लंदन: यूनाइटेड किंगडम ने कहा है कि वह मॉरीशस को चागोस द्वीप समूह की संप्रभुता सौंप रहा है। इस समझौते के तहत सुदूर लेकिन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हिंद महासागर के इस द्वीप समूह पर दशकों से चल रही बातचीत अब समाप्त हो गई है। ब्रिटिश और मॉरीशस के प्रधानमंत्रियों ने गुरुवार को एक संयुक्त बयान जारी कर इसकी जानकारी दी है। इस समझौते में डिएगो गार्सिया भी शामिल है, जिसका इस्तेमाल अमेरिकी नौसेना लंबी दूरी से बमवर्षकों और युद्धपोतों की तैनाती के लिए सैन्य अड्डे के रूप में करती है। ब्रिटेन की नई लेबर सरकार ने एक महीने पहले ही पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर को चागोस द्वीप समूह पर अपना वार्ताकार नियुक्त किया था।ब्रिटेन ने चागोस द्वीप समूह पर कैसे किया था कब्जा
आज से 200 साल से भी पहले 1814 में ब्रिटेन ने चागोस द्वीपसमूह के साथ मॉरीशस पर भी अपना कब्जा जमा लिया था। तब से लेकर भारत की आजादी के बाद तक मॉरीशस ब्रिटेन का उपनिवेश रहा। 1965 में ब्रिटेन ने मॉरीशस को तो स्वतंत्र कर दिया, लेकिन चागोस द्वीप समूह का स्वामित्व अपने पास ही रखा। बाद में ब्रिटेन ने चागोस द्वीपसमूह को ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र घोषित कर दिया।
अमेरिका का कैसे हुआ डिएगो गार्सिया
ब्रिटिश सरकार ने चागोस द्वीपसमूह के सबसे बड़े द्वीप डिएगो गार्सिया को 1966 में अमेरिका को पट्टे पर दे दिया था। इसके लिए अमेरिका और ब्रिटेन ने इस द्वीप समूह में बसे लगभग 2000 लोगों को उनके घरों से खदेड़ दिया। 1966 में हस्ताक्षरित समझौतों के अनुसार अमेरिका को इस क्षेत्र का इस्तेमाल शुरुआती 50 साल तक करने की अनुमति थी, साथ ही 20 साल और बढ़ाने की अनुमति थी। ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र (बायोट) की वेबसाइट के अनुसार, इस समझौते को 2016 में अपडेट कर दिया गया और अब यह 2036 में समाप्त होने वाला है। बायोट का प्रशासन लंदन से होता है, लेकिन इसे यूके से "संवैधानिक रूप से अलग" बताया जाता है।
चागोस द्वीपसमूह के लिए जारी है 'जंग'
चागोस द्वीपसमूह से विस्थापित लोगों ने अपने मूल स्थान पर लौटने के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया था, जिसमें चागोस द्वीपसमूह पर ब्रिटेन के कब्जे की निंदा की गई। महासभा के अधिकांश सदस्य देशों ने इस द्वीपस मूह को मॉरीशस को वापस करने की मांग की। चागोस शरणार्थी समूह का कहना है कि सेशेल्स और मॉरीशस में जबरन विस्थापित किए गए लोगों को "अत्यधिक कठिनाइयों और गरीबी" का सामना करना पड़ा है। 2016 में, ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय ने डिएगो गार्सिया के पट्टे को 2036 तक बढ़ा दिया और घोषित किया कि निष्कासित द्वीपवासियों को वापस जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। हालांकि, ब्रिटेन अब उस समझौते को रद्द करने की योजना बना रहा है, ताकि द्वीप समूह को मॉरीशस को लौटाया जा सके।
डिएगो गार्सिया को लेकर अमेरिका-ब्रिटेन में विवाद
दरअसल, कोविड-19 महामारी के दौरान श्रीलंका से नाव से निकले शरणार्थियों का एक समूह भटकते हुए डिएगो गार्सिया पहुंच गया था। इन तमिल शरणार्थियों को डिएगो गार्सिया में अवैध रूप से बंधक बनाकर रखा गया और प्रताड़ित भी किया गया। जब इसकी जांच के लिए ब्रिटेन ने अपनी टीम भेजने का ऐलान किया तो अमेरिका ने नौसैनिक बेस की सुरक्षा का हवाला देते हुए अनुमति देने से इनकार कर दिया। हालांकि, बाद में अमेरिका को मजबूरी में अनुमति देनी पड़ी, लेकिन इस दौरान ब्रिटिश जांच दल को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। इस कारण ब्रिटेन भी डिएगो गार्सिया को लेकर अमेरिका के व्यवहार से नाराज था।