नई दिल्ली । एस जयशंकर पेरिस में यूरोपीय संघ की एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग लेंगे जहां हिंद-प्रशांत और चीन की भूमिका पर चर्चा होगी. बैठक से पहले जयशंकर ने माना कि भारत और चीन के रिश्ते इस समय एक "बड़े मुश्किल चरण" से गुजर रहे हैं.
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर फ्रांस की तीन दिवसीय यात्रा पर 20 फरवरी को पेरिस पहुंचे. वहां वो कई द्विपक्षीय मुलाकातों के अलावा हिंद-प्रशांत पर यूरोपीय विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेंगे. पेरिस पहुंच कर जयशंकर ने फ्रांस के विदेश मंत्री जौं ईव ल द्रीयौं से भारत-फ्रांस सहयोग, यूक्रेन में स्थिति और हिंद-प्रशांत क्षेत्र जैसे विषयों पर बातचीत की।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक यूक्रेन पर दोनों नेताओं ने यह माना कि तनाव को कम करने के लिए दोनों देश बहुपक्षवाद और नियम आधारित व्यवस्था के सिद्धांतों का समर्थन करते हैं। हालांकि इस दौरे में सबकी नजर जयशंकर के हिंद-प्रशांत सम्मेलन में भाग लेने पर रहेगी।
बीते कुछ समय से यूरोपीय देशों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र की तरफ अपना ध्यान केंद्रित किया हुआ है। संघ ने सितंबर 2021 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग की रणनीति की घोषणा की थी। यह इस तरह का पहला कार्यक्रम है। इसमें यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के विदेश मंत्री और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के 30 देशों के विदेश मंत्रियों से मिलेंगे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता फ्रांस और संघ मिल कर करेंगे। सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से लेकर वैश्विक गवर्नेंस और समुद्री सुरक्षा जैसे विषयों पर चर्चा होगी। माना जा रहा है कि यूरोपीय देश इस प्रांत में चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को लेकर चिंतित हैं और इसके खिलाफ संदेश देना चाहते हैं।
इसी उद्देश्य से पिछले साल जर्मनी ने अपना जंगी जहाज भी इस इलाके में भेजा था। इसे जर्मनी ने अगस्त में इंडो-पैसिफिक प्रांत में "गश्त और प्रशिक्षण" के एक अभियान पर भेजा था। उसके बाद दक्षिणी चीन सागर में प्रवेश कर यह करीब 20 सालों में ऐसा करने वाला पहला जर्मन युद्धपोत बन गया था।
चीन पूरे दक्षिणी चीन सागर पर अपने स्वामित्व का दावा करता है लेकिन अन्य देश इस दावे से सहमत नहीं हैं। एक अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल ने एक फैसले में यह भी कहा था कि चीन के दावों का कोई कानूनी आधार नहीं है। लेकिन चीन ने अपनी नीति जारी रखी है और इलाके में कई सैन्य सीमा चौकियां भी बना ली हैं।
चीन को इस बैठक में नहीं बुलाया गया है। हालांकि यूरोपीय संघ के लिए भी यह स्थिति एक रस्सी पर चलने जैसी है क्योंकि चीन के साथ यूरोपीय देशों के गहरे व्यापारिक रिश्ते भी हैं। इस लिहाज से भारत और ईयू दोनों ही इस सम्मेलन से किस तरह के संदेश देंगे यह देखना दिलचस्प होगा