वाशिंगटन: ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के द्वारा बनाया गया संगठन BRICS इस समय तेजी से अपने विस्तार में लगा हुआ है। इस विस्तार में चीन और रूस की सबसे अहम भूमिका है, जो अमेरिका के दबदबे वाली अर्थव्यवस्था को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है। दोनों की एक प्रमुख महत्वाकांक्षा विश्व अर्थव्यवस्था में एक नया ऑर्डर तैयार करना है। ब्रिक्स ने हाल ही में मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात को शामिल करने के साथ ही समूह का विस्तार किया है। अब इस समूह को ब्रिक्स प्लस के नाम से जाना जाने लगा है। हालांकि, अर्जेंटीना ने इसमें शामिल होने के निमंत्रण को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया। वहीं, समाचार रिपोर्टों में सऊदी अरब के भी इसमें शामिल होने की जानकारी दी थी, जिसे बाद में रियाद ने खारिज कर दिया।क्या जी7 को पीछे छोड़ देगा ब्रिक्स?
इसके साथ ही दुनिया भर में विशेषज्ञों के बीच इस बात को लेकर चर्चा तेज हो गई है कि ब्रिक्स प्लस एक महत्वपूर्ण वैश्विक आर्थिक इकाई बनने जा रहा है, जो G7 देशों और सीमा पार व्यापार और निवेश के लिए डॉलर पर दुनिया की निर्भरता को खत्म कर देगा। लेकिन ये अनुमान और आशंकाएं कितनी सही हैं, क्या वास्तव में ब्रिक्स प्लस आने वाले समय में जी7 समूह के वैश्विक आर्थिक दबदबे को खत्म करने में कामयाब होगा?फोर्ब्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा होने की संभावनाएं बहुत कम हैं, क्योंकि ब्रिक्स के सदस्यों के घरेलू और बाहरी उद्देश्यों में बुनियादी संरचनात्मक और व्यवहार संबंधी गहरे अंतर हैं। हालांकि, मीडिया ने ब्रिक्स के वैश्विक अर्थव्यवस्था को अपने रूप में ढालने के लिए एक रणनीतिक कार्यक्रम को सफलतापूर्वक शुरू करने की काफी चर्चा की है, लेकिन इस बात को नजरअंदाज किया गया कि इसका परिणाम सदस्यों के आंतरिक कामकाज और बाहरी उद्देश्यों के बीच एकरूपता पर निर्भर करता है।
ब्रिक्स देशों में मतभेद
खेल में सबसे अच्छी टीमें वो बनती है जो रक्षा और आक्रमण दोनों में सामूहिक रूप से व्यवस्थित रूप से खेल सकती हैं। यह नियम आर्थिक क्षेत्र पर भी लागू होता है। ब्रिक्स के सदस्यों के बीच कई विभाजन मौजूद हैं, जो समूह के प्रभावी ढंग से काम करने की उनकी क्षमताओं को बहुत सीमित कर देगी। इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण चीन और भारत के बीच तुलना है। वर्तमान में दोनों की आबादी बराबर है और वे बड़े भूभाग पर अधिकार रखते हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जबकि चीन पर एक तानाशाह कम्युनिस्ट शासन इकलौते वर्चस्व वाले एक ताकतवर व्यक्ति का शासन है। इसके साथ ही दोनों के बीच सीमा विवाद के चलते सैन्य झड़पों का लंबा इतिहास है। हाल ही में 2022 और फिर 2022 में ताजा झड़प दोनों के बीच संबंधों को दिखाती हैं। इस पर बीजिंग और नई दिल्ली ने 15 दौर से अधिक की सैन्य वार्ता की है, लेकिन कोई समाधान नहीं दिख रहा है। एक तरफ सैन्य झड़प और दूसरी तरफ वैश्विक मंच पर आर्थिक सहयोग, यह दोनों एशियाई दिग्गजों के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
इसके साथ ही ब्रिक्स देशों में अलग-अलग आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विशेषताओं वाले राज्यों को शामिल करना इस विभाजन को और बढ़ाता है। वर्तमान में 9 ब्रिक्स देशों को भूमि क्षेत्र और जनसंख्या के आकार के संदर्भ में देखें तो वे सामूहिक रूप से दुनिया की आबादी का 45 फीसदी हिस्सा हैं, जबकि ये देश सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 28 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं। अगर सऊदी अरब भी इसमें शामिल होता है तो ब्रिक्स जीडीपी में वैश्विक हिस्सेदारी 1.4 प्रतिशत बढ़ जाएगी।