चीन ने शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय विवाद सुलझाने के लिए एक नया संगठन बनाया है। इसका नाम इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर मीडिएशन (IOMed) है। इसे इंटरनेशनल कोर्ट (ICJ) और परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन जैसे संस्थानों के विकल्प के तौर पर पेश किया गया है।
इसमें 85 देशों और लगभग 20 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के करीब 400 बड़े अधिकारी शामिल हुए। इनमें से 33 देशों ने तुरंत हस्ताक्षर करके IOMED के संस्थापक सदस्य बन गए।
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने IOMed को मध्यस्थता के जरिए अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने वाला दुनिया का पहला 'सरकारों के बीच का कानूनी संगठन' (इंटर-गवर्नमेंटल कानूनी संगठन) बताया।
हेड ऑफिस हॉन्गकॉन्ग में होगा
हॉन्गकॉन्ग में आयोजित एक हाई लेवल समारोह में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने IOMed की स्थापना के समझौते को औपचारिक रूप दिया।
इंडोनेशिया, पाकिस्तान, बेलारूस, क्यूबा और कंबोडिया उन 33 से देशों में शामिल थे, जो चीन के साथ इस संगठन के संस्थापक सदस्य बने।
IOMED का मुख्यालय हॉन्गकॉन्ग में होगा। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि हॉन्गकॉन्ग खुद एक मिसाल है कि कैसे विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाया जा सकता है।
हॉन्गकॉन्ग सरकार के प्रमुख जॉन ली ने कहा कि उनकी सरकार IOMED को हर तरह से समर्थन देगी, ताकि ये संगठन जल्द और भरोसेमंद हल निकाल सके।
सिर्फ मध्यस्थता के लिए काम करेगा
चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि चीन दुनिया के मुद्दों को बातचीत और समझदारी से हल करना चाहता है, लड़ाई-झगड़े से नहीं।
उन्होंने कहा- IOMed की स्थापना 'तुम हारो, मैं जीतूं' की सोच को पीछे छोड़ने में मदद करेगी।
इसका मकसद देशों के बीच और दूसरे देश के नागरिकों के बीच, या अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक संगठनों के बीच विवादों को हल करना है। यह सिर्फ मध्यस्थता के जरिए अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने के लिए बनाया गया है।
ग्लोबल साउथ में चीन का प्रभाव बढ़ सकता है
एक्सपर्ट्स को आशंका है कि चीन की इस पहल से कई विकासशील देशों और ग्लोबल साउथ में चीन का प्रभाव बढ़ सकता। हालांकि, इस संगठन के कामकाज को लेकर अभी कोई साफ जानकारी नहीं है।
चीन की कर्ज नीति और विस्तारवादी रवैए की वजह से इस संगठन की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। हालांकि, चीन ने दावा है कि यह संगठन संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन करेगा।