नई दिल्ली । देश में कोरोना के ओमिक्रान वायरस के नए वेरिएंट के कारण देश में आई तीसरी लहर के दौरान टीकाकरण ने महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। वैक्सीनेशन अभियान की वजह से न सिर्फ मौत के आंकड़े घटे हैं बल्कि मरीजों के अस्पतालों में भर्ती होने की दर भी काफी घटी है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि ओमिक्रोन को हल्के में लिया जाए। देश में ओमिक्रोन संक्रमण से जिन लोगों की मौत हुई उनमें से 10 प्रतिशत को वैक्सीन की दोनों खुराक लग चुकी थी।
नेशनल क्लिनिकल रजिस्ट्री ऑफ कोविड-19 के डेटा के अध्ययन में ये नतीजे सामने आए हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के डायरेक्टर जनरल बलराम भार्गव ने बताया कि ओमिक्रोन संक्रमण से अस्पताल में भर्ती पूरी तरह वैक्सीनेट मरीजों में 10 प्रतिशत की मौत हुई। वैक्सीन नहीं लगवाने या सिर्फ एक डोज लगवाने वाले मरीजों में ये आंकड़ा करीब 22 प्रतिशत रहा। भार्गव ने स्टडी का हवाला देते हुए बताया कि वैक्सीनेशन बढ़ने की वजह से तीसरी लहर के दौरान मौत के आंकड़ों में काफी कमी आई।
ओमिक्रोन लहर में मौत के आंकड़े भले ही कम हुए हों लेकिन पहले से किसी अन्य गंभीर बीमारी से पीड़ित यानी को-मॉर्बिडिटीज वाले लोगों के लिए ये बेहद खतरनाक साबित हुई है। तीसरी लहर के दौरान वैक्सीन की दोनों डोज लगवा चुके जिन कोरोना मरीजों की मौत हुई, उनमें से करीब 91 प्रतिशत ऐसे थे जो पहले से ही कम से कम किसी अन्य गंभीर बीमारी से पीड़ित थे। वहीं वैक्सीन नहीं लगवाने या सिर्फ एक डोज लगवाने वाले जिन मरीजों की मौत हुईं उनमें से 83 प्रतिशत पहले से किसी अन्य गंभीर बीमारी से पीड़ित थे। नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वीके पॉल ने बताया कि ओमिक्रोन से संक्रमित 3 से 4 प्रतिशत मरीजों को ही अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आई। डेल्टा के मुकाबले ओमिक्रोन लहर में ज्यादा युवा अस्पताल में भर्ती हुए। दूसरी लहर लाने वाले डेल्टा वेरिएंट की वजह से अस्पताल में भर्ती होने वालों की औसत आयु 55 वर्ष थी जबकि ओमिक्रोन से भर्ती होने वालों की औसत आयु 44 वर्ष है।