नई दिल्ली। इतिहास का सबसे बंटा हुआ शीतकालीन ओलंपिक का आगाज चीन के बीजिंग शहर में शुक्रवार को शुरू हो गया। इस ओलंपिक को कई कारणों से दशकों तक याद रखा जाएगा। सबसे पहले तो कोरोना काल में इसका आयोजन हो रहा है। दूसरा, दुनिया के कई देशों ने मानवाधिकार के हनन को लेकर इसका राजनयिक बहिष्कार किया है। भारत भी इस फेहरिस्त में शामिल हो गया है। अमेरिका ने सबसे पहले इसके राजनयिक बहिष्कार करने की घोषणा की थी। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, जापान, नीदरलैंड और न्यूजीलैंड ने भी इसका बहिष्कार कर दिया। राजनयिक बहिष्कार एक सांकेतिक विरोध है, इसका खेलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसका मतलब यह हुआ कि सरकार की तरफ से आधिकारिक तौर पर कोई राजनयिक बड़ी अंतरराष्ट्रीय सभाओं और प्रमुख शिखर सम्मेलनों में हिस्सा नहीं लेते हैं। हालांकि खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं। राजनयिक बहिष्कार के पीछे अमेरिका के राष्ट्रपति कार्यालय चीन में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन का हवाला दिया। इसको चीन के शिनजियांग में मुस्लिम उइगर अल्पसंख्यकों पर उत्पीड़न के खिलाफ उठाया गया कदम माना जा रहा है। ऐसे में आधिकारिक प्रतिनिधित्व को भेजना उत्पीड़न को नजरअंदाज करने जैसा है। फाबाओ के मशाल रिले में हिस्सा लेने को यहां आधिकारिक मीडिया ने सुर्खियां बनाया था। दिल्ली में भारत ने गुरुवार को घोषणा की कि बीजिंग में भारतीय दूतावास के मामलों के प्रमुख 2022 शीतकालीन ओलंपिक के उद्घाटन या समापन समारोह में हिस्सा नहीं लेंगे, क्योंकि चीन ने गलवान घाटी झड़प में शामिल सैन्य कमांडर फाबाओ को इस प्रतिष्ठित खेल प्रतियोगिता का मशाल धावक बनाकर सम्मानित किया है। हालांकि पश्चिमी देशों के राजनयिक बहिष्कार से बौखलाए चीन ने उनको भारी कीमत चुकाने की चेतावनी दी है। साथ ही ड्रैगन ने इसको लेकर अमेरिका पर साजिश रचने का आरोप लगाया है।