विक्रांत मैसी आज के दौर के उन कलाकारों में से हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत भले छोटे पर्दे से की, जो भले साधारण लुक के साथ आएं, मगर अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने ओटीटी से लेकर फिल्मों तक हर किरदार में जान फूंकी। अब वहद साबरमती रिपोर्टसे ख़बरों में हैं। फिल्म और उनके किरदार को लेकर काफी विवाद चल रहे हैं। विक्रांत से एक खास बातचीत।विक्रांत आपने अपनी साधारण कद काठी के बलबूते पर परंपरागत बल्ले-शल्ले और हैंडसम नायक के खांचे को तोड़कर अपनी एक नई राह बनाई, तो क्या कभी आपको भी सुनने मिला कि चला मुरारी हीरो बनने?
कहीं न कहीं मैं भी इन सभी चीजों से गुजरा, मगर मैंने अपने आत्मविश्वास को डिगने नहीं दिया है। मुझे भी अपनी कद काठी के लिए सुनना पड़ा है। पर मैं समझ गया था कि शक्ल तो मैं बदल नहीं सकता, रहा सवाल मसल्स बढ़ाने का, वो कभी भी बढ़ या घट जाएंगे, मगर मुझे अपने काम को संवारना होगा और आखिर में उसी की कीमत आंकी जाएगी। मेरा पूरा फोकस काम पर रहा। हालांकि उस वक्त तकलीफ भी बहुत हुई, मगर मैं आज जनता का आभारी हूं, जो उन्होंने मुझे अपनाया। आपको एक घटना बताना चाहूंगा। एक बहुत बड़ा स्टूडियो है। मैंने जब फिल्मों में काम करना शुरू किया, तो मुझे उस स्टूडियो ने हीरो के भाई की भूमिका दी थी और उन्होंने मुझसे साफ कहा था कि हम आपको मेन लीड कभी नहीं दे सकते, क्योंकि हम सिर्फ बड़े स्टार्स के साथ काम करते हैं। ये सुन कर मेरा मनोबल कहीं न कहीं टूटा जरूर था। मुझे लगा कि ये बहुत बड़े लोग हैं और इन्होने बड़ी-बड़ी फिल्में बनाई हैं, मैं इनके साथ काम करना चाहूंगा। मगर वो सुनकर मुझे लगा कि मुझे और मेहनत करनी होगी ताकि मेरे प्रति एक अदाकार के रूप में उनका नजरिया बदले। रिजेक्शन जरूरी होता है कलाकार के लिए। मुझ जैसा अदाकार टीवी से आता है, जहां टीआरपी का बहुत प्रेशर होता है। उस वक्त ऐसा दबाव होता था कि हम ऐसा क्या करें कि लोग 24-25 मिनट तक हमें देखना छोड़ें ही नहीं। मगर मैं खुश हूं कि मेरी '12वीं फेल', 'हसीन दिलरुबा', 'सेक्टर 36', 'डेथ इन द गंज' जैसी तमाम फिल्मों में मेरा काम पसंद किया गया, मेरी भूमिकाओं को तारीफ मिली।
भूमिकाओं को लेकर आपकी चॉइस ने आपको लोगों का अभिनेता बनाया, मगर द साबरमती रिपोर्ट को लेकर कुछ लोगों का आरोप है कि आपने एक एजेंडे वाली फिल्म का चयन किया है? आपके फैंस भी ये शिकायत कर रहे हैं?
