नई दिल्ली । बिहार के शराबबंदी कानून के कारण अदालतों में बढ़े मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की है। उसने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या इस कानून को बनाने से पहले सरकार ने अदालतों पर पड़ने वाले बोझ के बारे में कोई अध्ययन किया था। शीर्ष अदालत ने सरकार से यह भी पूछा कि जिस तरह से केस अदालतों में आ रहे हैं उसे देखते हुए क्या प्ली बारगेनिंग के प्रावधानों का इस्तेमाल शुरू कर सकते हैं।
प्ली बारगेनिंग करके अभियुक्तों को कम सजा देकर जल्द रिहा किया जा सकता है। न्यायालय ने यह बात जमानत याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई करते हुए कही। इससे पूर्व, पिछले वर्ष मुख्य न्यायाधीश ने भी इस मामले में चिंता जताई थी कि सरकार कानून बना देती है लेकिन उससे पैदा होने वाले मुकदमों के लिए कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं तैयार करती। इससे मौजूदा प्रणाली पर ही सारा बोझ आ जाता है। देश के मुख्य न्यायाधीश ने यह बात एक सेमिनार में कही थी। लेकिन अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक पक्ष पर उठाया है और सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने बिहार सरकार से कहा कि अगली सुनवाई पर वह यह बताए कि कितने मामलों में लोगों को जमानत नहीं दी गई है।
जमानत नहीं मिलने से जेलों में भीड़ बढ़ रही है शीर्ष न्यायालय ने चिंता जताते हुए कहा कि हाईकोर्ट में शराबबंदी कानून के अभियुक्तों के इतने मुकदमे हो गए हैं कि एक समय में पटना हाईकोर्ट में 16 जज शराबबंदी के अभियुक्तों की जमानत याचिकाएं सुन रहे होते हैं। ऐसे में जरूरी नहीं है कि जज मामले को ठीक से सुन पाए। इस केस में यही शिकायत है कि उसका केस ठीक से नहीं सुना गया और न ही कोर्ट ने बुद्धिमत्ता का प्रयोग किया है। प्ली बारगेनिंग का मतलब अपराध स्वीकार कर कम सजा लेने के लिए मोल भाव करना (अपराध दंड सौदा) है।
ट्रायल अदालत में प्ली बारगेनिंग स्वीकार होने पर अभियुक्त को जमानत पर छोड़ा जा सकता है या उसे मुक्त किया जा सकता है। प्ली बारगेनिंग के लिए सीआरपीसी, 1973 की धारा 265 (ए–एल) में प्रावधान दिए गए हैं। सात साल या उससे कम की सजा के अपराधों में ही प्ली बारगेनिंग की जा सकती है। महिलाओं के प्रति अपराध और 14 साल से कम आयु के बच्चों के साथ अपराधों पर ये प्रावधान लागू नहीं होते। वर्ष 2005 में इन प्रावधानों को एक संशोधन के जरिये सीआरपीसी में जोड़ा गया था।