इंदौर। इंसान के शरीर में मष्तिष्क बेहद जटिल अंग माना जाता है, जितनी जटिल इसकी काम करने की विधि है उतने ही जटिल इसके रोग भी। ऐसा ही रोग है एपिलेप्सी जिसे आम बोल चाल की भाषा में मिर्गी के नाम से जाना जाता है। यह स्वास्थ्य सम्बन्धी रोग तो है ही लेकिन एक चिंता विषय यह भी है कि यह एक सामाजिक चुनौती भी है, लोग मिर्गी के मरीजों को हेय दृष्टि से देखते हैं। इसका मुख्य कारण है कि लोगों में इसके बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है। वैसे तो मिर्गी के मरीजों को दवाओं से ठीक किया जा सकता है लेकिन कई बार जब यह रोग दवाओं से भी काबू नहीं किया जाता तो सर्जरी का रुख किया जाता है। अज्ञानता, और जागरूकता में कमी के कारण लोग या तो इसके बारे में नहीं जानते या कम जानते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए मेदांता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल इंदौर के इंस्टिट्यूट ऑफ़ न्यूरोसाइंसेज़ और न्युरोलॉजिकल सोसाइटी इंदौर द्वारा एक मेडिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। 15 जून 2024 को आयोजित इस कांफ्रेंस में देश भर के विशेषज्ञ शामिल हुए और मिर्गी के उपचारों में हो रहे नए विकास पर चर्चा की।
मेदांता सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल इंदौर के न्यूरोसर्जन डॉ रजनीश कछारा ने बताया कि, "पिछले 30 वर्षों में मिर्गी की सर्जरी चुनिंदा मिर्गी रोगियों के लिए एक अच्छा विकल्प बनकर सामने आया है जिन्हें मिर्गी की दवा से लाभ नहीं होता। फिर भी, विकासशील देशों में मिर्गी सर्जरी का उपयोग बहुत कम किया जाता है। ज्यादातर निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LAMIC) में 50-60% जितना बड़ा मेडिकल ट्रीटमेंट गैप के साथ, इन देशों में मिर्गी सर्जरी अभी शुरुआती अवस्था में है। विश्व स्वास्थ्य संगठन, मिर्गी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय लीग और अंतर्राष्ट्रीय मिर्गी ब्यूरो द्वारा 2006 में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि उच्च आय वाले देशों के 66% की तुलना में LAMIC के केवल 13% में ही मिर्गी सर्जरी उपलब्ध थी। 20 साल पहले तक, भारत में एक अरब की आबादी वाले सिर्फ 2 या 3 मिर्गी सर्जरी सेंटर थे। तब से, इन सेंटर्स को मिले अच्छे परिणामों के साथ-साथ चिकित्सकों और आम जनता में मिर्गी सर्जरी के बारे में जागरूकता में सुधार ने कई युवा न्यूरोलॉजिस्टों और न्यूरोसर्जनों को मिर्गी सर्जरी में प्रशिक्षित होने और नए मिर्गी सर्जरी सेंटर शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया है।"
पिछले बीस वर्षों में भारत में मिर्गी की सर्जरी के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। वर्तमान में भारत में 39 सेंटर्स नियमित रूप से मिर्गी की सर्जरी कर रहे हैं। इनमें से 18 सेंटर्स पिछले पांच वर्षों में चालू हुए हैं। उनमें से कई उच्च तकनीक से लैस हैं और सभी प्रकार की मिर्गी सर्जरी करने की विशेषज्ञता रखते हैं। 31 जुलाई 2016 तक, भारत में लगभग 7143 मिर्गी सर्जरी की जा चुकी हैं। वर्तमान में, भारत में हर साल 734 मिर्गी की सर्जरी की जाती है, जो पिछले साढ़े तीन वर्षों की तुलना में लगभग 58% की वृद्धि को दिखाती है। इन सभी केंद्रों से रिपोर्ट किए गए पोस्टऑपरेटिव रिजल्ट उच्च आय वाले देशों में अच्छी तरह से स्थापित केंद्रों से प्राप्त रिपोर्टों के बराबर हैं। फिर भी, भारत में केवल 1000 में से 2 योग्य मरीज ही मिर्गी की सर्जरी करा पाते हैं, जिसके कारण भारी सर्जिकल ट्रीटमेंट गैप बना रहता है।
