सिंगरौली : संयुक्त राष्ट्र के अनुसार कुपोषण की रफ्तार तेज हुई है, ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2004-06 में 24 करोड़ आबादी कुपोषित थी। इन्हें या तो एक वक्त का खाना नहीं मिल पाता था या इनके भोजन में पौष्टिक तत्व 50% से कम थे। दुनिया में भुखमरी तो पिछले 15 साल से लगातार बढ़ रही है, लेकिन इसकी रफ्तार पिछले दो साल में तेज हुई है।
दूसरी ओर, भारत की स्थिति में थोड़ा सुधार देखने को मिला है।भारत में फाइट हंगर फाउंडेशन और एसीएफ इंडिया ने मिलकर "जनरेशनल न्यूट्रिशन प्रोग्राम" की शुरुआत की है। उल्लेखनीय है कि आर्थिक परिवर्तन और सामाजिक बदलाव को हासिल करने के लिये इसकी बहुत जरूरत है। महिला और बाल विकास मंत्रालय यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है कि बच्चों का अच्छा पोषण हो, वे खुशहाल हों तथा महिलायें आत्मविश्वास से परिपूर्ण हों और आत्मनिर्भर बनें ।
हिंडालको महान के सी.एस.आर. विभाग ने अपने आसपास के 15 गांवों और 15 नगर परिषद वार्डों में संचालित 60 से ज्यादा आंगनवाड़ियों में 45 कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चों की पहचान की है। इन बच्चों को हर माह पोषण किट प्रदान की जा रही है और उनके स्वास्थ्य की रिपोर्ट इकट्ठी कर उनके जरूरत अनुसार पोषण आहार किट प्रदान की जा रही है। अगले 6 महीनों तक बच्चों की पूर्ण निगरानी की जाएगी।
देश मे कुपोषित बच्चो के आंकड़े अच्छे नहीं हैं, लेकिन हिंडालको महान के सी.एस.आर. विभाग की इस पहल से कुपोषण के खिलाफ जंग में शासन को ताकत मिलेगी। पोषण आहार किट वितरण कार्यक्रम में हिंडालको महान के सी.एस.आर. विभाग के शीतल श्रीवास्तव ने बताया कि इस पोषण आहार किट में हॉर्लिक्स, ग्लूकोज, मूंगदाल, काला चना, और दूध पाउडर दिया जा रहा है, जिससे बच्चों को बेहतर पोषक तत्व प्राप्त होंगे।
कार्यक्रम में हिंडालको महान हॉस्पिटल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अमित श्रीवास्तव ने बताया कि विश्व में कुपोषण की स्थिति एक गंभीर समस्या है जो कई देशों में बच्चों और वयस्कों को प्रभावित कर रही है। कुपोषण का मतलब है कि शरीर को आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिल रहे हैं, जिससे स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। अल्पपोषण तब होता है जब व्यक्ति के भोजन में कैलोरी और पोषक तत्वों की कमी होती है। यह समस्या विकासशील देशों में अधिक है। माइक्रोन्यूट्रिएंट की कमी से विटामिन और खनिज जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होती है, जो शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित कर सकती है। गरीबी, आर्थिक असमानता, अशिक्षा, और स्वास्थ्य जानकारी की कमी भी कुपोषण के प्रमुख कारण रहे हैं। हमें पोषण कार्यक्रम और नीतियों को मजबूत और प्रभावी बनाना होगा।
कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक सहयोग और प्रयास आवश्यक हैं। विभिन्न देशों की सरकारें, अंतर्राष्ट्रीय संगठन, और गैर-सरकारी संगठन मिलकर काम कर रहे हैं ताकि इस समस्या का समाधान किया जा सके। इसी कड़ी में आज पोषण आहार बाँटे जा रहे हैं, और उम्मीद है कि 6 महीने बाद 45 बच्चों को कुपोषण से बाहर निकालने में सफलता मिलेगी।