महिला दिवस पर बुजुर्ग महिलाओं ने लिया देहदान का संकल्प:मरने के बाद भी 2-3 दिन रखे रहते हैं शरीर, परिवार वाले उन्हें लेने नहीं आते

Updated on 08-03-2025 03:52 PM

आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है। इस मौके पर भोपाल के अपना घर वृद्ध आश्रम की बुजुर्ग महिलाओं ने एक ऐसी मिसाल कायम की है, जो शायद ही कभी भुलाई जा सके। इन वृद्ध महिलाओं ने अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में खड़े होकर यह ऐलान किया कि वे न केवल जीते जी समाज को प्रेरणा देंगी, बल्कि मरने के बाद भी अपने शरीर के जरिए किसी की जिंदगी को रोशन करेंगी।

दरअसल, इन 15 बुजुर्ग महिलाओं ने देहदान का फैसला लिया है। इनकी उम्र 60 से 95 साल के बीच है। इस फैसले के पीछे उनके जीवन के कड़वे अनुभव हैं।

ऐसे आया आइडिया आश्रम की संचालिका माधुरी मिश्रा ने बताया बताया कि कई बार बुजुर्गों की मौत के बाद उनके शव दो से तीन दिन तक पड़े रहते हैं, क्योंकि उनके बच्चे या परिवार वाले उन्हें लेने नहीं आते। यह दृश्य देखकर आश्रम की साधना दादी के मन में यह विचार आया कि अगर उनके अपने ही उनके साथ नहीं हैं, तो क्यों न उनका शरीर समाज के काम आए।

माधुरी मिश्रा ने बताया कि हमारे 80 साल के माता-पिता इस सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं कि वे समाज को कुछ दे जाएं। यह बहुत बड़ी बात है। अगर मेरे माता-पिता जाते-जाते भी समाज को कुछ दे जाएं, तो यह अमूल्य है। मैं खुद भी देहदान करने के लिए तैयार हूं।

  • आश्रम की चंदा रानी सक्सेना ने कहा, 'मेरी फैमिली में कोई नहीं है। मैं क्या करूंगी? इसलिए मैं अपना पूरा शरीर दान करना चाहती हूं।'
  • अंजली श्रीवास्तव ने कहा, 'मेरा तो कोई भी नहीं है। डेड बॉडी रखी रहती है, कोई नहीं आता। मैं खुशी से दान कर रही हूं।'
  • नुपूर अस्थाना ने बताया, 'मैं अपनी खुशी से अंगदान करना चाहती हूं। अगर मेरा शरीर किसी और के काम आए, तो मुझे बहुत खुशी होगी।'

  • इस पहल की वजह बने यह दो केस

    • माधुरी मिश्रा ने बताया कि इस पहल के पीछे एक और दर्दनाक घटना है। करीब साल भर पहले मुरारी लाल विश्वकर्मा और उनकी पत्नी की कहानी ने आश्रम की महिलाओं को झकझोर कर रख दिया। मुरारी लाल की पत्नी का निधन करवा चौथ के दिन हुआ था, लेकिन उनके बच्चे उन्हें लेने नहीं आए। उन्होंने कहा कि उनके पास समय नहीं है। यह घटना आश्रम की वृद्ध महिलाओं को इस फैसले के लिए प्रेरित किया।
    • अपना घर वृद्ध आश्रम में एक आजमगढ़ की वृद्ध महिला कमलावती रहती थीं। उनका देहांत हुआ। जिसके बाद हमने उनके बेटे और परिचितों से संपर्क किया। वह लोग पुणे से भोपाल नहीं आ सके, हमें बोले कि आप अंतिम संस्कार कर दो हमें ऑनलाइन दिखा देना।


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