बड़े पैमाने पर सर्जिकल ट्रीटमेंट गैप के कारण, विशेष रूप से स्थापित सेंटर्स में, प्री-सर्जिकल एवोल्यूशन और मिर्गी की सर्जरी की प्रतीक्षा करने वाले रोगियों की संख्या दिए गए सेंटर की क्षमता से कहीं अधिक हैं, जिससे प्रतीक्षा करने वालों की कतार और लम्बी है। इसके अलावा, मिर्गी की सर्जरी के स्पष्ट फायदों के बावजूद, अनपढ़ता, अज्ञानता, जोखिमों में कन्फ्यूजन, लागत और मिर्गी की सर्जरी की जटिलताओं के कारण कई योग्य मरीज इसका इलाज कराने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
बजाय पूरे देश में फैले होने के, भारत में ये मिर्गी सर्जरी सेंटर्स भी ज्यादातर शहरी में स्थित हैं। 5 प्रति 1,000 व्यक्ति-वर्ष की व्यापकता दर और 50 प्रति 100,000 व्यक्ति-वर्ष की घटना दर के साथ, यह अनुमान लगाया जाता है कि भारत में किसी भी समय कम से कम 5 मिलियन लोग सक्रिय मिर्गी से पीड़ित होते हैं, जिनमें से लगभग 500,000 लोग सालाना नए इस रोग से प्रभावित होते हैं। यह विचार करते हुए कि इन रोगियों में से 25% को दवा प्रतिरोधी मिर्गी है और उनमें से आधे लोग मिर्गी सर्जरी के लिए संभावित उम्मीदवार हैं, तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में किसी भी समय कम से कम 500,000 मिर्गी सर्जरी के उम्मीदवार हैं। इस प्रकार, केवल 1000 योग्य रोगियों में से 2 ही भारत में मिर्गी सर्जरी करवाते हैं। इसके परिणामस्वरूप दवा प्रतिरोधी मिर्गी वाले रोगियों का एक बढ़ता हुआ जमावड़ा हो गया है, जो मिर्गी के लिए स्वास्थ्य देखभाल लागत का 80% हिस्सा लेता है। यह देश के दूर-दराज के इलाकों में कई नए मिर्गी सर्जरी केंद्र स्थापित करने की निरंतर आवश्यकता को इंगित करता है।
मेदांता हॉस्पिटल इंदौर पिछले 10 वर्षों के सतत प्रयास से मिर्गी सर्जरी सेंटर चला रहा है तथा यहाँ लगातार सर्जरी हो भी रही है लेकिन जागरूकता की कमी के कारण के यह संख्या सीमित ही है। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हम उपचार की इस विधि को नई दिशा देना और लोगों को इस बारे में प्रोत्साहित एवं जागरूक करना है।
कांफ्रेंस में इंदौर की प्रोफेसर अपूर्वा पौराणिक ने मध्य भारत में मिर्गी देखभाल और उसमे व्याप्त चुनौतियों पर चर्चा की, वहीं डॉ. रचना दुबे ने रिफ्रेक्टरी जेनेटिक मिर्गी के उपचार पर मार्गदर्शन दिया। चेन्नई से आए डॉ. दिनेश नायक ने ड्रग रेसिस्टेंट मिर्गी (डीआरई) पर अपने विचार रखे। गुरुग्राम से आए विशेषज्ञ डॉ. आत्माराम बंसल ने डीआरई के लिए प्री-सर्जिकल एवेल्यूशन पर अपनी बात रखी। बेंगलुरु से आए विशेषज्ञ प्रोफेसर बी रवि मोहन राव ने ड्रग रेसिस्टेंट मिर्गी के लिए सर्जिकल उपचार पर मार्गदर्शन दिया। इंदौर मेदांता हॉस्पिटल से डॉ. रजनीश कच्छारा एवं डॉ. वरुण कटारिया ने लेफ्ट एमटीएस के इलस्ट्रेटिव केस को कॉन्फ्रेंस में रखा। कॉन्फ्रेंस में डॉ. कच्छारा एवं डॉ. कटारिया के अलावा मेदांता की टीम से डॉ. वी.वी. नाडकर्णी, डॉ. रचना दुबे, डॉ. पुलक निगम, डॉ. स्वाति चिंचुरे, डॉ. निखिल स्वर्णकार एवं डॉ. दीप सेनगुप्ता अहम भूमिका में रहे।