
थंडरस्टॉर्म टर्बुलेंस: खराब मौसम और आंधी-तूफान से जुड़ा टर्बुलेंस बहुत खतरनाक हो सकता है, जिससे विमान पर बहुत दबाव पड़ने से नियंत्रण खो देने का खतरा रहता है। थंडरस्टॉर्म से पैदा टर्बुलेंस इतना ताकतवर हो सकता है कि किसी विमान को 2 से 6 हजार फीट वर्टिकली ऊपर या नीचे ले जा सकता है। मुंबई-दुर्गापुर फ्लाइट थंडरस्टॉर्म टर्बुलेंस में ही फंसी थी।
क्लियर एयर टर्बुलेंस यानी CAT: विमान इस टर्बुलेंस को भी महसूस करते हैं। ये टर्बुलेंस जेट स्ट्रीम इलाके में होती हैं। जेट स्ट्रीम बेहद शक्तिशाली वायु धाराएं होती हैं, जिनकी स्पीड 250 से 400 किमी/घंटे होती है। इनसे टर्बुलेंस तब होता है, जब ये तेज हवाएं धीमी स्पीड से चल रही हवाओं से मिलती है। इनका अनुमान लगा पाना मुश्किल होता है।
वेक टर्बुलेंस: ये टर्बुलेंस विमान के हवा से गुजरने के दौरान उसके पीछे बनता है। जब विमान हवा से गुजरता है तो जहाज का विंगटिप यानी उसके विंग का मुड़ा हुआ हिस्सा भंवर बनाता है। साथ ही ये जेट वॉश यानी जेट इंजन से तेजी से निकलने वाली मूविंग गैसों से भी बनता है। यह बहुत गंभीर टर्बुलेंस होता है, लेकिन करीब 3 मिनट ही रहता है।
माउंटेन वेव टर्बुलेंस: ये टर्बुलेंस भी मैकेनिकल टर्बुलेंस जैसा ही होती है, बस इसमें बिल्डिंग की जगह पहाड़ होते हैं। जब हवा पहाड़ों की चोटी के ऊपर से बहती है और फिर नीचे की ओर बहती है, तो एक स्टैंडिंग माउंटेन वेव बनती है और हवाएं ऊंचाई के बीच झूलने लगती हैं, जिससे हवाएं सैकड़ों मील ऊपर और नीचे की ओर बहने लगती हैं।
मैकेनिकल टर्बुलेंस: ये टर्बुलेंस धरती के सरफेस के पास की हवा की रुकावटों, जैसे कि पहाड़ों, या इमारतों के ऊपर से बहने से होता है। इससे सामान्य हॉरिजोंटल एयर फ्लो डिस्टर्ब हो जाता है और भंवर और हवा के अनियमित मोशन जैसे पैटर्न में बदल जाता है। टेक-ऑफ या लैंडिंग के समय, हवाएं पहाड़ियों या शहर की इमारतों से टकराती हैं और छोटे-छोटे भंवर बनाती हैं जो प्लेन के टर्बुलेंस का कारण बनते हैं।
थर्मल टर्बुलेंस: ये टर्बुलेंस तब होता है, जब गर्म हवा ऊपर उठती है और हवा का एक बड़ा हिस्सा नीचे की ओर आता है, तो इससे हवा के बहाव में अनियमितता पैदा हो जाती है।
फ्रंटल टर्बुलेंस: ये टर्बुलेंस अक्सर ठंड में होता है। इस समय ठंडी हवा गर्म हवा के पास पहुंचती है, तो दो विपरीत हवाएं फ्रिक्शन पैदा करती हैं। ये कॉमर्शियल फ्लाइट्स में महसूस किया जाने वाला सबसे आम टर्बुलेंस है।