जिन मरीजों की किडनी खराब हो जाती है, उनके लिए किडनी प्रत्यारोपण एक कारगर इलाज है।किडनी प्रत्यारोपण कराने वाले मरीज को रिजेक्शन की संभावना खत्म करने के लिए इम्युनोसप्रेशन मेडिकेशन पर रखा जाता है, जिस वजह से उन्हें संक्रमण का खतरा रहता है।प्रत्यारोपण के बाद पहले दो महीनों के दौरान बहुत ज्यादा मात्रा में दवाई दी जाती है।यह मानकर चला गया कि यदि प्रत्यारोपण के पहले 2 महीने में इन मरीजों को कोविड-19 का संक्रमण हो जाएगा तो उन्हें गंभीर बीमारी होने का खतरा रहेगा। कोविड-19 ने भारत सहित दुनिया में प्रत्यारोपण पर गंभीर विराम लगा दिया है।लेकिन मुंबई के डाॅक्टर्स ने 2 मरीजों में कोरोना वायरस का सफल इलाज किया, जिनका हाल ही में प्रत्यारोपण किया गया था।उनकी इस उपलब्धि का उल्लेख पीयररिव्यूड ‘अमेरिकन ज़र्नल आफ ट्रांसप्लांटेशन’ के नए संस्करण में किया गया। डाॅ. एम एम बहादुर, डायरेक्टर, नेफ्रोलाॅजी एवं प्रत्यारोपण विभाग तथा डाॅ. अक्षय शिंगरे, कंसल्टैंट नेफ्रोलाॅजिस्ट, जसलोक हाॅस्पिटल द्वारा दुनिया में यह पहली रिपोर्ट है, जो अमेरिकन ज़र्नल आफ ट्रांसप्लांटेशन में प्रकाशित की गई। इसमें 2 जीवित डोनर किडनी ट्रांसप्लांट के मरीजों के बारे में बताया गया, जिन्हें प्रत्यारोपण कराने के पहले माह ही कोविड-19 हो गया था।हालांकि उनके स्वास्थ्य में अच्छा सुधार हुआ।उन्हें प्रारंभिक एवं बाद में इम्युनोसप्रेशन मेडिकेशन दिए जाने में संशोधन किया गया ताकि प्रत्यारोपित किडनी का रिजेक्शन न हो एवं गंभीर कोविड-19 संक्रमण से बचा जा सके।उन्हें आक्सीजन की सपोर्ट या फिर आईसीयू केयर की जरूरत नहीं पड़ी तथा प्रत्यारोपित की गई किडनी का कार्य पूरे समय सुचारु रूप से चलता रहे। ये परिणाम न्यूयार्क, लंदन एवं वुहान में 5 मृत डोनर से किडनी ट्रांसप्लांट कराने वाले मरीजों के विपरीत थे, जिनमें 2 मरीज तो मौत का शिकार हो गए, 2 मरीजों को आईसीयू में रहना पड़ा तथा 1 मरीज को वैंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया। इम्युनोसप्रेशन एवं स्टीराॅयड्स के उचित इस्तेमाल में संतुलन बिठाना इन मरीजों के इलाज के लिए आवश्यक है। युवा उम्र एवं अन्य किसी कमजोरी के न होने के चलते भी जसलोक हाॅस्पिटल में किडनी प्रत्यारोपण कराने वाले मरीजों के अच्छे परिणाम मिले। इत्तफाक से जो मरीज सरकार की एडवाईज़री एवं दिशा निर्देशों के चलते प्रत्यारोपण न करा सके और जिनका नाम प्रत्यारोपण के लिए इंतजार की सूची में है, उन्हें डायलिसिस के दौरान कोविड-19 हो गया और उनकी स्थिति और ज्यादा बिगड़ गई। इसके अलावा कोविड-19 पाॅज़िटिव डायलिसिस सेंटर तलाशना इन मरीजों के लिए एक बड़ी चुनौती थी। जीवित डोनर डोनेशन की तुलना में मृत डोनर किडनी प्रत्यारोपण में मरीजों के आंकलन के लिए कम समय मिलता है तथा अक्सर विशेष इम्युनोसप्रेशन मेडिकेशन की बहुत ज्यादा मात्रा की जरूरत पड़ती है।जीवित डोनर किडनी प्रत्यारोपण में, डोनर एवं मरीज का आंकलन पहले ही किया जा सकता है, उन्हें संक्रमण की रोकथाम के लिए शिक्षित किया जा सकता है, कम जोखिम वाले मरीजों का अनुमति मिलने के बाद प्रत्यारोपण किया जा सकता है।इम्युनोसप्रेशन का बेहतरीन संतुलन बनाए रखने से इन मरीजों के लिए अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। डाॅ. एम एम बहादुर, डायरेक्टर, नेफ्रोलाॅजी एवं ट्रांसप्लांट विभाग, जसलोक हाॅस्पिटल ने कहा, ‘‘हमारे इलाज की योजना में संशोधन किया गया क्योंकि मरीजों में कोविड-19 पाया गया तथा इलाज की योजना में यह परिवर्तन हमारी प्रक्रिया की सफलता का सबसे मुख्य कारण बना।मरीजों को भी सांस की कोई तकलीफ नहीं हुई।भारत में हर साल 5,000 मरीज किडनी प्रत्यारोपण कराते हैं।इसलिए हमारे लिए यह जरूरी है कि हम कोविड के इस युग में नई वैज्ञानिक विधियों का सृजन करें और उनके अनुरूप ढलें ताकि खराब किडनी का इलाज सफलतापूर्वक हो सके।’’ देश में अनलाॅक-1 शुरू होने के साथ किडनी खराब होने वाले मरीजों में किडनी प्रत्यारोपण की गतिविधि फिर से शुरू हो जाएगी, लेकिन डाॅक्टर्स एवं अस्पतालों को आत्म विश्वास के साथ इस जीवनरक्षक प्रक्रिया के साथ आगे बढ़ने के लिए बड़ी तैयारी करनी होगी।
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