भोपाल / मध्य प्रदेश के भोपाल से 14 वर्षीय बच्ची जन्म से ही कष्ट में जी रही थी, उसे दुर्लभ बीमारी सिकल सैल रोग था। बार-बार एनिमिया, पीलिया, जोड़ों में सूजन के चलते उसे अक्सर अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता था। जिसका असर उसके जीवन और शिक्षा पर भी पड़ रहा था।
पिछले सात सालों से, दवाओं की मदद से उसका इलाज किया जा रहा है, हालांकि उसमें कोई सुधार नहीं हो रहा था। बच्ची और उसका परिवार सालों से जूझ रहे थे, वेकई डाॅक्टरों के पास इलाज के लिए गए। लेकिन उसकी स्थिति बिगड़ती चली गई, वह बार-बार इन्फेक्शन से पीड़ित हो जाती, उसका विकास ठीक से नहीं हो रहा था, वजन भी नहीं बढ़ रहा था।
भोपाल में इन्द्रप्रस्थ अपोलो होस्पिटल्स द्वारा आयोजि एक वैलनैस कैम्प में परिवार को डॉ गौरव खारया, क्लिनिकल लीड, सेंटर फार बोनमैरो ट्रांसप्लान्ट एण्ड सैल्युलर थेरेपी तथा सीनियर कन्लटेन्ट, पीडिएट्रिक हीमे टोलोजी, ओंकोलोजी, इम्युनोलोजी, इन्द्रप्रस्थ अपोलो होस्पिटल्स से मिलने का मौका मिला। जिन्होंने परिवार को सलाह दी कि इस बीमारी का इलाज सिर्फ बोनमैरो ट्रांसप्लान्ट से ही संभव है।
जब परिवार में उचित डोनर नहीं मिला, तब गैर-रिश्तेदारों में से डोनर की तलाश शुरू हुई, भाग्य से (गैर-संबंधी डोनर्स की रजिस्ट्री) में दो 10ध्10 एचएलए आइडेंटिकल अनरिलेटेड डोनर मिल गए।
डॉ खारया ने कहा, ‘‘सिकल सैल रोग, रक्त का आनुवंशिक विकार है, जिसमें मरीज का ही मोग्लोबिन दोष पूर्ण होता है, जिसके चलते मरीज त्वचा में पीलापन (पीलिया), आंखों में पीलापन (इक्टेरस), थकान, बार-बार इन्फेक्शन, विकास न होना, स्ट्रोक, एक्यूटचेस्ट सिन्ड्रोम, किडनी खराब होना जैसी समस्याओं का शिकार हो जाता है। सिकलसैल रोग शरीर के कई अंगों को प्रभावित करता है।’
इस मामले में जब बच्ची की जांच की गई, वह उचित इलाज न मिलने के कारण सिकल सैल रोग की अडवान्स्ड अवस्था में पहुंच चुकी थी। परिवार को बोनमैरो ट्रांसप्लान्ट के बारे में बताया गया, क्योंकि उसके इलाज के लिए यही एकमात्र विकल्प था। दो माह की तैयारी के बाद हमने नई दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ अपोलो होस्पिटल्स में एचएलए मैच्ड अनरिलेटेड डोनर ट्रांसप्लान्ट किया। वह ट्रांसप्लान्ट को झेल गई और छह महीने बाद अब वह पूरी तरह से ठीक है एवं सामान्य जीवन जीर ही है।’
सिकल सैल रोग रक्त का विकार है। दुर्भाग्य से, इसके बारे में जागरुकता की कमी है, जिसके चलते बहुत से बच्चों का इलाज समय पर नहीं हो पाता और वेकष्ट में जीवन जीते रहते हैं। इससे न केवल उनके जीवन की गुणवत्ता बल्कि जीवन प्रत्याशा पर भी बुरा असर पड़ता है। सिम्प्टोमेटिकसि कलर की जीवन प्रत्याशा विकसित देशों में 4 दशक से अधिक नहीं होती। भारत जैसे देश में सीमित संसाधनों और रोग के बारे में जागरुकता न होने के कारण ज्यादातर बच्चे जीवन के पहले या दूसरे दशक में ही मौत का शिकार बन जाते हैं।
इन्द्रप्रस्थ अपोलो होस्पिटल्स की बीएमटी टीम लोगों को रोग के बारे में जागरुक बढ़ाने और एवं समय पर इलाज में मरीजों की मदद के लिए तत्पर है।