अंतरिक्ष विज्ञान की नई तकनीकों पर कार्य कर ISRO के लिए मॉडल विकसित कर रहे MANIT के छात्र

Updated on 23-08-2024 12:24 PM
 भोपाल। इसरो द्वारा प्रक्षेपित चंद्रयान-3 के चांद पर पहुंचने के ऐतिहासिक दिन को आज एक साल पूरा हो गया है। इसरो की इस उपलब्धि को पूरा भारत राष्ट्रीय अंतरिक्ष विज्ञान दिवस के रूप में मना रहा है। इसरो ने अपनी स्वर्णिम यात्रा में कई बड़े कारनामे किए हैं और अब कॉलेज के युवाओं को भी इसरो से जुड़ने के लिए मुहिम चलाई जा रही है। इसी का एक उदाहरण है मैनिट का स्पेस टेक्नोलॉजी इन्क्यूबेशन सेंटर (एसटीआईसी), जहां मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश के प्रतिष्ठित अकादमिक संस्थानों के छात्र इसरो के लिए मॉडल बनाकर आत्मनिर्भर भारत की नींव रख रहे हैं।

तीन साल पहले हुआ था शुरू

18 मार्च 2021 को तत्कालीन इसरो चेयरमैन के. सिवन ने मैनिट में मध्य भारत प्रांत के स्पेस टेक्नोलाजी इनक्यूबेशन सेंटर का शुभारंभ किया था। इस दौरान तीन राज्यों के छात्रों को इसरो द्वारा 800 प्रोटोटाइप्स की लिस्ट दी गई थी, जिसे छात्रों को अपनी पसंद के अनुसार विकसित कर सेंटर को जमा करना होता है और फिर इसरो जिन प्रोटोटाइप्स का चयन करेगा, वो छात्र दल उसका मॉडल तैयार करेगा।
पहले वर्ष के मॉडल्स में इसरो ने मैनिट के विद्यार्थियों के तीन मॉडल को चयनित किया है। ये माडल करीब 65 लाख रुपये की लागत से तैयार किए गए हैं, जिन्हें भारत सरकार द्वारा फंड दिया गया है। ये प्रोटोटाइप विकसित होने के अंतिम चरण में हैं और इसी वर्ष उन्हें इसरो में भेजा जाएगा। इसरो उन्हें उपयोग करेगा।

पहले सत्र में चयनित इन तकनीकों पर हो रहा कार्य

रेनवाटर सैंपलर
प्रोग्रामेबल ऑटोमेटेड फील्ड डेप्लॉयबल हाई फ्रीक्वेंसी रेनवाटर सैंपलर एक ऐसी तकनीक के रूप में विकसित होगा, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में होने वाली वर्षा के जल की गुणवत्ता को जांचेगा। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के वर्षाजल में क्या विशेषता है और उससे सामाजिक जीवन या सांस्कृतिक धरोहरों को क्या क्षति पहुंच रही है, इन सभी समस्याओं से संबंधित जानकारी इस उपकरण से आसानी मिल सकेगी, जिससे किसी भी समस्या पर समय रहते उपर्युक्त समाधान किया जा सकेगा। बढ़ते प्रदूषण के चलते वर्षाजल की गुणवत्ता पर भी काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। एसिड रेन आज कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रही है, साथ ही ऐतिहासिक इमारतों के लिए भी घातक है। ऐसे में यह तकनीक देश की सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से काफी अहम साबित हो सकती है।
अल्ट्रासोनिक ट्रांसड्यूसर
अल्ट्रासोनिक ट्रांसड्यूसर तकनीक ध्वनि की गति से तेज चलने वाली वेव्स को सेंस कर उनका अध्ययन करेगी। स्पेस की यह नवीन तकनीक अंतरिक्ष में छोड़े जाने वाले सैटेलाइट्स और डिफेंस के लिए काफी उपयोगी रहेगी। इसके माध्यम से जहां अंतरिक्ष अनुप्रयोग किए जाएंगे, वहीं देश की सुरक्षा भी मजबूत होगी। यह तकनीक गैस रिसाव और ऑब्जेक्ट डिटेक्शन के लिए बनाई जा रही है, जिससे गैस लीकेज का पता चल सकेगा। साथ ही यदि स्पेस में सैटेलाइट के सामने कोई वस्तु आती है तो उसके बारे में पता चल सकेगा। वहीं देश की सीमा क्षेत्र में हवाई मार्ग से कोई ध्वनि से भी तेज गति की कोई वस्तु आती है तो उसके बारे में भी जानकारी मिल सकेगी।
प्रेशर रेगुलेटर
मिनिएचर प्रेशर रेगुलेटर के माध्यम से अंतरिक्ष की वायुमंडलीय परतों के दबाव जानकारी आसानी से मिल सकेगी। यह तकनीक अंतरिक्ष के अलावा उद्योगों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी, जिसमें तरह- तरह के प्रेशर की स्टडी की जाएगी। वहीं स्पेस में सैटेलाइट्स छोड़ने और उनकी रोटेशन स्पीड को पता लगाने के लिए यह तकनीक काफी उपयोगी साबित होगी।

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