काठमांडू । नेपाल में सत्ता परिवर्तन के बाद अमेरिकी आर्थिक मदद को लेकर सियासी घमासान छिड़ा है। अमेरिका के मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) समझौते को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने एमसीसी समझौते को लेकर प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और सीपीएन-माओवादी केंद्र के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' के विचार मांगे हैं। ओली ने अपने कार्यकाल के दौरान चीन के दबाव में अमेरिका के इस समझौते को मंजूरी नहीं दी थी। शनिवार को यूएमएल काठमांडू मेट्रोपॉलिटन के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए एमसीसी पर देउबा और प्रचंड के रुख पर आश्चर्य जताया। ओली ने आक्रोश जताया कि दोनों नेता चालाकी से एमसीसी को पारित करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि गठबंधन के दूसरे नेता भी इस मुद्दे पर चुप है। ओली को चीन का करीबी माना जाता है। दावा किया जाता है कि इस परियोजना को रोकने के लिए उनके ऊपर चीन का दबाव है।
ओली ने कहा कि कोई भी एमसीसी के बारे में बात नहीं करता है, उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा है। देउबा और प्रचंड, क्या उन्हें स्पष्ट रूप से नहीं कहना चाहिए कि एमसीसी के साथ क्या किया जाना चाहिए? वे मामले पर चुप हैं। मिलैनियम चैलेंज कोऑपरेशन (एमसीसी) के तहत अमेरिका नेपाल की एक परियोजना के लिए मदद दे रहा है। वॉशिंगटन 2017 इस मदद को सहमत हुआ था। अमेरिका ने 500 मिलियन डॉलर की मदद को तैयार हुआ था जबकि नेपाल 130 मिलियन डॉलर खुद निवेश करता। इस मदद से नेपाल एक पावर ट्रांसमिशन लाइन और 300 किलोमीटर सड़कों को अपग्रेड करने वाला था। एमसीसी का लक्ष्य अमेरिका का इंडो-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभाव को कम रहना है। यही कारण है कि चीन समर्थक केपी शर्मा ओली लगातार इस समझौते का विरोध करते रहे हैं।