दिग्विजय सिंह की दोहरी चिंता, खुद जीतें या ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को हराएं

Updated on 29-04-2024 12:30 PM
भोपाल। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह इन दिनों दोहरी चिंता में हैं। मतदान के लिए कुछ दिन बचे हैं और वह केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराने के लिए कोई खास जतन नहीं कर पा रहे हैं। सिंधिया से उनकी राजनीतिक अदावत पुरानी है। कांग्रेस में रहते हुए भी दोनों के बीच भितरघात सामान्य शिष्टाचार था।

अब ज्योतिरादित्य के कांग्रेस छोड़ने के बाद राजनीतिक दुश्मनी एक नए मुकाम पर पहुंच चुकी है। लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह राजगढ़ सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। यह सीट जीतना भी उनके लिए चिंता की बात है। दूसरी चिंता यह भी है कि गुना लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर लड़ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराने के लिए वह कुछ खास कर नहीं पा रहे हैं।

गुना क्षेत्र में दिग्विजय सिंह का भी अच्छा प्रभाव है, लेकिन खुद राजगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ने के कारण वह ज्योतिरादित्य के विरुद्ध प्रचार या फिर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रेरित नहीं कर पा रहे हैं। दोनों नेताओं की सीट पर तीसरे चरण में सात मई को मतदान होना है।

माधवराव सिंधिया को मात दी थी दिग्विजय ने

मध्य प्रदेश में राघौगढ़ रियासत से संबंध रखने वाला दिग्गी राजा की ग्वालियर राजघराने के महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच केवल सियासी टकराव नहीं है बल्कि राजशाही से कई पीढ़ियों से दोनों परिवारों के बीच मनमुटाव बना हुआ है। माधवराव सिंधिया से भी दिग्विजय की सियासी खींचतान चलती रही है। दिग्विजय जब पहली बार अर्जुन सिंह की मदद से मप्र कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो असली दावेदार माधवराव ही थे। दूसरी बार भी दिग्गी राजा ने सिंधिया को 1993 में तब मात दी, जब वह फिर अर्जुन सिंह और कमल नाथ की सहायता लेकर मुख्यमंत्री बन गए। उनके निधन के बाद अब ज्योतिरादित्य और दिग्गी के बीच तलवारें खिंची रहती हैं।

ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में दो तरह की कांग्रेस

ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में दो तरह की कांग्रेस हुआ करती थी। एक राजा यानी दिग्विजय समर्थकों की कांग्रेस व दूसरी महाराजा यानी सिंधिया की। 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद दोनों के बीच खाई और बढ़ गई। इसकी वजह बताई जाती है कि चुनाव जीतने के बाद दिग्विजय ने सिंधिया को सीएम नहीं बनने दिया। इसके बाद लोस चुनाव 2019 में दोनों ही कांग्रेस प्रत्याशी थे और दोनों ही हार गए थे। कहते हैं कि सिंधिया को हराने में दिग्गी गुट ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। 2020 में सिंधिया ने कमल नाथ सरकार गिरा दी। इस सरकार में दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह भी कैबिनेट मंत्री थे।

दोनों का राजनीतिक भविष्य तय करेगा 2024 का आम चुनाव

इस समय दोनों दिग्गज राज्यसभा सदस्य हैं। 2024 का लोस चुनाव दोनों का ही राजनीतिक भविष्य तय करेगा। गुना सीट से सिंधिया भाजपा प्रत्याशी हैं। वह पिछला चुनाव इसी सीट से कांग्रेस प्रत्याशी होते हुए हार गए थे। इस बार दिग्विजय भोपाल के बजाज राजगढ़ सीट से 33 वर्ष बाद लड़ रहे हैं। दिग्विजय अभी तो राजगढ़ में प्रचार कर रहे हैं, मगर ध्यान गुना सीट पर लगा है। कुछ दिन के लिए उन्होंने अपने बेटे जयवर्धन को अपने समर्थकों को सक्रिय करने के लिए गुना भेजा था। दिग्गी ने कांग्रेस से अरुण यादव को सिंधिया के खिलाफ टिकट नहीं मिलने दिया और स्थानीय नेता राव यादवेंद्र सिंह यादव को टिकट दिलाया। यादवेंद्र के पिता राव देशराज सिंह भाजपा से तीन बार विधायक रहे हैं। सिंधिया के विरुद्ध दो बार पार्टी ने उन्हें लोस चुनाव भी लड़वाया था।


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