मध्य प्रदेश के खजाने पर भारी रियायती बिजली और लाड़ली बहना का खर्च

Updated on 09-03-2025 01:25 PM

 भोपाल भले ही लाड़ली बहना योजना सियासी तौर पर भाजपा सरकार के लिए फायदेमंद रही हो पर यह खजाने पर भारी पड़ रही है। लगभग 19 हजार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष इस एक योजना पर ही व्यय हो रहे हैं। इसी तरह 25 हजार करोड़ रुपये का भार विद्युत कंपनियों को मुफ्त और रियायती दर पर बिजली देने के एवज में अनुदान देने के कारण आ रहा है।

स्कूटी, लैपटाप, साड़ी, जूते और कन्यादान जैसी योजनाएं भी सरकार के वित्त प्रबंधन को प्रभावित कर रही हैं। लाड़ली बहनों को सस्ता रसोई गैस सिलेंडर उपलब्ध कराया जा रहा है यानी जिस दर पर वह मिलता है, अंतर की राशि सरकार दे देती है। इसमें भी लगभग 800 करोड़ रुपये व्यय हो रहे हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो वर्ष में करीब 50 हजार करोड़ रुपये सालाना ऐसी योजनाओं पर खर्च किए जा रहे हैं।

बढ़ता जा रहा कर्ज का बोझ

राज्य का बजट 3.65 लाख करोड़ रुपये है। जैसे-जैसे बजट का आकार बढ़ रहा है, वैसे-वैसे कर्ज का बोझ भी बढ़ता जा रहा है। कर्ज का कुल भार इस समय चार लाख 22 हजार करोड़ रुपये पहुंच गया है। हालांकि, सरकार कर्ज चुकाने की स्थिति में है और एक बार भी ऐसी नौबत नहीं आई जब किस्त देने में चूक हुई हो।

यही स्थिति ब्याज अदायगी को लेकर भी है। प्रतिवर्ष 25 से 30 हजार करोड़ रुपये कर्ज का ब्याज भर रही है। कर्ज का बोझ बढ़ाने में बड़ी भूमिका उन योजनाओं की भी है, जिन्हें मुफ्त की योजना या रेवड़ी कहा जाता है। इसमें लाड़ली बहना योजना प्रमुख है।

शिवराज सरकार ने योजना लागू की थी

विधानसभा चुनाव के समय तत्कालीन शिवराज सरकार ने योजना लागू की थी। इसमें पहले लाड़ली बहनों को एक हजार रुपये प्रतिमाह दिए गए और फिर इसे बढ़ाकर 1,250 रुपये कर दिया। इस बीच राखी मनाने के लिए 250 रुपये भी दिए गए।

इस राशि को धीरे-धीरे बढ़ाकर 3,000 रुपये करने की घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और बाद में वर्तमान मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव ने की है। संभव है कि बजट में कुछ राशि बढ़ा भी दी जाए।

इतना ही नहीं योजना के दायरे में आने वाली महिलाओं को रसोई गैस सिलेंडर का रिफिल 450 रुपये में उपलब्ध कराया जा रहा है यानी इस राशि के ऊपर जो भी राशि लगती है वो सरकार द्वारा अनुदान के रूप में सीधे खाते में जमा करा दी जाती है।

सस्ती बिजली में 25 हजार करोड़ से अधिक का भार

प्रदेश के एक करोड़ से अधिक विद्युत उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली उपलब्ध कराने के लिए अटल गृह ज्योति योजना में सौ रुपये में सौ यूनिट बिजली देने का प्रविधान है। इसी तरह अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के किसानों को पांच हार्सपावर तक के कृषि पंप के उपयोग पर निश्शुल्क बिजली दी जा रही है।

आर्थिक नुकसान होता है

उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए भी रियायती दर पर बिजली की आपूर्ति की जा रही है। इसमें विद्युत वितरण कंपनियों को जो आर्थिक नुकसान होता है, उसकी पूर्ति के लिए विभिन्न विभागों के बजट में 25 हजार करोड़ रुपये से अधिक का प्रविधान रखा गया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत पांच करोड़ से अधिक हितग्राहियों को निश्शुल्क खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है। हालांकि, इसका व्यय केंद्र सरकार उठाती है।

स्कूल शिक्षा विभाग मेधावी विद्यार्थियों को स्कूटी, लैपटाप दे रहा है तो वनोपज संग्रह करने वालों को करोड़ों रुपये लगाकर साड़ी, जूते और पानी की बोतल दी जाती हैं। समाज कल्याण की दृष्टि से सामूहिक विवाह कार्यक्रमों में कन्यादान जैसी योजनाएं भी निरंतर सरकार के वित्त प्रबंधन को प्रभावित कर रही हैं।

पांच वर्ष में 30 लाख सोलर कृषि पंप देंगे

सरकार धीरे-धीरे अनुदान का बोझ कम करने की दिशा में काम कर रही है। बिजली की सब्सिडी का बोझ कम करने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाया जा रहा है। आगामी पांच वर्षों में 30 लाख सोलर कृषि पंप देने का कार्यक्रम बनाया गया है। इससे न केवल सरकार द्वारा अनुदान पर किए जा रहे खर्च में कमी आएगी बल्कि किसानों को आमदनी भी होगी। उनके द्वारा उत्पादित सौर ऊर्जा को सरकार खरीदेगी।



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