बिल्कुल, और मैं इससे वाकिफ हूं। मैंने अपने जीवन में ये कभी नहीं सोचा कि आपको मेरा काम पसंद नहीं, तो मैं आपका मुंह बंद करवा दूं। आपको अपनी बात रखने का पूरा अधिकार है। जो कुछ लोग ये कह रहे हैं, मैं उनसे सहमत नहीं हूं, मगर मैं उनका मुंह बंद नहीं करवाना चाहता ,जाहिर-सी बात है कि अगर मैं अपनी बात कहने का अधिकार रखता हूं, तो उन्हें भी है। हम अपनी कहानी में भी यही कह रहे हैं कि दुर्भाग्य से फरवरी 2002 का जो हादसा था, उसको हमने सिर्फ एक पॉलिटिकल आइडेंटिटी दे दी। सबसे पहले तो फिल्म अभी तक किसी ने देखी नहीं मगर ट्रेलर और इसी पॉलिटिकल आइडेंटिटी के कारण इसकी आलोचना शुरू हो चुकी है।मैं कह रहा हूं कि आप पहले फिल्म देखें और फिर प्रतिक्रिया दें, क्योंकि इस फिल्म के बाद न केवल हमारा सोशियो-पॉलिटिकल नैरेटिव बदला बल्कि हमारा आपसी भाईचारा भी बदला। उस पर किसी ने बात नहीं कि, इसी डर से कि ये किसी खास पॉलिटिकल आइडियोलॉजी से ताल्लुक रखता है। अब उस डर या आलोचना से घबरा कर मैं कहानी न कहूं, तो ये गलत हो जाएगा। इस विषय पर 22 साल बीतने के बाद भी कोई ज्यादा जानकारी नहीं है। कई डॉक्यूमेंट्रीज बनीं, मगर जो 59 लोग मर गए, उस पर किसी ने बात नहीं की, क्योंकि उसे एक राजनीतिक पहचान दे दी गई। एक नागरिक, पिता, पति, बेटा और अदाकार होने के नाते, मेरी भी कुछ प्रतिक्रियाएं हैं, जो मुझे देनी हैं। हां, तकलीफ होती है, आलोचना सुनकर, फर्क पड़ता है, क्योंकि मैं आपके लिए ही काम करता हूं। मगर अब क्या ही किया जा सकता है।
आपको और आपके 9 महीने के बेटे को जिस तरह से धमकियां मिलीं, उससे क्या आपको घबराहट हुई? क्या प्रीकॉशन्स ले रहे हैं आप?
देखिए, घबराहट तो होती ही है। सोशल मीडिया पर कोई आपका फोन नंबर लीक कर दे या कोई आपको मेसेज करके बोले, हमें तेरी गाड़ी का नंबर पता है, हम जानते हैं कि तू किस रास्ते से आता-जाता है। हम तुझे देख लेंगे, तू अपनी उलटी गिनती शुरू कर दे। ये सारी बातें सुनकर तो डर लगेगा ही, मगर उस डर से मैं कहानियां कहना बंद नहीं कर सकता। मैंने स्थानीय पुलिस और साइबर क्राइम विभाग में शिकायत दर्ज की हुई है। आप उन थ्रेट्स को गंभीर धमकियों में नहीं कर सकते, मगर थ्रेट तो फिर थ्रेट हैं ही।
आपकी फिल्म 12 वीं फेल को लेकर काफी सकारात्मकता थी, मगर अब सोशल मीडिया पर आप काफी ट्रोल हो रहे हैं, आपको काफी नेगेटिविटी का सामना करना पड़ रहा है, इसे कैसे हैंडल कर रहे हैं?
एक हद तक कह सकते हैं कि थोड़ी तकलीफ तो हो रही है। बस मैं ये उम्मीद करता हूं कि ये सब जल्दी खत्म हो और लोग मेरी नीयत को समझें। ट्रोलिंग हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गया है। मैं ज्यादा सोशल मीडिया पर होता नहीं हूं, मगर ये मुझे अपने लपेटे में लेता जा रहा है। मैं बस अपनी कहानियां कहना चाहता हूं, लोगों की जुबान बनना चाहता हूं।
अपनी फिल्म 12वीं फेल को आप अपने करियर का टर्निंग पॉइंट मानते हैं?
बेशक। आज फिल्म रिलीज के एक साल बाद भी फिल्म को इतना प्यार मिल रहा है। मुझे इस फिल्म के बाद अपना पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। इस फिल्म के जरिए मैं लोगों से कनेक्ट कर पाया। कितने ही ऐसे बच्चे या नौजवान हैं, जो आकर कहते हैं कि भैया आपकी फिल्म के कारण मैं आईपीएस, आईएएस बन गया। कई बच्चे ये भी आकर कहते हैं कि भैया मैं आपकी तरह आईएएस बनना चाहता हूं, समाज में बदलाव लाना चाहता हूं, हमें चीटिंग छोड़ी होगी। मैं मानता हूं कि सिनेमा एक बहुत ही सशक्त माध्यम है लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का। खुशी है कि फिल्म के जरिए लोगों से जुड़ पाया।
आपके घर में गंगा जमुनी तहजीब के बारे में क्या कहना चाहेंगे? सुना है कि आपके भाई ने इस्लाम स्वीकार किया है?
गंगा जमुना तहजीब ही हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत रही है। आज बहुत सारे लोग आलोचना करते हैं। बहुतों ने ट्रोल भी किया। मेरा भाई जिसका कुछ लेना-देना नहीं है, उसे भी घसीटा गया। खैर, इन सब ट्रोल्स पर क्या किया जा सकता है। मुझे लगता है कि निजी जिंदगी की जो चीजें हैं, उसमें आप जवाबदार सिर्फ अपने आप से है। लोगों के कहने के बारे में यही कहूंगा कि कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है, कहना। आप इसमें कुछ नहीं कर सकते।