कुरान पढ़ाने वाले पजशकियान ईरान के राष्ट्रपति बने:इराक से जंग लड़ी, हिजाब का विरोध किया

Updated on 06-07-2024 01:26 PM

ईरान में मसूद पजशकियान देश के 9वें राष्ट्रपति बन गए हैं। उन्होंने कट्टरपंथी नेता सईद जलीली को 30 लाख वोटों से हराया। ईरान में शुक्रवार (5 जुलाई) को दूसरे चरण की वोटिंग हुई थी। इसमें करीब 3 करोड़ लोगों ने मतदान किया था।

ईरानी स्टेट मीडिया IRNA के मुताबिक, पजशकियान को 1 करोड़ 64 लाख वोट मिले, जबकि जलीली को 1 करोड़ 36 लाख वोट हासिल हुए। पजशकियान कुरान के टीचर हैं। वे शिया समुदाय के लोगों को नहज-अल-बलाघा पढ़ाते हैं। इसमें शियाओं के पहले इमाम के उपदेश हैं। पजशकियान 1980-1988 तक चली ईरान-इराक जंग में मेडिकल असिस्टेंस पहुंचाने का काम भी करते थे।

5 जुलाई को 16 घंटे तक चली वोटिंग में देश की करीब 50% (3 करोड़ से ज्यादा) जनता ने वोट डाला। आधिकारिक समय के मुताबिक, मतदान शाम 6 बजे खत्म होना था। हालांकि, बाद में इसे रात 12 बजे तक बढ़ा दिया गया था। ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की 19 मई को हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत के बाद देश में राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा की गई थी।पहले चरण में किसी को नहीं मिला था बहुमत

ईरान में पहले चरण की वोटिंग 28 मई को हुई थी। इसमें कोई भी उम्मीदवार 50% वोट हासिल नहीं कर पाया था, जो चुनाव जीतने के लिए जरूरी है। हालांकि, पजशकियान 42.5% वोटों के साथ पहले और जलीली 38.8% वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे।

ईरान के संविधान के मुताबिक, अगर पहले चरण में किसी भी उम्मीदवार को बहुमत नहीं मिलता है, तो टॉप 2 उम्मीदवारों के बीच अगले चरण की वोटिंग होती है। इसमें जिस कैंडिडेट को बहुमत मिलता है, वो देश का अगला राष्ट्रपति बनता है।

देश के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई ने शुक्रवार सुबह वोट डालने के बाद कहा था कि पिछले चरण की तुलना में इस बार अधिक वोटिंग हो रही है। ये बेहद खुशी की बात है। दरअसल 28 मई को सिर्फ 40% ईरानियों ने वोट डाला था। यह आंकड़ा 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद सबसे कम रहा था।

मुस्लिम देश में हिजाब का विरोध करते हैं मसूद पजशकियान
तबरीज से सांसद पजशकियान की पहचान सबसे उदारवादी नेता के रूप में रही है। ईरानी मीडिया ईरान वायर के मुताबिक लोग पजशकियान को रिफॉर्मिस्ट के तौर पर देख रहे हैं। उन्हें पूर्व राष्ट्रपति हसन रूहानी का करीबी माना जाता है।

पजशकियान पूर्व सर्जन हैं और फिलहाल देश के स्वास्थ्य मंत्री हैं। डिबेट में वे कई बार हिजाब का विरोध कर चुके हैं। उनका कहना है कि किसी को भी मॉरल पुलिसिंग का हक नहीं है।

2022 में महसा अमीनी की मौत के बाद ईरान में हिजाब का विरोध हो रहा था। तब पजशकियान ने ईरान की सत्ता के खिलाफ जाते हुए एक इंटरव्यू में कहा था, "यह हमारी गलती है। हम धार्मिक विश्वास को ताकत के जरिए थोपना चाहते हैं। यह सांइटिफिक तौर पर मुमकिन नहीं है।"

पजशकियान ने कहा था, "देश में जो भी हो रहा है उसके लिए मेरे साथ-साथ धार्मिक स्कॉलर और मस्जिदें, सब जिम्मेदार हैं। एक लड़की को पकड़कर, उसे मारने के बाद परिवार को उसका शव देने की जगह सभी को आगे आकर बदलाव की जिम्मेदारी लेनी होगी।"

2012 में पजशकियान के चुनाव लड़ने पर लगी थी रोक
पजशकियान सबसे पहले 2006 में तबरीज से सांसद बने थे। वे अमेरिका को अपना दुश्मन मानते हैं। 2011 में उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन बाद में अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी। 2012 में रईसी को राष्ट्रपति बनाने के लिए पजशकियान समेत बाकी उम्मीदवारों पर बैन लगा दिया गया था।

पजशकियान ईरान में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) को लागू करने और पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने के लिए नीतियां अपनाने पर जोर देते हैं। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली संस्‍था है।

यह अपने सदस्य देशों को टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्र‍िंग जैसी गतिविधियों में शामिल होने से रोकता है। ईरान 2019 से FATF की ब्लैक लिस्ट में है। इस वजह से IMF, ADB, वर्ल्ड बैंक या कोई भी फाइनेंशियल बॉडी आर्थिक तौर पर ईरान की मदद नहीं करती है।

क्या ईरान में कोई बदलाव ला पाएंगे पजशकियान?
अमेरिकी थिंक टैंक चैथम हाउस के एक्सपर्ट समन वकील के मुताबिक पजशकियान ईरान के दूसरे राष्ट्रपतियों के मुकाबले ज्यादा मॉडरेट हैं। इससे उन्हें पश्चिमी देशों से डील करने में आसानी होगी।वे ईरान पर न्यूक्लियर प्रोग्राम के चलते लगी पाबंदियों में अमेरिका से कुछ रिआयत हासिल कर सकते हैं।

उनके राष्ट्रपति बनते ही ईरान की सोशल पॉलिसीज में तुरंत बदलाव आने की संभावना है। पजशकियान को सत्ता ऐसै वक्त मिली है, जब मिडिल ईस्ट में जंग जारी है। ईरान पर आरोप लग रहे हैं कि वो लेबनान के हिजबुल्लाह के जरिए इजराइल से प्रॉक्सी जंग लड़ रहा है।

हालांकि पजशकियान का इजराइल पर वही स्टैंड है जो उनके पहले के राष्ट्रपतियों का रहा है। ऐसे में दोनों के रिश्तों पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा।

चुनाव में उठा भ्रष्टाचार, हिजाब का मुद्दा
इस चुनाव में पहली बार ऐसा हो रहा है जब भ्रष्टाचार, पश्चिमी देशों के प्रतिबंध, प्रेस की आजादी, पलायन रोकने जैसे नए मुद्दे छाए हुए हैं। सबसे चौंकाने वाला चुनावी मुद्दा हिजाब कानून का है। 2022 में ईरान में हिजाब विरोधी आंदोलन और उसके बाद सरकार के द्वारा उसके दमन के चलते कई वोटर्स के जेहन में यह सबसे बड़ा मुद्दा रहा है।

हिजाब लंबे समय से धार्मिक पहचान का प्रतीक रहा है, लेकिन ईरान में यह एक राजनीतिक हथियार भी रहा है। 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद से ईरान में जब से हिजाब का कानून लागू हुआ था, तब से महिलाएं अलग-अलग तरह से इसका विरोध करती रही हैं। ईरान के 6.1 करोड़ वोटर्स में से आधे से ज्यादा महिलाएं हैं।

ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की 19 मई को हेलिकॉप्टर क्रैश में हो गई थी।



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