भोपाल । कोविड-19 का संक्रमण घटने के बाद शहर में स्कूल व कालेज खुल गए हैं। इनके खुलने से बस आपरेटरों ने एक उम्मीद लगाई थी कि उनकी बसें पहले की तरह दौडऩे लगेंगी, लेकिन स्कूल व कालेजों ने बस आपरेटरों को विद्यार्थियों को लाने व ले जाने की डिमांड नहीं भेजी है। वैसी स्थिति में खड़ी हैं। इससे आपरेटरों की आस टूट गई। जगह पर खड़ी-खड़ी कंडम होने लगी हैं। काविड-19 से स्कूल बस का कारोबार सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।
कोविड-19 के संक्रमण के चलते 22 मार्च 2020 से स्कूल बंद हो गए थे। सत्र 2020-21 ऑन लाइन ही चला। संक्रमण घटने के 18 महीने बाद छठवीं से लेकर 12 वीं तक के स्कूल खोलने के आदेश आ गए। इसके अलावा कालेजों को भी खोल दिया गया। इस आदेश के आने के बाद आपरेटरों ने भी बसों को लेकर तैयारी शुरू कर दी। लेकिन शहर के बाहर संचालित स्कूलों ने बसें नहीं बुलाई। सिर्फ स्टाफ को लाने व ले जाने के लिए ही बस बुलाई। शहर के बाहर संचालित स्कूल ऑन लाइन चल रहे हैं।
खटारा हो गई हैं बसें
कोरोना काल से ही जगह पर खड़े-खड़े बसों के टायर खराब हो गए। नए टायर डलवाने पड़ेंगे। बसों ने खड़े-खड़े दो गर्मियों का सामना किया है। गर्मी के कारण सीसे चटक चुके हैं। कुर्सियां खराब हो चुकी हैं। बसों की सर्विस नहीं हुई है। एक बार सर्विस कराने में 25 हजार रुपए का खर्च आएगा। रोड टैक्स 1 रुपए प्रति सीट देना होता है। इसलिए इनके ऊपर रोड टैक्स का ज्यादा भार नहीं है।
संशय में आपरेटर
स्कूल संचालकों ने बसों की डिमांड नहीं की है, लेकिन यदि डिमांड की जाती है उसे सड़क पर चलाने के लिए डेढ़ से ढाई लाख रुपए खर्च करने पड़ेंगे। यदि संक्रमण बढ़ता है तो कुछ महीने में फिर से स्कूल बंद हो गए तो आपरेटर घाटे में चले जाएंगे। अधिकतर बसें फाइनेंस पर थी। घर से किस्त भरी गई। किस्तें भरने के लिए लोगों की संपत्तियां बिक गईं, क्योंकि बैंकों ने कोई राहत नहीं दी। मार्च 2020 में डीजल काफी सस्ता था। अभी डीजल 97.29 रुपये लीटर चल रहा है। 50 फीसद बच्चों के साथ ही बस चलानी पड़ेगी। किराया दुबारा निर्धारण होना है। इन सभी कारणों से आपरेटर संशय की स्थिति में है।