जबलपुर । शहर के व्यस्ततम व्यापारिक क्षेत्र बड़ा फुहारा में एक प्रतिष्ठान ऐसा भी है, जहां आश्चर्य किंतु सत्य की तर्ज पर प्रतिदिन खौलते तेल की कड़ाही में हाथ डालकर गर्मागर्म मंगौड़े निकाले जाते हैं। इस प्रतिष्ठान का नाम है-देवा मंगौड़े वाले।
आज से करीब 106 वर्ष पूर्व वर्ष 1918 में जबलपुर निवासी मूलचंद जैन के पुत्र कंछेदीलाल जैन ने इस प्रतिष्ठान का शुभारंभ किया था। इसके बाद इसकी कमान देवेंद्र कुमार जैन उर्फ देवा के हाथों में आ गई, जिन्हें उनके गुरुबाबा प्यारेलाल दादा का विशेष आशीर्वाद मिला।
इसके बाद उन्होंने कड़ाहे में उबलते तेल में हाथ डालकर मंगौड़े निकालने में माहिर हो गए। देखते ही देखते उनका यह हुनर शहर के राजनेताओं से लेकर कलाकार और आम लोगों के बीच फैलता गया।
तेल में हाथ डालने से पहले करते हैं विधिवत से पूजन- ऐसा नहीं है कि इस हुनर को अजमाने के लिए कोई विधि-विधान न हो, बल्कि पिता ने अंकू को अपने हुनर के साथ-साथ पूजन विधि के बारे में भी बताया। अंकू हर दिन, गर्म तेल में हाथ डालने से पूर्व विधि-विधि से पूजन-अर्चन करते हैं।
पिता देवा की ही भांति अपने आराध्य को गुलाब की आकर्षक माला अर्पित करते हैं और फिर धूप-बत्ती की जाती है। इस दौरान दुकान और आसपास का वातावरण सुगंध से भर जाता है। इसके बाद गर्म कड़ाही में का तेल डाला जाता है। इसके बाद उसे पूरी तरह उबलने समय दिया जाता है।
जब तेल खौलने लगता है, तब अंकू अपने हाथों से मंगीड़े की दाल छोड़ता है। इसके बाद अंकू मंत्रोच्चारण करते हुए खौलते तेल के बीच हाथ डालकर मंगौड़े बाहर निकाल देता है। समय के साथ वह मंगौड़े के साथ-साथ समोसा, आलूबंड़ा, साबूदाना बड़ा, भाजीबड़ा व भजिया भी तलकर खिलाते हैं।
अतुल जैन देवा, मूंग दाल को मिक्सी च चक्की में पीसवाने की बजाए खुद सिल और लोढे में पीसते हैं। इससे पहले वे छह घंटे तक छिलके वाली मूंग को पानी में भिगो कर रखते हैं।
परिवार के सदस्य भीगी मूंग को पीसकर पूर्वजों से मिली सीख के अनुरूप मसालों का मिश्रण करते हैं। इसमें मिलाया जाने वाला अदरक व मिर्च सब संतुलित होता है और फिर तैयारी मिश्रण को गर्म तेल में डालकर मंगौड़े बनाए जाते हैं, जो जबलपुरिया बड़े चाव से खाते हैं और फिर खुद ब खुद जुबान से निकलता है वाह क्या स्वाद है।