मास्को: यूक्रेन युद्ध के बीच उत्तर कोरिया के सैनिक रूस पहुंच गए हैं। उत्तर कोरियाई सैनिकों का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें किम जोंग उन के सैनिक रूस के फार ईस्ट इलाके में स्थित एक ट्रेनिंग ग्राउंड में वर्दी और उपकरण पाते नजर आ रहे हैं। इससे दक्षिण कोरिया की खुफिया एजेंसी का दावा सच साबित हो गया है। दक्षिण कोरिया का दावा था कि उत्तर कोरिया के स्पेशल फोर्सेस के 1500 सैनिक सैन्य प्रशिक्षण के लिए रूस भेजे गए हैं ताकि उन्हें यूक्रेन में तैनात किया जा सके। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक सैनिकों का पहुंचना उत्तर कोरिया और रूस के बीच मजबूत होते रिश्ते को दर्शाता है। बताया जा रहा है कि इन सैनिकों को व्लादिवोस्तोक के पास एक सैन्य ट्रेनिंग स्थल पर रखा गया है।यह भी दावा किया जा रहा है कि इन सैनिकों को रूस भेजने से पहले खुद उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग उन की निगरानी में उन्हें उत्तर कोरिया की सीमा पर ट्रेनिंग दिया गया था। बताया जा रहा है कि आने वाले समय में और ज्यादा उत्तर कोरियाई सैनिक रूस भेजे जाएंगे। कुल 12 हजार सैनिकों को भेजे जाने की योजना है। विश्लेषकों का कहना है कि अगर उत्तर कोरिया के सैनिकों को वाकई रूसी सेना में शामिल करके उन्हें यूक्रेन में तैनात किया जाता है तो जंग के परिणाम बदल सकते हैं।
रूस की रणनीति क्या है ? निशाने पर नाटो
विश्लेषकों के मुताबिक उत्तर कोरियाई सैनिकों की तैनाती उकसाने वाली होगी या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि रूस इन सैनिकों को कैसे तैनात करता है। रूस का इरादा उत्तर कोरियाई सैनिकों को रिजर्व के रूप में रखने का हो सकता है, न कि उन्हें युद्ध के मैदान में तैनात करने का। रूस ने अभी तक यूक्रेन में पूरी सैन्य ताकत से हमला नहीं किया है। रूस की रणनीति यह है कि वह अपनी सेना को इतना नहीं खो दे कि नाटो को हस्तक्षेप करने का मौका मिल जाए। रूस समय और प्रतिरोधक क्षमता का इस्तेमाल कर रहा है ताकि अपने सैन्य लक्ष्यों को हासिल किया जा सके।
रक्षा मामलों के विशेषज्ञ और भारतीय वायुसेना के पूर्व जगुआर पायलट विजयंत के ठाकुर यूरेशिया टाइम्स में लिखते हैं कि रूस अभी कम से कम सेना का इस्तेमाल कर रहा है ताकि वह किसी भी समय नाटो से मुकाबला कर सके। रूस की सेना अभी कई सीमाओं पर तैनात है। रूस की यूक्रेन से लगती सीमा जहां 1,576 किमी है, वहीं फिनलैंड (1,309 किमी), नार्वे (196 किमी), इस्टोनिया (324 किमी), लाटविया (332 किमी) और पोलैंड से लगती है। इनमें कई देश नाटो के सदस्य हैं और रूस के साथ उनका काफी तनाव है। रूस उत्तर कोरिया के सैनिकों का इस्तेमाल रिजर्व के रूप में करके अपने सैनिकों को यूक्रेन की सीमा पर भेज सकता है।
भारत-पाकिस्तान के युद्ध के हालात से क्यों हो रही तुलना?
ठाकुर कहते हैं कि उत्तर कोरिया के सैनिकों का रूस पहुंचना ठीक उसी तरह से मित्रता की संधि की तरह से हो सकती है जैसे साल 1971 के बांग्लादेश युद्ध से ठीक पहले भारत और सोवियत संघ के बीच हुई थी। यह संधि चीन या अमेरिका के हस्तक्षेप को रोकने के लिए की गई थी। उन्होंने कहा कि यह रणनीतिक भागीदारी की संधि पूरी संभावना है कि नाटो को रोकने के लिए की गई है।
ठाकुर ने कहा कि किम जोंग उन ने अपनी सेना को यूं ही नहीं भेजा है। इसके पीछे उनका भी कोई मकसद होगा। यूक्रेन की सेना पीछे हट रही है और पश्चिमी हथियारों की सप्लाई बहुत कम हो गई है। यूक्रेन में नए सैनिक भर्ती होने कम हो गए हैं। नाटो यूक्रेन की हार नहीं चाहता है और इसी वजह से वह संघर्ष को बढ़ाना चाहता है, वहीं रूस ने भी उत्तर कोरिया के सैनिक बुलाकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि वह पूरी तरह से तैयार हैं।